तोप का वह गोला जिसमें बारूद नहीं, केक भरा था... अमेरिका कोई भी कीमत देने को राजी था, भारत ने संभाल रखी है 125 साल पुरानी विरासत
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तोप का वह गोला जिसमें बारूद नहीं, केक भरा था... अमेरिका कोई भी कीमत देने को राजी था, भारत ने संभाल रखी है 125 साल पुरानी विरासत

The Boer War 1899 History: आज से करीब 125 साल पहले, दक्षिण अफ्रीका में दूसरा बोअर युद्ध छिड़ा था. उस युद्ध की एक विरासत और इतिहास का एक पूरा अध्याय भारत ने सहेज कर रखा है.

तोप का वह गोला जिसमें बारूद नहीं, केक भरा था... अमेरिका कोई भी कीमत देने को राजी था, भारत ने संभाल रखी है 125 साल पुरानी विरासत

मध्य प्रदेश के जबलपुर में आर्मी ऑर्डिनेंस कोर (AOC) का म्यूजियम है. इस म्यूजियम में एंट्री प्रतिबंधित है क्योंकि यहां मिलिट्री इतिहास की अमूल्य धरोहर सहेज कर रखी गई हैं. यहां पर अमेरिकी गैटलिंग गन रखी है जो सबसे पुरानी और एकमात्र बची हुई चालू मशीन गन है. इसी म्यूजियम में तोप का वह गोला भी रखा हुआ है जिसके दागे जाने पर 7,500 किलोमीटर दूर मौजूद एक कस्बे में जंग का दौर थम गया था. पढ़‍िए, भारत ने जिस विरासत को संभालकर रखा है, उसकी पूरी कहानी.

दूसरा बोअर युद्ध और लेडीस्मिथ की घेराबंदी

यह कहानी शुरू होती है 19वीं सदी के आखिरी साल यानी 1899 से. दक्षिण अफ्रीका में बोअर लोग अंग्रेजों के साथ युद्ध कर रहे थे. उन्होंने लेडीस्मिथ नामक सैन्य शहर की घेराबंदी कर ली थी. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि पूरे शहर में शांति फैल गई. 27 दिसंबर की रात को बोअर लोगों ने तोप से एक गोला शहर की ओर दागा. हालांकि, इसके साथ कोई फ्यूज नहीं लगा था कि गिरने पर धमाका होता. बल्कि, उस गोले पर एक प्लम केक लगा हुआ था और 'क्रिसमस की शुभकामनाएं' लिखी हुई थीं. तोप का वह गोला लेडीस्मिथ के लिए संघर्षविराम का प्रतीक बन गया.

भारत कैसे पहुंचा तोप का यह गोला?

दक्षिण अफ्रीकी शहर की घेराबंदी और बोअर शत्रुता की समाप्ति को याद रखने के लिए अंग्रेजों ने हर साल 'लेडीस्मिथ शेल फायरिंग कॉम्पिटिशन' शुरू किया. भारतीय सेना उस ब्रिटिश परंपरा को आज भी जारी रखे हुए हैं. पिछले हफ्ते, महाराष्ट्र के पुलगांव स्थित सेंट्रल एम्युनिशन डिपो (CAD) में वह प्रतियोगिता आयोजित की गई. इस कार्यक्रम के दौरान, लेडीस्मिथ वाली कहानी फिर सुनाई गई. इसी बहाने हमें पता चला कि आखिर यह तोप का गोला 7,500 किलोमीटर दूर जबलपुर में पहुंचा कैसे.

तोप का वह गोला पिछले आठ दशक से भारत में है. उसे जबलपुर स्थित AOC म्यूजियम में रखा गया है. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट में CAD कमांडेंट, ब्रिगेडियर कौशलेश पंघाल के हवाले से लिखा है, 'इस गोले को मेजर मोहन भारत लाए थे और आयुध इकाइयों (ऑर्डिनेंस यूनिट्स) के बीच फायरिंग प्रतियोगिता के लिए लेडीस्मिथ ट्रॉफी के रूप में प्रस्तुत किया था. यह असली गोला है और इसके रेप्लिका का इस्तेमाल हर साल आयोजित होने वाली फायरिंग प्रतियोगिताओं के लिए रोलिंग ट्रॉफी के रूप में किया जाता है.'

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AOC के एक अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट कहती है कि मेजर मोहन इस सैन्य धरोहर को दक्षिण अफ्रीका से तब भारत लाए थे, जब ब्रिटिश शासन के दौरान जबलपुर में एक म्यूजियम बनाने के लिए दुनिया भर से कलाकृतियां इकट्ठा की जा रही थीं. रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी राजदूत ने एक बार तो इस गोले के बदले ब्लैंक चेक देने की पेशकश की थी, लेकिन भारत ने वह अनुरोध ठुकरा दिया.

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