भारत की तरह अब जर्मनी में भी मुस्लिम तुष्टिकरण (Muslim Appeasement) को लेकर चिंता जताई जा रही है. इसके पीछे वहां की एक मेयर के फैसले को जिम्मेदार बताया जा रहा है.
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नई दिल्ली: भारत अकेला ऐसा देश नहीं है, जहां मुस्लिम तुष्टिकरण (Muslim Appeasement) के नाम पर राजनीति की कई दुकानें चल रही हैं. इनमें वो पश्चिमी देश भी शामिल हैं, जो एक समय ये कहते थे कि इस्लामिक कट्टरपंथ एक परिकल्पना से ज़्यादा कुछ नहीं है. आज जर्मनी में इस बात पर बहस हो रही है कि क्या जर्मनी धीरे धीरे एक मुस्लिम राष्ट्र बन जाएगा?
इस बहस की पृष्ठभूमि में वहां के Cologne (कोलोन) शहर की मेयर का एक ताज़ा फैसला है, जिसमें उन्होंने मुस्लिम (Muslim) समुदाय की मांग पर वहां मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है. इसके तहत हर हफ़्ते शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के दिन 5 मिनट के लिए मस्जिदों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो सकेगा. ये फैसला वहां की सभी 35 मस्जिदों पर लागू होगा, जिसका कई लोग विरोध कर रहे हैं.
जर्मनी के इस शहर की पहचान ईसाई धर्म के सबसे प्राचीन शहर के रूप में होती है. यहां जर्मनी का सबसे पुराना और सबसे बड़ा चर्च भी है, जहां दुनिया के अलग अलग कोनों से लोग पहुंचते हैं. माना जाता है कि 19वीं शताब्दी तक इस शहर में मुस्लिम (Muslim) आबादी नहीं थी, लेकिन शरणार्थियों के प्रति जर्मनी की हमदर्दी ने इस शहर की विरासत को खतरे में डाल दिया. आज वहां लोग ये कह रहे हैं कि जर्मनी धीरे धीरे एक मुस्लिम राष्ट्र बनने की राह पर बढ़ रहा है.
इस पूरे मुद्दे पर वहां की मेयर का कहना है कि ये फैसला जर्मनी में धार्मिक आज़ादी और विविधता को दर्शाता है और इस्लामिक मान्यताओं के प्रति सम्मान और उदारता की मिसाल भी पेश करता है. ये बातें बोलने में और सुनने में तो अच्छी लगती हैं लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं. दरअसल, जर्मनी के इस शहर की सभी 35 मस्जिदों को संचालन के लिए Turkey से फंडिंग मिलती है. यानी इसके पीछे Turkey है.
Turkey सरकार की एक धार्मिक संस्था, जिसका नाम Turkish-Islamic Union for Religious Affairs है, वो जर्मनी में मस्जिदों के संचालन, मौलवियों की सैलरी और दूसरे खर्चों के लिए बड़े पैमाने पर फंडिंग करती है. वर्ष 2018 में जब इस शहर में वहां की सबसे बड़ी मस्जिद का निर्माण हुआ था, तब भी इसकी फंडिंग इसी संस्था से आई थी. इसका उद्घाटन भी खुद Turkey के राष्ट्रपति ने किया था.
जर्मनी की कुल आबादी लगभग 8 करोड़ है, जिनमें मुस्लिम (Muslim) आबादी 56 लाख है. इस हिसाब से कुल आबादी में 14 प्रतिशत लोग मुस्लिम समुदाय से हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस समय जर्मनी की लगभग 900 मस्जिदों का संचालन Turkey सरकार की यही धार्मिक संस्था कर रही है, जिसके वहां 8 लाख से ज्यादा सदस्य हैं. सोचिए कुल 56 लाख आबादी में से 15 प्रतिशत मुसलमान तो Turkey सरकार के लिए ही काम कर रहे हैं.
कुल मिलाकर ये इस्लामिक कट्टरपंथ की एक Franchise है, जिसकी जर्मनी में कई ब्रांच खुली हुई हैं. वर्ष 2007 में जर्मनी का एक इमाम, जो इस संस्था से जुड़ा हुआ था, उस पर Turkey की सरकार के लिए जासूसी करने और ईसाई धर्म के ख़िलाफ़ नफरत फैलाने के आरोप लगे थे. आज भी वहां यही हो रहा है. वहां लोग मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल से ज़्यादा इस बात से चिंतित हैं कि इन मस्जिदों के अन्दर क्या हो रहा है और इनका रिमोट कंट्रोल किसके हाथ में हैं.
यूरोप के बहुत सारे देश आज भी इस्लामिक (Muslim) कट्टरपंथ को लेकर Confuse है. वो आतंकवाद से अपनी रक्षा तो करना चाहते हैं लेकिन साथ ही Secularism की अंधी दौड़ में भी शामिल होना चाहते हैं ताकि वो पूरी दुनिया में Secular दिखें. हमारा मानना है कि दो नावों में ये सवारी यूरोप के इन देशों को बहुत भारी पड़ेगी. उदाहरण के लिए वर्ष 2016 में नए साल के जश्न के दौरान जर्मनी में बड़े पैमाने पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं हुई थीं. बाद में पता चला था कि इन घटनाओं के पीछे वही मुस्लिम शरणार्थी हैं, जिन पर तरस खा कर जर्मनी ने अपने देश में आने दिया था.
जर्मनी में जहां मुस्लिम समुदाय के लोग अल्पसंख्यक हैं, वहां तो ये ज्यादा आज़ादी की मांग करते हैं. लेकिन जहां वे बहुसंख्यक हैं, वहां अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने से नहीं चूकते. बांग्लादेश की राजधानी ढाका में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हिन्दू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया और वहां दुर्गा पंडाल में भी तोड़फोड़ की.
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बांग्लादेश में इस समय हिन्दुओं को चुन चुन कर मारा जा रहा है और दुर्गा पंडालों में भी तोड़फोड़ की जा रही है. बताया जा रहा है कि इस हिंसा के पीछे वहां फैली एक अफवाह है, जिसमें ये कहा गया था कि इन दुर्गा पंडालों में कुरान की आयतों को फाड़ कर जलाया गया है. जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ था. बांग्लादेश में इस तरह की अफवाहों का इतिहास काफ़ी पुराना है. वहां जब जब हिन्दुओं के ख़िलाफ़ हिंसा हुई है, तब तब उसके पीछे कोई अफवाह थी.
इस हिंसा में अब तक तीन लोगों के मारे जाने की ख़बरें हैं. ये संख्या बढ़ भी सकती है. क्योंकि बांग्लादेश से अभी सही और पूरी जानकारी सामने नहीं आ रही है.
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