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वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Mandir) और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) मामले में सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट की अदालत ने पुरातात्विक सर्वे कराए जाने को लेकर फैसले के बाद इस मामले पर राजनीति शुरू हो चुकी है. अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास जी महाराज ने इस फैसले पर खुशी जाहिर की है. वहीं एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने एक के बाद एक कई ट्वीट करके इस फैसले पर सवाल उठाए हैं.
असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करके कहा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और मस्जिद कमेटी को इस आदेश पर तुरंत अपील करके इसपर सुधार करवाना चाहिए. ASI से केवल धोखाधड़ी की संभावना है और इतिहास दोहराया जाएगा, जैसा कि बाबरी के मामले में किया गया था. किसी भी व्यक्ति को मस्जिद की प्रकृति बदलने का कोई अधिकार नहीं है.
बाबरी मस्जिद मामले में पक्षकार रहे मोहम्मद इकबाल अंसारी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे सच्चाई सामने आ जाएगी. उन्होंने कहा, 'यह मुकदमा बहुत दिनों से रहा है, हम चाहते हैं कि यह मसला हल हो जाए और हिंदू-मुसलमानों का सौहार्द बना रहे. उम्मीद है कि वाराणसी के फास्ट ट्रैक कोर्ट के आदेश के अनुसार 5 लोगों की टीम बनेगी, वह बेहतर तरीके से अपना काम करेगी और जो सच्चाई है वह सामने लाएगी.
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वाराणसी में बाबा विश्वनाथ मंदिर पर हिंदुओं की आस्था और दलीलों का सबसे बड़ा आधार रही है, लेकिन Zee News ने 83 साल पुराना वो दस्तावेज ढूंढ निकाला है, जो इस विवाद नया मोड़ दे सकती है. काशी विश्वनाथ विवाद में अभी जो मुकदमा चल रहा है, उसकी शुरुआत 1991 में हुई थी. यानी ये लगभग 30 साल पुराना मुकदमा है, लेकिन ये कानूनी विवाद कई दशक पुराना है.
स्वतंत्रता से पहले 1936 में भी ये मामला कोर्ट में गया था. तब हिंदू पक्ष नहीं, बल्कि मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की थी. ये याचिका दीन मोहम्मद नाम के एक व्यक्ति ने डाली थी और कोर्ट से मांग की थी कि पूरा ज्ञानवापी परिसर मस्जिद की जमीन घोषित की जाए. 1937 में इस पर फैसला आया, जिसमें दीन मोहम्मद के दावे को खारिज कर दिया गया, लेकिन विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई.
इसी केस की सुनवाई के दौरान अंग्रेज अफसरों ने 1585 में बने प्राचीन विश्वनाथ मंदिर का नक्शा भी पेश किया. इसमें बीच का जो हिस्सा है वही पर प्राचीन मंदिर का गर्भगृह बताया जाता है. यह नक्शा जब कोर्ट में पेश किया गया तो अंग्रेज अफसरों ने बताया कि इसके ही कुछ हिस्से में मस्जिद बना दी गई है. नक्शे के बीच के स्थान पर एक मस्जिद बनी हुई है, जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है. ऐसा दावा किया जा रहा है कि इस मस्जिद की पश्चिमी दीवार आज भी वही है जो प्राचीन मंदिर में हुआ करती थी. इसे देखकर ऐसा लगता है कि मस्जिद को जल्दीबाजी में बनवाया गया था.
Zee News ने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी ASI के पूर्व अपर महानिदेशक डॉक्टर बीआर मणि से इस परिसर के बारे में बात की. उन्होंने कहा, 'साल 1937 में वाराणसी जिला अदालत का जो फैसला आया था, उसमें एक जगह जज ने कहा है कि ज्ञानकूप के उत्तर में ही भगवान विश्वनाथ का मंदिर है, क्योंकि कोई दूसरा ज्ञानवापी कूप बनारस में नहीं है. जज ने यह भी लिखा है कि एक विश्वनाथ मंदिर है और वो ज्ञानवापी परिसर के अंदर ही है. इसी मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर एएस आल्टेकर का बयान दर्ज किया गया था, जिसमें उन्होंने स्कंद पुराण समेत कई प्राचीन ग्रंथों का हवाला देते हुए बताया था कि ज्ञानवापी कूप के उत्तर में ही भगवान विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग है.'