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प्रयागराज: द्वारका पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सोमवार को कहा कि एक संत मुख्यमंत्री नहीं हो सकता है, क्योंकि व्यक्ति जब संवैधानिक पद पर बैठता है तो उसे धर्मनिरपेक्षता की शपथ लेनी पड़ती है, ऐसे में वह व्यक्ति धार्मिक कैसे रह सकता है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के संत होने संबंधी प्रश्न के उत्तर में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने यह बात कही. यहां गंगा के तट पर चल रहे माघ मेले में संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा, 'व्यक्ति एक साथ दो शपथ नहीं निभा सकता. एक संत, महंत हो सकता है, लेकिन वह मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नहीं हो सकता. खिलाफत का यह काम मुसलमानों के यहां होता है. वहां धर्माचार्य राजा होता है.'
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क्या धर्म और राजनीति के बीच कोई कनेक्शन हो सकता है, इसका जवाब कई लोग जानना चाहते हैं. दरअसल द्वारका पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के प्रति हमेशा से सहानुभूति रही है और पिछले वर्ष माघ मेले के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यहां मनकामेश्वर मंदिर परिसर में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से भेंट कर उनका आशीर्वाद लिया था.
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माघ मेले में अव्यवस्था को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, 'इस बार माघ मेले में बहुत अनदेखी की गई है. कुछ संत महात्माओं ने अनशन और आत्मदाह करने तक की बात कही है. अगर नेता चुनाव में व्यस्त हैं तो अधिकारी क्यों व्यवस्था को नहीं ठीक कर रहे हैं.'
माघ मेले में गंगा का जल स्तर अचानक बढ़ने से कल्पवासियों और साधु संतों को हो रही परेशानी पर उन्होंने कहा, 'आपके (सरकार के) पास आज की तारीख में रेगुलेटर हैं, तो फिर नियंत्रित प्रवाह क्यों नहीं हो रहा है. जलस्तर बढ़ने से कई लोगों को अपने शिविर उखाड़ने पड़े हैं और दूसरी जगह शिविर लगाना पड़ा हैं.'
धर्म के क्षेत्र में राजनीतिक नेताओं के दखल पर अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा 'सभी राजनीतिक दल, धर्म के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहे हैं, कोई दल आगे हो सकता है, कोई पीछे. यह बात इस स्तर तक पहुंच गई है कि केवल धार्मिक लोगों से संबंध बनाना ही नहीं रह गया है, बल्कि वे धार्मिक स्थलों पर अपने आदमी बैठा रहे हैं.'
उन्होंने दावा करते हुए कहा, 'राजनीतिक दल अपनी बात कहलवाने के लिए अपने आदमियों को धार्मिक स्थलों पर बैठा रहे हैं. देश में कुछ ऐसे लोग हैं जो यह चाहते हैं कि धर्माचार्य उनकी भाषा बोलें. यही वजह है कि पुरानी किताब से धर्म बताने वाले लोग उनको चुभ रहे हैं और ऐसे लोगों को पद से हटाने की नीति चल रही है. जनता सही लोगों, सही पार्टी को चुने जिससे उसे सरकार बनने के बाद पछताना ना पड़े.'
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