मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इतिहास में जो कुछ हुआ उसे बदल नहीं सकते है. हमारी चिंता केवल विवाद को सुलझाने की है.
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नई दिल्लीः अयोध्या मामले में मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुरक्षित रख लिया. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ ने आज सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट आज दोनों ही पक्षों से मामले के बातचीत के जरिए हल निकालने को लेकर मध्यस्थता पर सुनवाई की. हिंदू पक्षकारों में रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने मध्यस्थता से इनकार किया. वहीं एक और हिंदू पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने कहा कि वह मध्यस्थता के लिए तैयार है. मुस्लिम पक्ष ने भी मध्यस्थता पर सहमति जताई.
सुनवाई के दौरान सबसे पहले एक हिन्दू पक्ष के वकील ने कहा कि अयोध्या केस को मध्यस्थता के लिए भेजने से पहले पब्लिक नोटिस जारी किया जाना चाहिए. हिंदू पक्षकार की दलील थी अयोध्या मामला धार्मिक और आस्था से जुड़ा मामला है, यह केवल सम्पत्ति विवाद नहीं है. इसलिए मध्यस्थता का सवाल ही नहीं है.
अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं हैः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम हैरान हैं कि विकल्प आज़माए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है. कोर्ट ने कहा कि अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं है लेकिन हम बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब वैवाहिक विवाद में कोर्ट मध्यस्थता के लिए कहता है तो किसी नतीजे की नहीं सोचता. बस विकल्प आज़माना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम ये नहीं सोच रहे कि किसी पक्ष को किसी चीज का त्याग करना पड़ेगा. हम जानते हैं कि ये आस्था का मसला है. हम इसके असर के बारे में जानते हैं.'
मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता को तैयार
मुस्लिम पक्षकार की ओर से पेश राजीव धवन ने कहा मध्यस्थता के लिए तैयार है. मध्यस्थता के लिए सबकी सहमति जरूरी नहीं. इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा ये विवाद दो समुदाय का है सबको इसके लिए राज़ी करना आसान काम नहीं.
वहां मंदिर के सबूत मिले हैं, जगह हिंदुओं को दी जाएः स्वामी
बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि कोर्ट ने इसे अपने फैसले में दर्ज किया था, वहां सुलह करने जैसा कुछ नहीं. स्वामी ने दलील दी कि नरसिंह राव सरकार कोर्ट में वचन दे चुकी है कि कभी भी वहां मंदिर का सबूत मिला तो वो जगह हिंदुओं को दे दी जाएगी. उन्होंने कहा कि अयोध्या एक्ट से वहां की सारी ज़मीन का राष्ट्रीयकरण हो चुका है.
कोर्ट की मीडिया को लेकर भी अहम टिप्पणी
जस्टिस बोबड़े ने कहा कि जब मध्यस्थता की प्रक्रिया चल रही हो तो उसमें क्या कुछ चल रहा है यह मीडिया में नहीं जाना चाहिए. कि हम मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगा रहे, परंतु मध्यस्थता का मकसद किसी भी सूरत में प्रभावित नहीं होना चाहिए. जस्टिस बोबड़े ने मध्यस्थता की विश्वसनीयता को बरकरार रखने पर जोर देते हुए कहा कि जब अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता चल रही हो तो इसके बारे में खबरे न लिखी जाएं और न ही दिखाई जाएं.
'बाबर ने जो किया उसे बदला नहीं जा सकता'
हम इतिहास भी जानते हैं. हम आपको बताना चाह रहे हैं कि बाबर ने जो किया उस पर हमारा कंट्रोल नहीं था. उसने जो किया उसे कोई बदल नहीं सकता. हमारी चिंता केवल विवाद को सुलझाने की है. इसे हम जरूर सुलझा सकते हैं. यह दिमाग, दिल और रिश्तों को सुधारने का प्रयास है. हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं. हम जानते हैं कि इसका इम्पैक्ट क्या होगा. यह मत सोचो कि तुम्हारे हमसे ज्यादा भरोसा है कानून प्रक्रिया पर.
दरअसल, पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर 1 फीसदी भी समझौता और मध्यस्थता का चांस है तो प्रयास होना चाहिए. जस्टिस बोबड़े ने कहा था कि मेडिएशन की प्रकिया गोपनीय रहेगी और ये भूमि विवाद की सुनवाई के साथ साथ चलेगी. हिंदू और मुस्लिम पक्षकारो का कहना था कि पहले भी अदालत की पहल पर इस तरह से विवाद को सुलझाने की कोशिश नाकामयाब हो चुकी है.
मुस्लिम पक्षकारो की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा था कि मेडिएशन को एक चांस दिया जा सकता है, पर हिन्दू पक्ष को ये क्लियर होना चाहिए कि कैसे आगे बढ़ा जाएगा.जस्टिस बोबड़े ने कहा था कि हम एक प्रोपर्टी विवाद को निश्चित तौर पर सुलझा सकते है, पर हम रिश्तों को बेहतर करने पर विचार कर रहे है.सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद देखने के लिए 6 हफ्ते दिया था और कहा था कि हमारे विचार में 8 हफ्ते के वक्त का इस्तेमाल पक्ष मध्यस्थता के ज़रिए मसला सुलझाने के लिए भी कर सकते हैं.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्षों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा था. कोर्ट ने 1994 के इस्माइल फारुकी के फैसले में पुनर्विचारके लिए मामले को संविधान पीठभेजने से इंकार कर दिया था. मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी.गौरतलब है कि राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरादिया गया था. इसमामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला था. टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था. फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए.जिस जगह रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था.अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी थी.
इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी. कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे. उसके बाद से ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.