आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके माओवादियों की अब कमर टूट रही है. वे अब बरगलाकर युवाओं की नई भर्ती नहीं कर पा रहे हैं. छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों की तस्वीर बदल रही है. हिंसा के लिए बदनाम इस इलाके में अब गेम होने जा रहे हैं. इसमें बंदूक थामने वाले माओवादी और आम युवा एक साथ खेलेंगे.
Trending Photos
गोलियों की तड़तड़ाहट और ब्लास्ट की खबरों से अक्सर सुर्खियों में रहने वाला बस्तर अब बदल रहा है. यहां बंदूक से खेलने वाले माओवादी अब असल में गेम खेलने उतरेंगे. जी हां, इस खेल में सरेंडर कर चुके माओवादियों के साथ नक्सल हिंसा के पीड़ित भी शामिल होंगे. एक समय ये एक दूसरे से आंख भी नहीं मिलाते थे. इनमें कट्टर दुश्मनी थी लेकिन अब ये अपनी टीम भी बना सकते हैं. ये कहानी है 'बस्तर ओलंपिक' की. छत्तीसगढ़ सरकार ने यही नाम दिया है और 1 नवंबर से इसका आगाज होने जा रहा है.
बस्तर ओलंपिक से क्या होगा?
इसका मकसद खेल के जरिए युवाओं और पूर्व माओवादियों को एक नई दिशा देना है. इस पहल के जरिए सरकार नक्सल हिंसा के पीड़ितों और सरेंडर करने वाले कैडर के बीच भरोसे की खाई को भी पाटना चाहती है. यह अपनी तरह का अनूठा खेल होगा जिसका उद्देश्य माओवाद से प्रभावित इलाके में एक नई उम्मीद जगाना है. जिन हाथों से कभी बंदूकें जान लेती थीं, वे अब हॉकी स्टिक थामे दिखेंगे. इसके जरिए युवाओं को प्रोत्साहित करने, खेल भावना पैदा करने के साथ ही पूर्व माओवादियों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जा रही है.
टाइमिंग भी अहम
हां, बस्तर गेम्स ऐसे समय में होने वाले हैं जब जबर्दस्त सुरक्षा अभियानों के चलते माओवादियों की हालत पस्त हो गई है. माओवाद के गढ़ रहे इलाकों में करीब दो दशकों से बंद दर्जनों स्कूल फिर से खुल रहे हैं. उम्मीद है कि बस्तर ओलंपिक की पहल युद्ध का मैदान रहे इन इलाकों में एक अच्छा माहौल पैदा करेगी.
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने बताया कि यह आयोजन बस्तर के बच्चों और युवाओं पर केंद्रित है. इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और जीवन में आगे बढ़ने की भावना बढ़ेगी. अपने-अपने जिलों में अच्छा प्रदर्शन करने वालों को सम्मानित किया जाएगा और सरकार उनकी रुचि के क्षेत्र को तलाशने में भी मदद करेगी.
मुश्किल में माओवादी
माना जा रहा है कि बस्तर के युवाओं को पढ़ाई और खेलों में शामिल करने से वे माओवादियों के भर्ती अभियानों से दूर रह सकेंगे. अभी अंदरखाने से एक जानकारी सामने आई है कि माओवादियों को भर्ती करने में परेशानी हो रही है. शायद इसीलिए बस्तर ओलंपिक ऐसे समय में हो रहा है जब माओवादी गांवों में घूमकर युवाओं को भर्ती करने की कोशिश में उन्हें बरगलाते हैं.
बस्तर रेंज के खेल अधिकारी रवींद्र पटनायक ने बताया कि अधिकतम पहुंच सुनिश्चित करने के लिए खेल ब्लॉक स्तर पर शुरू होंगे. उन्होंने कहा, 'शुरुआती योजना के अनुसार ब्लॉकस्तरीय ओलंपिक 1-15 नवंबर तक आयोजित किए जाएंगे, इसके बाद 15-20 नवंबर तक जिला स्तरीय प्रतियोगिताएं और 8-30 नवंबर तक जगदलपुर में संभागीय स्तर पर फाइनल होंगे. विजेताओं को नकद पुरस्कार और स्मृति चिन्ह दिए जाएंगे. (फोटो- lexica एआई)