जब्त गाड़ियों की वजह से कबाड़खाने में बदल रहे हैं पटना के आदर्शं थाने
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जब्त गाड़ियों की वजह से कबाड़खाने में बदल रहे हैं पटना के आदर्शं थाने

बिहार सरकार लगातार प्रदेश की पुलिस को हाईटेक बनाने की कोशिश कर रही है.इसी वजह से प्रदेश सरकार लगातार नए थानों के निर्माण और पुलिस को अत्याधुनिक संसाधनों को मुहैया करने की कोशिश कर रही है.

जब्त गाड़ियों की वजह से कबाड़खाने में बदल रहे हैं थाने (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Patna: बिहार सरकार (Bihar Government) लगातार प्रदेश की पुलिस (Police) को हाईटेक बनाने की कोशिश कर रही है. इसी वजह से प्रदेश सरकार लगातार नए थानों के निर्माण और पुलिस को अत्याधुनिक संसाधनों को मुहैया करने की कोशिश कर रही है. सरकार कई बार कह चुकी है कि, वो पुलिस की आम धारणा को तोड़ने की कोशिश कर रही है. जिस वजह से थानों को नए भवन में भी शिफ्ट किया जा रहा है. हालांकि पुलिस द्वारा जब्त किये गए वाहन इसकी ख़ूबसूरती को बिगाड़ रहे हैं. जब्त किए गए वाहनों की सही समय पर नीलामी न होने की वजह से वो अब कबाड़ में बदल रहे हैं. जिस वजह से अब थानों में वाहनों के लिए जगह भी कम पड़ रही है. 

जटिल कानूनी प्रक्रियाओं की वजह से थाना में ही सड़ने लगे हैं जब्त वाहन 

पटना के विभिन्न थानों में जब्त किये गए वाहन अब कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं. इस वाहनों की वजह से अब पुलिस को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पटना के वीआईपी और आदर्श थाने जैसे कोतवाली,गांधी मैदान,एसके पूरी थाना,शास्त्री नगर थाना ,बुद्धा कॉलोनी थाना में जब्त थानों की संख्या इतनी ज्यादा है कि पुलिस को अपने वाहन खड़े करने में भी समस्या का सामना करना पड़ा रहा है. इसमें कुछ वाहन तो इतने ज्यादा पुराने हो गए हैं कि इसमें अब झाड़ियां तक उग आई हैं. 

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जब्त वाहनों की संख्या से आम लोग भी हैं परेशान

सगुना पुलिस चौकी, रूपसपुर थाना, राजीव नगर थाना और जक्कनपुर थाना में जब्त किये गए वाहनों के रखरखाव की वजह से आम लोगों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. थाने परिसर में जगह की कमी की वजह से अब जब्त वाहनों को सड़क किनारे खड़ा करना पड़ रहा है. इस वजह से आये दिन जाम जैसे हालात हो जाते हैं. इससे आम लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. लोगों का कहना है कि सरकार ऐसे वाहनों के लिए कोई व्यवस्था करे या फिर कानून में संशोधन करके इन वाहनों की नीलामी करें. 

लापरवाही से कबाड़खाना बन रहे थाने 

इस मामले पर थाना प्रभारियों का कहना है कि सुस्त कानून प्रक्रिया, थाना इंचार्ज की लापरवाही और अधिकारियों की तरफ से कोई पहल न होने की वजह से ये मामले लंबित होते हैं, जिस वजह से ये गाड़ियां थाने में ही कबाड़ में बदल जाती है. पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय सिंह का कहना है कि लंबी कानूनी प्रक्रिया की वजह से मामलों के निष्पादन में देरी होती है. इसी कारण से गाड़ियों की निलामी या रिलीज में समय लगता है और गाड़ियां परिसर में ही सड़ने लगती हैं. 

पुलिस,जिला प्रशासन और ज्यूडिशियरी में तालमेल की जरूरत

पटना के नामी वकील आनंदी सिंह का कहना है कि पुलिस अनुसंधान में देरी की वजह से मामलों की सुनवाई में काफी देर हो जाती है, जिसकी वजह से गाड़ियां रिलीज होने में विलंब होता है. इसके अलावा पुलिस और जिला प्रशासन के  अधिकारियों की अनुसंधानों को लेकर सुस्ती से भी कानूनी प्रक्रिया में विलंब होता है. इस तरह के मामलों में ज्यादातर चोरी की गाड़ियां होती है, जिनका कोई स्वामित्व नहीं होता है. इस वजह से थानों में गाड़ियों का अंबार लग गया है.