Nalanda Vishwavidyalaya: तुर्की से आए एक आतातायी बख्तियार खिलजी ने इस शिक्षा के मंदिर नालंदा विश्वविद्यालय को 1199 ईस्वी में आग लगवा दी थी. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसी विश्वविद्यालय की वजह से खिलजी की जान भी बची थी.
Trending Photos
पटनाः Nalanda Vishwavidyalaya: भारत ही नहीं पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाला दुनिया का पहला आवासीय और तक्षशिला विशिवविद्यालय के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त कर चुके नालंदा विश्वविद्यालय ने अब एक बार फिर से नया स्वरूप धारण कर लिया है. इस बार भी कोशिश यही है कि यह केवल शिक्षा का केंद्र नहीं बल्कि विश्व का सबसे यूनिक शोध केन्द्र बने. इस योजना पर तेजी से काम चल रहा है. बिहार में इस गौरवशाली अतीत की पुनर्स्थापना का काम लगभग अपने अंतिम चरण में है. विश्विद्यालय के परिसर का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है वह भी बिल्कुल पुराने विश्विद्यालय परिसर की तर्ज पर लेकिन आधुनिकता को समेटे हुए.
जानें कैसे अस्तित्व में आई नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की सोच
नीतीश कुमार की पहल ने नालंदा विश्वविद्यालय को एक बार फिर से आकार देना शुरू किया और अब इसका विकास क्रम अंतिम चरण में है. यहां स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज और स्कूल ऑफ इकोलॉजी एण्ड एनवायरमेंट स्टडीज की पढ़ाई शुरू भी हो गई है. इसकी स्थापना को लेकर दुनिया के 16 देशों के साथ सहमति बनी थी. 2010 को इसको लेकर संसद में एक ऐक्ट पारित किया गया था और इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था, इसी साल 21 सितंबर को इस पर महामहिम का मंजूरी भी मिल गई और 25 नवंबर को यह विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया था. पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की सोच का यह स्वरूप दुनिया भर में एक बार फिर से ज्ञान की अलख जगाएगा. डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की सलाह पर ही नीतीश कुमार ने इसके नए भवन के निर्माण का फैसला किया था. 456 एकड़ के विशाल परिसर में फैला हुआ यह विश्वविद्यालय आज अपने नए अस्तित्व में लौट आया है. इसके निर्माण को शुरू कराने में और इस विश्वविद्यालय के सपने को आकार देने में जितना नीतीश कुमार और डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का योगदान है उतना ही सुषमा स्वराज का भी है. अब इस विश्वविद्यालय के परिसर को देखकर ही आप इसकी भव्यता का अनुमान लगा सकते हैं. इसका डिजाइन बिल्कुल पुराने विश्वविद्यालय भवन की तर्ज पर ही तैयार किया गया है. इस परिसर के मेन गेट से प्रवेश पाते ही आपका मन यहां के खूबसूरत नजारे मोह लेंगे, यहां की सड़कों से अंदर गुजरते हुए आती फूलों की खुशबू और सामने पहाड़ियों की खूबसूरती आपको मंत्रमुग्ध कर देगी.
ये भी पढ़ें- 9 मंजिला इमारत में तीन विभाग, ऐसा था नालंदा पुस्तकालय जो 3 महीने जलता रहा
जिस विश्वविद्यालय की वजह से खिलजी की बची जान उसे ही जला डाला
तुर्की से आए एक आतातायी बख्तियार खिलजी ने इस शिक्षा के मंदिर नालंदा विश्वविद्यालय को 1199 ईस्वी में आग लगवा दी थी. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसी विश्वविद्यालय की वजह से खिलजी की जान भी बची थी. जी हां, तुर्की के उसी आतातायी इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी का. आपको बता दें कि एक बार खिलजी की तबीयत खराब हुई तुर्की के हकीमों ने उसका खूब उपचार किया लेकिन नतीजा वही खिलजी की बीमारी थी कि ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी. तब खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य से उपचार कराने की सलाह दी गई. खिलजी ने नालंदा से वैद्यराज राहुल श्रीभद्र को बुलवाया और ईलाज करने के कहा लेकिन शर्त रखी की वह किसी भी भारतीय औषधी का सेवन नहीं करेंगे. आचार्य मान गए उन्होंने कुरान के कुछ पन्ने के लिए खिलजी से कहा, खिलजी ने ऐसा किया और ठीक हो गए. दरअसल वैद्यराज ने कुरान के पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था. वही लेप खिजली थूक के साथ अंदर लेता रहा और वह ठीक हो गया. खिलजी को इसी बात का गुस्सा मन में रहा कि उसके हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है और अंततः अपने गुस्से की वजह से उसने पूरे नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर खंडहर में तब्दील कर दिया.
नालंदा विश्वविद्यालय में एक साथ पढ़ते थे 10 हजार से ज्यादा छात्र
कहते हैं कि बिहार के नालंदा स्थित इस विश्वविद्याल को पहला छात्रावास विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त था. इस विश्वविद्यालय में 8वीं से लेकर 12वीं शताब्दी तक पूरी दुनिया भर के छात्र सिक्षा ग्राहण करने आते थे. यह बताया जाता है कि इस विश्वविद्यालय में एक साथ करीब 10 हजार छात्रों के रहने और पढ़ने की व्यवस्था थी. यहां भारत के अलावा जापान, तिब्बत, चीन, कोरिया, तुर्की और इंडोनेशिया सहित कई देशों के छात्र पढ़ने आते थे. 10 हजार छात्रों को शिक्षा देने के लिए यहां करीबन 2 हजार से ज्यादा शिक्षक भी थे.
नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए देनी होती थी कठिन परीक्षा
आज किसी अच्छे शिक्षण संस्थान में आप शिक्षा ग्राहण करने की ख्वाहिश रखते हैं तो आपको इसके लिए प्रवेश परीक्षा से होकर गुजरना पड़ता है इसके बाद ही आपको यहां प्रवेश मिल पाता है. इसकी शुरुआत करने का श्रेय नालंदा विश्वविद्यालय को ही जाता है. कहते हैं यहां शिक्षा ग्रहण करने से पहले कठिन प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता था. यहां प्रवेश परीक्षा तीन कठिन चरणों में आयोजित की जाती थी और उत्तीर्ण छात्रों को ही यहां विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्राहण करने की अनुमति मिलती थी.