Caste Census: बिहार में लंबे सियासी उठापटक के बाद आखिरकार जातीय जनगणना करवाने का प्रस्ताव पास हो गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संचालन में हुई सर्वदलीय बैठक में प्रदेश में जातीय जनगणना करवाने का फैसला लिया गया.
Trending Photos
पटना: Caste Census: बिहार में लंबे सियासी उठापटक के बाद आखिरकार जातीय जनगणना करवाने का प्रस्ताव पास हो गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संचालन में हुई सर्वदलीय बैठक में प्रदेश में जातीय जनगणना करवाने का फैसला लिया गया. जल्द ही कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को पास करवाया जाएगा. आने वाले समय में अधिकारियों को भी जातीय जनगणना करवाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. केंद्र सरकार लगातार जातीय जनगणना के विरोध में बोल रही है, लेकिन बिहार भाजपा ने इस प्रस्ताव पर समर्थन दिया है. इसका नाम 'जात आधारित गणना' होगा. ऐसे में जानते है कि पहली बार जातीय जनगणना कब की गई थी और उस वक्त जातीय जनगणना में क्या डेटा सामने आया था.
1931 में हुई थी आखिरी बार जनगणना
आजाद भारत में जातीय जनगणना एक बार भी नहीं हुई है. दरअसल, देश आजाद होने से पहले साल 1931 में ब्रिटिश हुकुमत के दौरान जाति के आधार पर जनसंख्या के आंकड़े इकट्ठे किए गए थे. इसके बाद कभी भी जाति के आधार पर जनसंख्या के आंकड़े जारी नहीं हुए हैं. हालांकि अगर देखा जाएं तो साल 1931 से पहले भी यानी साल 1881 में जनगणना हुई थी. वैसे अगर देखा जाए तो सबसे पहले साल 1881 में जनगणना हुई थी और उसके बाद हर 10 साल में जनगणना होती गई, लेकिन 1931 के बाद जाति के आधार पर जनगणना के आंकड़ें सामने नहीं आए. हालांकि साल 1931 के बाद साल 1941 में जाति के आधार पर जनगणना तो हुई थी, लेकिन इसके आंकड़ें सार्वजनिक नहीं किए गए. इसके बाद भारत आजाद हो गया और फिर 1951 में आजाद भारत की पहली जनगणना करवाई गई. हालांकि, इस दौरान ही ये फैसला ले लिया गया था कि अब जाति के आधार पर जनसंख्या की गिनती नहीं होगी. लेकिन, जनगणना में सिर्फ एससी और एसटी के आंकड़ें जारी होते हैं और अन्य जातियों की कोई जानकारी नहीं दी जाती है.
फरवरी 2023 तक पूरी होगी जातीय जनगणना
जातीय जनगणना बिहार सरकार अपने ही संसाधनों से कराएगी. बिहार सरकार के द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक गणना कई स्तरों पर होगी. सामान्य प्रशासन को मुख्य जिम्मेदारी दी जाएगी. तो वहीं जिला स्तर पर जिला प्रशासन इसके पदाधिकारी होंगे. इसके साथ ही पंचायत स्तर पर भी जिम्मेदारी तय होगी. जातीय जनगणना के लिए 500 करोड़ का प्रावधान बिहार आकस्मिक निधि से किया जाएगा. जातीय जनगणना के लिए 2023 फरवरी माह की डेडलाइन तय की गई है.
जातिगत जनगणना पर क्यों मचा है घमासान?
बिहार में जदयू के खोते जनाधार को फिर से जीवित करने का सबसे बड़ा हथियार "जातीय जनगणना" को माना जा रहा है. इसीलिए नीतीश कुमार लगातार इस मुद्दे पर मुखर होकर बोलते दिखाई दे रहे हैं. पिछले दिनों पटना से लेकर दिल्ली तक नीतीश कुमार इस मुद्दे को उठाते नजर आये हैं. नीतीश कुमार के साथ तेजस्वी यादव भी जातिगत जनगणना पर सबसे आगे नजर आ रहे हैं. तेजस्वी यादव ने पूरे बिहार में इस मुद्दे पर यात्रा निकालने की भी बात की थी. इसके साथ ही लगातार जातिगत जनगणना पर उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना भी साधते रहे हैं.
केंद्र में सत्ता में बैठी भाजपा लगातार विभिन्न मंचों से जातिगत जनगणना का विरोध करती रही है लेकिन बिहार भाजपा इस मुद्दे का समर्थन करते नज़र आई. इसकी वजह क्या है, अभी तक किसी भी भाजपा नेता के तरफ से नहीं साफ किया गया है. लेकिन माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बढ़ते नजदीकी के कारण भाजपा ने यह निर्णय लिया है. हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार सरकार कैसे जातिगत जनगणना की प्रक्रिया पूरी करेगी? साथ ही यह भी देखना होगा कि क्या इस जनगणना से किसी का हित होगा या सिर्फ राजनीतिक लाभ हानि का विषयमात्र बन कर रह जायेगी?
यह भी पढ़े- आरजेडी नेता का दावा, राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर नीतीश का समर्थन करेंगे तेजस्वी यादव