Earthquake in Bihar: 15 जनवरी 1934 का वो दिन आज भी बिहार के इतिहास में सबसे काला दिन है. इस भूकंप में बिहार के मुंगेर और मुज्जफरपुर को भारी क्षति पहुंची थी.
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पटनाः Earthquake in Bihar: सन 1934 की शुरुआत हुए 15वां दिन था. बिहार, ठंड में ठिठुर रहा था और मकर संक्रांति के अगले दिन की दोपहरी थी. थोड़ी सुस्त, अलसाई हुई और उनींदी भी. घड़ी ने 2 बजाए और मिनट का कांटा अपने अगले सफर पर निकला ही था कि 2 बजकर 13 मिनट पर धरती कांप उठी. जोर से हिली और कई जगहों से फट गई. शोर मचा भूकंप-भूकंप, लेकिन जब तक लोग कुछ समझ पाते-संभल पाते, 11 हजार लोगों की जानें अगला पूरा होने से पहले चली गईं. 2 बजकर 14 मिनट पर सर्दी की वो दुपहर त्रासदी भरी बन चुकी थी. वहां अब चीखें थीं, रोना था, दहाड़ें थीं और जब ये शांत हुआ तो पसरा था गम, सन्नाटा और बची रह गई थीं आंसुओं से सूखी आंखें.
नेपाल तक हिल गई थी धरती
15 जनवरी 1934 का वो दिन आज भी बिहार के इतिहास में सबसे काला दिन है. इस भूकंप में बिहार के मुंगेर और मुज्जफरपुर को भारी क्षति पहुंची थी. भूकंप 15 जनवरी की दोपहर करीब 2.13 बजे आया था. जिसका केंद्र माउंट एवरेस्ट के दक्षिण में लगभग 9.5 किमी पूर्वी नेपाल में स्थित था. इस दौरान बिहार के पूर्णिया से लेकर चमपारण तक और काठमांडू से लेकर मुंगेर तक सबसे अधिक जानमाल की हानि हुई थी. इस दिन आए भूकंप की तीव्रता 8.5 थी. इसकी चपेट में नेपाल तक के लोग आए थे.
राष्ट्रीय नेताओं ने खुद उठा ली थीं कुदालें
मुंगेर में भूकंप से शहर मलबे में तब्दील हो गया ( Earthquake of 1934) था. हर ओर तबाही का मंजर नजर आ रहा था. मलवा हटाने तके लिए महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, सरोजिनी नायडू जैसे महापुरुषों ने खुद कुदाल और फावड़ा उठा लिया था. प्रलयंकारी भूकंप से मुंगेर पूरी तरह मलबे में तब्दील हो गया था. मुंगेर किले का प्रवेश द्वार शहर का बाजार, जमालपुर का रेलवे स्टेशन सहित कई इलाके में भूकंप ने तबाही का तांडव मचा दिया था. कई दिनों तक मलबे को हटाने का काम चलता रहा है. भूकंप की जानकारी मिलने के बाद दिल्ली से महात्मा गांधी मुंगेर आ गए थे.
ढह गई थीं सारी इमारतें
मुजफ्फरपुर में भूकंप के कारण धूल मिट्टी से लोगों को सांस लेना मुश्किल हो गया था. रेत के कारण कई स्थानों पर पानी का स्तर कम हो गया था. मुजफ्फरपुर में कई इमारतों को क्षति पहुंची थी. कई इमारतें तो ढह भी गई थीं. जबकि पक्की इमारतों को भी नुकसान का सामना करना पड़ा. नेपाल में काठमांडू. भकतपुर, और पाटन भी बुरी तरह तहस-नहस हो गए थे. यहां कई इमारतें ढह गई थीं. जमीन पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गईं, जिनमें गहराइयां जानलेवा थी. काठमांडू की कई सड़कों को भी नुकसान हुआ. सीतामढ़ी की हालत इतनी बुरी थी कि शायद ही यहां कोई घर बचा हो, जिसे नुकसान ना पहुंचा हो. भागलपुर जिले में कई इमारतें ढह गईं. पटना में भी कई इमारतें क्षतिग्रस्त हुईं. मधुबनी के पास स्थित राजनगर में सभी कच्ची इमारतें ढह गई थीं.
जब द्रवित हो गए थे राजेंद्र प्रसाद
भूकंप का असर इतना गहरा था कि सालभर यही लगता रहा कि भूकंप कल ही आया था. हालात ये थे 15 जनवरी को आए भूकंप से पूरे साल बिहार में रोना-पीटना मचा रहा था. तब जननेता रहे डॉ. राजेंद्र प्रसाद तो कई बार भावुक हो गए थे. ऐसा ही एक जिक्र उन्होंने अपने पत्रों में किया है. 6 दिसंबर 1934 को एक पत्र उन्होंने मुजफ्फरपुर के नामी रईस यदुनाथ बाबू के नाम लिखा था. भूकंप त्रासदी पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने लिखा था- ‘जो विपत्ति आम लोगों पर आई है, उसे सुन कर हृदय दहल जाता है. ऐसी अवस्था में ईश्वर के सिवा दूसरा कोई सहारा नहीं. मैं यही प्रार्थना करता हूं कि आम जन को इस चक्र को सहन करने की शक्ति प्रदान करें.’
आज भी मौजूद हैं जख्म के निशान
1934 में बिहार में आया भूकंप इतना शक्तिशाली था कि इसके बाद बिहार लगातार अकाल और बाढ़ से जूझते हुए कमजोर सा पड़ गया. आलम ये रहा कि 1980 में आर्थिक विश्लेषक आशीष बोस ने तत्कालीन पीएम राजीव गांधी के सामने एक पेपर प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने बिहार को बीमारू राज्यों में सबसे पहले रखा. हालांकि इसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश भी शामिल थे, लेकिन बिहार उस भूकंप का जख्म कई सालों तक झेलता रहा. आज भी मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, दरभंगा में पुरानी इमारतें तिरछी हैं. कई गड्ढों का अचानक निर्माण भूकंप के समय ही हुआ था.