Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary: सादगी और सदाचार की प्रतिमूर्ति थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जयंती पर पढ़िए खास किस्से
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Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary: सादगी और सदाचार की प्रतिमूर्ति थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जयंती पर पढ़िए खास किस्से

Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary: डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने के बाद वे आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए. मगर परिवार की ज़िम्मेदारी उनके ऊपर थी. 15-20 दिन तक काफ़ी सोचने समझने के बाद अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद और पत्नी राजवंशी देवी को भोजपुरी में पत्र लिखकर देश सेवा करने की अनुमति मांगी. 

Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary: सादगी और सदाचार की प्रतिमूर्ति थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जयंती पर पढ़िए खास किस्से

पटनाः Dr. Rajendra Prasad Birth Anniversary: राष्ट्रपति भवन में जब 12 वर्षों तक प्रथम राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद रहे थे, तो इस दौरान यह आलीशान इमारत सादगी की मूरत बन चुका था. आंगन में तुलसी, द्वार पर रंगोली, भवन में आरती और दीपमाला, इसके अलावा सादा जीवन-सादा भोजन.

प्रथम राष्ट्रपति के साथ देश की प्रथम महिला नागरिक की जिम्मेदारी निभाने वाली राजवंशी देवी ने भी कभी अपने पद और मान पर रत्ती भर का अहंकार नहीं किया. 3 दिसंबर प्रथम राष्ट्रपति की जयंती पर जानिए उनकी सादगी, संस्कृति और सदाचार से जुड़े किस्से. 

जब नौकर पर दिखाया गुस्सा
डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जितने क्षमाशील थे अपनी गलती का जरा सा भी भान होने पर क्षमा मांगने में भी पीछे नहीं हटते थे. एक दिन सुबह कमरे की झाड़पोंछ करते हुए राष्ट्रपति के पुराने नौकर तुलसी से एक हाथी दांत का पेन टूट गया. राजेन्द्र प्रसाद बहुत गुस्सा हुए. यह पेन किसी की भेंट थी.

उन्होंने अपना गुस्सा दिखाने के लिये तुरन्त तुलसी को अपनी निजी सेवा से हटा दिया.

फिर मांग ली माफी
उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे, लेकिन दिन भर उन्हें लगता रहा कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया है. जैसे ही उन्हें मिलने वालों से अवकाश मिला राजेन्द्र प्रसाद ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया और उससे कहा- "तुलसी मुझे माफ़ कर दो." तुलसी इतना चकित हुआ कि उससे कुछ बोला ही नहीं गया.

राष्ट्रपति ने फिर नम्र स्वर में दोहराया,
"तुलसी, तुम क्षमा नहीं करोगे क्या?" इस बार सेवक और स्वामी दोनों की आंखों में आंसू आ गये.

अतिथियों की उतारी जाती थी आरती
राष्ट्रपति भवन में जब कभी विदेशी अतिथि आते तो उनके स्वागत में उनकी आरती की जाती थी और राजेंद्र बाबू चाहते थे कि विदेशी मेहमानों को भारत की संस्कृति की झलक दिखाई जाए. 13 साल की उम्र में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से हो गया. इस समय वे स्कूल में पढ़ रहे थे.

राष्ट्रपति भवन में अंग्रेज़ियत का बोलबाला था जबकि राजवंशी देवी मानती थीं कि 'देश छोड़ो तो छोड़ो मगर अपना वेश मत छोड़ो. अपनी संस्कृति क़ायम रखो'.

बड़े भाई ने दी अनुमति तो लड़ी आजादी की लड़ाई
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने के बाद वे आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए. मगर परिवार की ज़िम्मेदारी उनके ऊपर थी. 15-20 दिन तक काफ़ी सोचने समझने के बाद अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद और पत्नी राजवंशी देवी को भोजपुरी में पत्र लिखकर देश सेवा करने की अनुमति मांगी. उनका ख़त को पढ़कर उनके बड़े भाई रोने लगे. वे सोचने लगे कि उनको क्या जवाब दें. बड़े भाई से सहमति मिलने पर ही राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता आंदोलन में उतरे.

बाबू राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के भोजपुर क्षेत्र में जीरादेई नाम के गांव में हुआ था जो अब सिवान ज़िले में है. देश भारत रत्न बाबू राजेंद्र प्रसाद को शत-शत नमन करता है. 

 

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