Diwali 2022 : चाइनीज लाइट की रोशनी में दीयों का खो सकता है उजियारा
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Diwali 2022 : चाइनीज लाइट की रोशनी में दीयों का खो सकता है उजियारा

कुम्हार विजय प्रजापति ने बताया कि मिट्टा का दीया बनाने वाले कुम्हार परिवार के लोगों का इकलौता मिट्टी के सामानों को बेचने से ही घर का खर्च चलता है. साथ ही बच्चों की पढ़ाई के लिए फिस भी इनी मिट्टी के दीयो को बेचकर जुटाई जाती है. 

Diwali 2022 : चाइनीज लाइट की रोशनी में दीयों का खो सकता है उजियारा

गया : कैमूर जिले में दीपावली पर्व को लेकर दीया बनाने वाले कुम्हार काफी उत्साहित हैं. पिछले 3 महीने से इस पर्व के लिए दिया बनाने में पूरा परिवार जुट जाता है. महंगे दामों पर मिट्टी खरीद कर दिन-रात परिश्रम कर परिवार दिया तो बना रहा है, लेकिन उसे अंदर ही अंदर अब यह डर सता रहा है कि दीयों की चमक कहीं चाइनीज लाइट की रौशनी में दब न जाए. अगर ऐसा हुआ तो पूरे परिवार की माली हालत खराब हो जाएगी.

तीन महीने से दीया तैयार कर रहा परिवार
कुम्हार विजय प्रजापति ने बताया कि मिट्टा का दीया बनाने वाले कुम्हार परिवार के लोगों का इकलौता मिट्टी के सामानों को बेचने से ही घर का खर्च चलता है. साथ ही बच्चों की पढ़ाई के लिए फिस भी इनी मिट्टी के दीयो को बेचकर जुटाई जाती है. बिना सरकारी मदद के ही पूरा परिवार इस कार्य में लगा हुआ है. मिट्टी के दीए बनाने वाले सूर्य नाथ प्रजापति और विजय प्रजापति बताते हैं पिछले 3 महीने से इस दीपावली पर्व को लेकर पूरा परिवार दीया बना रहे है. एक दिन में 1000 से 3000 पीस दीया लगभग पूरा परिवार एक साथ काम करते हैं, तो बन पाता है. दीया बनाने के लिए 15 सौ रुपए प्रति ट्रैक्टर ट्राली मिट्टी खरीदना पड़ता है और फिर उस मिट्टी को ₹500 देकर घर के अंदर डलवा कर रखवाते हैं.

दीयों की बिक्री पर निर्भर है हमारी दिवाली
बता दें कि लगभग 10 दिन उस मिट्टी को दीया बनाने लायक तैयार करने में लग जाता है. जब मिट्टी तैयार होता तो पूरा परिवार इस मिट्टी से दीया इस उम्मीद में बनाते हैं कि दीया अगर अच्छा बिका तो हमारे घर भी अच्छे तरीके से दिवाली मन पाएगा. सरकार से हम लोगों की गुहार है सरकार हमें मिट्टी कम कीमत पर उपलब्ध करा दें. हमारे मिट्टी के बने चीजों की डिमांड दीपावली और पूजा पाठ में हीं उपयोग होता है. इसलिए हम चाहते हैं कि लोग चाइनीज लाइट खरीदने की जगह पर हमारे हाथों के बनाए हुए मिट्टी के दीया खरीदें. जिससे हमारे भी परिवार का खर्च चल सके.

इनपुट - मुकुल जायसवाल

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