Chhath Mahaparv: द्रौपदी ने इस गांव में की थी सबसे पहले छठ पूजा, आज भी मौजूद हैं निशान
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Chhath Mahaparv: द्रौपदी ने इस गांव में की थी सबसे पहले छठ पूजा, आज भी मौजूद हैं निशान

Chhath Puja Mahaparv: छठ पर्व की कथाओं की बात करें, तो ये कहानियां कई पौराणिक किरदारों से होकर गुजरती हैं. रामायण से लेकर महाभारत तक में इस कथा के छिटपुट वर्णन मिलते हैं. दरअसल छठ पूजा इतनी पुरानी और विस्तृत है कि समय के साथ इसका स्वरूप बड़ा होता गया है. 

Chhath Mahaparv: द्रौपदी ने इस गांव में की थी सबसे पहले छठ पूजा, आज भी मौजूद हैं निशान

पटनाः Chhath Puja Mahaparv: इतिहास कहता है, सभ्यताओं ने वहीं-वहीं पनपीं, जहां-जहां पानी की मौजूदगी आसानी से रही. यही वजह है कि इतिहास के पन्ने नदी सभ्यताओं से पटे पड़े हैं. यहां सिंधु घाटी सभ्यता है. नील नदी सभ्यता है और भारत में गांगेय सभ्यता इसके खास उदाहरण हैं.

  1. झारखंड की राजधानी रांची के नगड़ी गांव का है पौराणिक महत्व
  2. यहां एक सोते के पास द्रौपदी ने की थी पांडवों के साथ छठ पूजा 

नदियों के कारण बसी सभ्यताओं की वजह से नदियों को पूजा योग्य सम्मान मिला और लोक आस्था में यह पद्धति रच-बस गई. हर क्षेत्र में नदी और जल स्त्रोत को सम्मान देने का अपना तरीका है. बिहार और झारखंड में छठ महापर्व (Chhath Mahaparv) नदी के या यूं कहें जल के सम्मान का ही एक तरीका है. 

इस गांव में छठ पूजा की प्राचीनता के अंश
छठ पर्व की कथाओं की बात करें, तो ये कहानियां कई पौराणिक किरदारों से होकर गुजरती हैं. रामायण से लेकर महाभारत तक में इस कथा के छिटपुट वर्णन मिलते हैं. दरअसल छठ पूजा इतनी पुरानी और विस्तृत है कि समय के साथ इसका स्वरूप बड़ा होता गया है. कहते हैं कि द्रौपदी ने महाभारत युद्ध से पहले ये पूजा की थी.

हो सकता है द्रौपदी ने आज की तरह सूपा हाथ में लेकर अनुष्ठान न किया हो, लेकिन उनकी पूजा के साक्ष्य का साक्षी झारखंड के ये गांव आज भी है. 

छठ की कथा का साक्षी है नगड़ी गांव
ये कहानी है झारखंड की राजधानी रांची में स्थित नगड़ी गांव की. मान्‍यता के मुताबिक रांची के नगड़ी गांव में द्रौपदी ने छठ पूजा (Chhath Puja) की थी. इस गांव में छठव्रती न तो नदी में अर्घ्य देती हैं और ना ही तालाब में. नगड़ी में एक सोते के पास छठ पूजा (Chhath Puja) की जाती है.

कहा जाता है इसी सोते के पास द्रौपदी भी सूर्य देव की पूजा करती थीं. उन्हें अर्घ्य देती थीं. दरअसल वनवास के समय झारखंड के इस इलाके में पांडवों ने कुछ वक्‍त बिताया था. इसी पूजा से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने द्रौपदी को अक्षय पात्र दिया था. 

अर्जुन ने बनाया था सोता
कथा के मुताबिक, जब पांडव वनवास के समय जंगलों में भटक रहे थे, तो एकदिन उन्हें प्यास लगी. तेज धूप और गर्मी से उनके हाल-बेहाल हो रहे थे. दूर-दूर तक उन्हें पानी नहीं मिला. तब द्रौपदी ने अर्जुन को जमीन में तीर मारकर पानी निकालने को कहा. अर्जुन ने धरती में तीर मारा तो पानी का एक सोता फूट पड़ा.

पांडव इस बहते सोते से अपनी प्यास बुझाते इससे पहले द्रौपदी ने उन्हें रोक दिया. धैर्य का परिचय देते हुए द्रौपदी ने पहले सूर्य देव को अर्घ्य दिया और कहा- हमारी इतनी कठिन परीक्षा लेने के लिए आपको भी अपना ताप सामान्य से अधिक बढ़ा लेना पड़ा होगा. इस जल से पहले आप शीतल हो लीजिए और हम पर कृपा कीजिए. 

द्रौपदी ने की थी सूर्य पूजा
ऐसा कहकर द्रौपदी ने अंजुलि से सूर्य देव को अर्घ्य दिया. सूर्यदेव द्रौपदी के दृढ़ निश्चय और उसकी आस्था देखकर प्रसन्न हो गए. उन्होंने अपना तेज कम कर लिया.

इसके बाद यह द्रौपदी और पांडवों का रोज का नियम बन गई. कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को द्रौपदी सूर्य की विशेष पूजा करती थी. जिससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें अक्षय पात्र दिया था. 

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