यह उर्वरक संयंत्र कोल इंडिया लिमिटेड और एनटीपीसी का संयुक्त उपक्रम है और इसकी स्थापना पर लगभग आठ हजार करोड़ रुपये की लागत आयी है.
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रांची: झारखंड के सिंदरी में स्थित देश के पहले और सबसे पुराने उर्वरक कारखाने में पूरे दो दशक के बाद फिर से बहार लौटेगी. तकनीक पुरानी पड़ जाने और लगातार नुकसान की वजह से यह कारखाना 31 दिसंबर 2002 को बंद हो गया था. अब इसकी जगह यहां स्थापित किये जा रहे नये संयंत्र का निर्माण कार्य लगभग पूरा कर लिया गया है. जुलाई के आखिरी हफ्ते या अगस्त से यहां उत्पादन शुरू हो जाने की उम्मीद है.
हिन्दुस्तान उर्वरक एंड रसायन लिमिटेड के इस नये संयंत्र की शुरूआत से लगभग ढाई हजार लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर नौकरी और दस से पंद्रह हजार लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलने की संभावना है. इस कारखाने के पुनरुद्धार में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत तौर पर दिलचस्पी ली है. 25 मई, 2018 को उन्होंने खुद कारखाने के पुनर्निर्माण की आधारशिला रखी थी.
यह उर्वरक संयंत्र कोल इंडिया लिमिटेड और एनटीपीसी का संयुक्त उपक्रम है और इसकी स्थापना पर लगभग आठ हजार करोड़ रुपये की लागत आयी है. हालांकि शुरूआत में इसका बजट 62 सौ करोड़ रुपये तय किया गया था, लेकिन कोविड के चलते निर्माण कार्य में हुई देरी की वजह से लागत बढ़ गयी है. सिंदरी संयंत्र के ग्रुप जनरल मैनेजर कामेश्वर झा ने बताया कि जुलाई अंतिम हफ्ते या अगस्त से यहां उत्पादन की शुरूआत हो जायेगी. इस संयंत्र से प्रतिदिन 2250 मीट्रिक टन अमोनिया और 3850 टन यूरिया के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. यहां से उत्पादित होने वाला यूरिया नीम कोटेड होगा. कृषि के लिए इसे आदर्श उर्वरक माना जाता है.
हालांकि, इस नये संयंत्र की शुरूआत की तीन डेडलाइन पार हो चुकी है. शिलान्यास के वक्त इसे दो साल के भीतर चालू करने का लक्ष्य तय किया गया था, लेकिन कोविड के चलते काम धीमा पड़ गया. इसके बाद दो बार छह-छह महीने का एक्सटेंशन दिया गया. मई 2021 में भी इसे शुरू नहीं किया जा सका. इसके बाद 17 नवंबर 2021 की तारीख तय की गयी थी, लेकिन तब भी कुछ तकनीकी अड़चनों के चलते इसकी टेस्टिंग का काम पूरा नहीं हो पाया.
सिंदरी में स्वतंत्र भारत के पहले उर्वरक कारखाने की शुरूआत 2 मार्च 1951 को हुई थी. हालांकि, इसकी नींव 1934 में बंगाल में पड़े भीषण अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार के कार्यकाल में ही डाल दी गयी थी. फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के इस संयंत्र का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है, लेकिन 31 दिसंबर 2002 में यह कारखाना बंद हो गया था. इसकी वजह से हजारों लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा था. इसके साथ ही देश की इस मशहूर उर्वरक नगरी में मायूसी पसर गयी थी.
इसके बाद से ही इस कारखाने के पुनरुद्धार की मांग चल रही थी. अब नये सिरे से यहां हिन्दुस्तान उर्वरक एंड रसायन लिमिटेड के संयंत्र की स्थापना होने से सिंदरी और धनबाद के इलाके में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार की उम्मीदें बढ़ी हैं. सिंदरी के साथ-साथ बिहार के बरौनी में भी उर्वरक संयंत्र का निर्माण चल रहा है. इन दोनों संयंत्रों का निर्माण फ्रांस की कंपनी टेक्निप कर रही है.
(आईएएनएस)