बेहद खास रही है झारखंड राज्य गठन की पूरी कहानी, जानिए किन-किन नेताओं का रहा है योगदान
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बेहद खास रही है झारखंड राज्य गठन की पूरी कहानी, जानिए किन-किन नेताओं का रहा है योगदान

जयपाल सिंह मुंडा (Jaipal Singh Munda) के बाद कई दिग्गज चेहरे आए, जिन्होंने झारखंड राज्य आंदोलन की कमान संभाली. इनमें एन ई होरो, सुशील कुमार बागे, बागुन सोंब्रई और रामदयाल मुंडा का नाम प्रमुख है. 

बेहद खास रही है झारखंड राज्य गठन की पूरी कहानी (फाइल फोटो)

Ranchi: झारखंड अलग राज्य की मांग का इतिहास काफी पुराना है. झारखंड मामलों के जानकार और आदिवासी समुदाय पर अध्ययन करने वाले मानते हैं कि सबसे पहले छोटानागपुर उन्नति समाज ने 1915 में ये मांग उठाई थी, इसके बाद आदिवासी महासभा ने इस मुद्दे को स्वर दिया. आदिवासी महासभा का गठन 1938 में जयपाल सिंह मुंडा (Jaipal Singh Munda) ने किया था.  इसके बाद में जयपाल सिंह मुंडा (Jaipal Singh Munda) ने झारखंड पार्टी का गठन किया और 1963 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए.

जयपाल सिंह मुंडा (Jaipal Singh Munda) के बाद कई दिग्गज चेहरे आए, जिन्होंने झारखंड राज्य आंदोलन की कमान संभाली. इनमें एन ई होरो, सुशील कुमार बागे, बागुन सोंब्रई और रामदयाल मुंडा का नाम प्रमुख है. इसके बाद 1960 से लेकर 1970 के बीच बिरसा सेवा दल, झारखंड क्रांति दल, हूल झारखंड जैसे कई संगठन बनकर तैयार हो गए. झारखंड अलग राज्य की मांग तो आज़ादी के पहले से ही चल रही थी लेकिन जब 1955-56 में केंद्र सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया और इसमें झारखंड अलग राज्य की सिफारिश नहीं की तो झारखंड अलग राज्य की मांग ने ज़ोर पकड़ लिया. आंदोलनकारियों की मांग थी कि बिहार, बंगाल, उड़ीसा और तत्कालीन मध्य प्रदेश के सीमावर्ती 26 ज़िलों को मिलाकर एक अलग राज्य झारखंड बनाया जाए.

जयपाल सिंह मुंडा (Jaipal Singh Munda) के कांग्रेस में शामिल होने के बाद झारखंड अलग राज्य आंदोलन 1963 से लेकर 1972 तक धीमी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा लेकिन इस आंदोलन में झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो ने नई जान डाल दी. मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी में तक़रीब 25 साल काम करने के बाद लोकसभा राज्यसभा और विधानसभा सदस्य रहने के बाद जब स्व. महतो को अलग राज्य आंदोलन के लिए एक समर्पित राजनीतिक पार्टी की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया. झारखंड मुक्ति मोर्चा का पहला स्थापना दिवस धनबाद के गोल्फ मैदान में 4 फरवरी 1973 को मनाया गया था. विनोद बिहारी महतो की वजह से झारखंड की कुड़मी महतो जाति का समर्थन तो पार्टी को हासिल ही था, महामंत्री बने शिबू सोरेन (Shibu Soren)ने सूबे के आदिवासियों को पार्टी से जोड़ दिया, इसके अलावा कॉमरेड ए के राय जैसे जुझारू लीडर भी पार्टी के साथ जुड़े जिससे अलग राज्य आंदोलन को मजबूत सुर हासिल हुआ. विनोद बिहारी महतो 1983 तक पार्टी के अध्यक्ष रहे. इसके बाद अध्यक्ष अमर शहीद निर्मल महतो बने. इसके बाद विनोद बिहारी महतो ने 1987 में झारखंड समन्वय समिति का गठन किया जिसमें झारखंड नाम वाली तमाम पार्टियों और अलग-अलग सहमना संगठनों को शामिल किया गया. इसमें कुल 52 संगठन शामिल हुए. इसके बाद 15 नवंबर 1987 को झारखंड के मोरहाबादी मैदान में एक विशाल रैली का आयोजन हुआ. इसके बाद 31 जनवरी 1989 को डुमरी में जीटी रोड जाम कर दिया गया, 23 अप्रैल 1989 को झारखंड बंद कर दिया गया, ये सारे आयोजन सफल रहे और इसने केंद्र सरकार का ध्यान अपनी तरफ खींचा.

आगे बढ़े इससे पहले इस लेख में शिबू सोरेन (Shibu Soren) का जिक्र करना जरूरी है. शिबू सोरेन (Shibu Soren)को कुछ लोग गुरूजी तो कुछ लोग दिशोम गुरू भी कहते हैं. सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक आंदोलन को जोड़ दें तो शिबू सोरेन (Shibu Soren)का संघर्ष क़रीब 50 सालों का है. अपना शुरुआती समय शिबू सोरेन (Shibu Soren)ज्यादातर पारसनाथ की पहाड़ियों पर बिताते थे. शिबू सोरेन (Shibu Soren)ने सबसे पहले आदिवासियों को महाजनों के चंगुल से छुड़ाने के लिए और आदिवासी समाज में व्यापत कुरीतियों को दूर करने के लिए आंदोलन चलाया. इसके बाद जब शिबू सोरेन (Shibu Soren)झारखंड आंदोलन से जुड़े तो आंदोलन के सर्वमान्य नेता के तौ पर उभरे. पिता के मौत के बाद पढ़ाई छोड़ चुके शिबू सोरेन (Shibu Soren)ने अपना संघर्ष 13-14 साल की उम्र से ही शुरू कर दिया था. इसके बाद शिबू सोरेन (Shibu Soren)आदिवासियों की लड़ाई लड़ने लगे, और धीरे-धीरे उन्होंने अपने क़दम अलग राज्य आंदोलन की तरफ बढ़ा दिया. सियासत की हर कुर्सी शिबू सोरेन (Shibu Soren)को मिली, आरोप भी लगे लेकिन इसके बावजूद आज सभी मानते हैं कि अगर अलग झारखंड राज्य का सबसे ज्यादा श्रेय किसी को जाता है तो वो हैं दिशोम गुरू यानी शिबू सोरोन.

झारखंड समन्वय समिति के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने अगस्त 1988 में झारखंड मामलों से संबंधित समिति का गठन किया, जिसमें झारखंड आंदोलन के प्रतिनिधि, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि, राज्य सरकार के प्रतिनिधि और झारखंड मामलों के विशेषज्ञों को शामिल किया गया. इस समिति ने मई 1990 में केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट पेश की. इसमें कहा गया कि झारखंड आंदोलन की मांग वास्तविकता के धरातल पर खड़ा है और आज़ादी के 40 साल बाद भी झारखंड के इलाक़े में शोषण जारी है इसलिए समाधान जरूरी है. समिति ने माना कि झारखंड आंदोलन केवल आदिवासियों का आंदोलन नहीं है बल्कि इसके साथ प्रस्तावित झारखंड इलाक़े का सर्व समाज है.

इसके बाद केंद्र सरकार बदल गई और वीपी सिंह भारत के प्रधानमंत्री हो गए. सरकार बदलने के बाद झारखंड आंदोलन से जुड़े लोगों को ये डर सताने लगा कि कहीं अलग राज्य का मामला लंबे समय के लिए खटाई में ना पड़ जाए. इसी मामले को लेकर एन ई होरो के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन गृहमंत्री पीएम सईद से मुलाक़ात की. 25 अप्रैल 1991 को गृह मंत्री ने झारखंड विषयक समिति की बैठक बुलाई. ये बैठक तत्कालीन गृह राज्य मंत्री सुबोध कांत सहाय के अध्यक्षता में हुई. लेकिन इस बैठक में रिपोर्ट को रखा नहीं गया और कहा गया कि इसमें कुछ सुधार जरूरी है. इसके बाद 14 मई 1991 को समिति की बैठक फिर बुलाकर रिपोर्ट को रखा गया.

वीपी सिंह की सरकार भी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और केंद्र में चंद्रशेखर की अगुवाई में सरकार का गठन हुआ. चंद्रशेखर की सरकार भी कम दिन चली और इसमें बहुत कुछ नहीं हो पाया. लेकिन एक बात इन दोनों प्रधानमंत्रियों के साथ ये थी कि ये छोटे राज्यों के समर्थक थे. लेकिन तभी राजीव गांधी की मृत्यु हो गई, इससे झारखंड राज्य आंदोलन को बड़ा झटका लगा. आंदोलनकारी मानते थे कि राजीव गांधी जैसे संवेदनशील व्यक्ति के रहते हुए आसानी से राज्य हासिल किया जा सकता था. लेकिन बाद में नरसिंह राव की सरकार बनी और उनकी सरकार पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत देकर समर्थन लेने का आरोप भी लगा. इससे झारकंड राज्य आंदोलन को की छवि को गहरा धक्का लगा.

27 सितंबर 1994 को केंद्र सरकार, बिहार सरकार और झारखंड आंदोलनकारी प्रतिनिधियों के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ और झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद पर हस्ताक्षर हुआ. ये समझौता एक विधेयक के रूप में दिसंबर 1994 में पारित हुआ और राज्यपाल की मंजूरी के बाद 1995 में अंतरिम परिषद का गठन हुआ. अंतरिम परिषद में झारखंड को मिले अधिकार और शक्तियों पर भी केंद्र और राज्य सरकार की नीयत साफ नहीं रह पाई. फिर आया. इसके बाद देश में 1996 का लोकसभा चुनाव हुआ और देश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर एकबार फिर से शुरू हो गया. दो साल के भीतर 3 प्रधानमंत्री बदल गए और फिर से 1999 में लोकसभा का चुनाव हुआ. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में देश में बीजेपी की गठबंधन सरकार सामने आई.

केंद्र की अटल सरकार में वन पर्यावरण राज्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे दुमका से लोकसभा सांसद बाबूलाल मरांडी वनांचल बीजेपी के अध्यक्ष भी थे. जब ये साफ हो गया कि उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड, मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ और बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बनाया जा रहा है और झारखंड में बीजेपी को ही बहुमत है तो पार्टी ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड का पहला मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया. आखिर बाबूलाल ही वो शख्स थे जिन्होंने दुमका से शिबू सोरेन (Shibu Soren)को चुनाव हराया था . 15 नवंबर 2000 को अटल बिहारी सरकार ने झारखंड को अलग राज्य बना दिया जिसके पहले मुख्यमंत्री हुए बाबूलाल मरांडी. इस तरह गठन हुआ झारखंड का.

 

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