Yogini Mandir Godda: कोई दरार न कोई खिड़की, फिर भी प्रकाश से भरी रहती है माता की गुफा
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Yogini Mandir Godda: कोई दरार न कोई खिड़की, फिर भी प्रकाश से भरी रहती है माता की गुफा

झारखंड के गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड में स्थित है मां योगिनी मंदिर, जिसे मां योगिनी स्थान भी कहते हैं. जिला मुख्यालय से मात्र 15 किलोमीटर दूर बारकोपा में स्थित यह श्रद्धास्थल शास्त्रों में वर्णित 52 शक्तिपीठों में से एक है.

Yogini Mandir Godda: कोई दरार न कोई खिड़की, फिर भी प्रकाश से भरी रहती है माता की गुफा

गोड्डाः Yogini Mandir Godda: प्रकृति ने झारखंड राज्य को जितनी खूबसूरती सौगात में दी है तो वहीं प्राचीनता ने जमीन के इस टुकड़े को आध्यात्म की एक अलग ही विरासत दे रखी है. वेदों-पुराणों में जितनी भी आदि-अनादि घटनाओं का जिक्र मिलता है, झारखंड राज्य के धार्मिक स्थल कई बार उनके साक्षी बनते हुए दिखाई देते हैं. ऐसी ही एक रहस्यमय, पवित्र और आस्था-श्रद्धा से भरपूर स्थली है मां योगिनी स्थान. 

गोड्डा जिले में है स्थित
झारखंड के  गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड में स्थित है मां योगिनी मंदिर, जिसे मां योगिनी स्थान भी कहते हैं. जिला मुख्यालय से मात्र 15 किलोमीटर दूर बारकोपा में स्थित यह श्रद्धास्थल शास्त्रों में वर्णित 52 शक्तिपीठों में से एक है. मां योगिनी का यह प्राचीन मंदिर तंत्र साधकों के बीच बेहद लोकप्रिय है.

इसका इतिहास काफी पुराना है. ऐतिहासिक दस्तावेजों को खंगालें तो यह मंदिर द्वापर युग से यहां विराजनमान है. यहां पांडवों ने अपने अज्ञात वर्ष के कई दिन बिताए थे. इसकी चर्चा महाभारत में भी है. तब यह मंदिर ‘गुप्त योगिनी’ के नाम से प्रसिद्ध था.

शिव-सती से जुड़ी है कथा
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, पत्नी सती के अपमान से क्रोधित होकर भगवान शिव जब उनका जलता हुआ शरीर लेकर तांडव करने लगे थे तो संसार को विध्वंस से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शव के कई टुकड़े कर दिए थे. इसी क्रम में उनकी बायीं जांघ यहां गिरी थी. लेकिन इस सिद्धस्थल को गुप्त रखा गया था. विद्वानों का कहना है कि हमारे पुराणों में 51 सिद्ध पीठ का वर्णन है, लेकिन योगिनी पुराण ने सिद्ध पीठों की संख्या 52 बताई है.

तंत्र साधना का केंद्र है मंदिर
जंगलों के बीच स्थित यह मंदिर तंत्र साधना के मामले में कामख्या के समकक्ष है. दोनों मंदिरों में पूजा की प्रथा एक सामान है. दोनों मंदिरों में तीन दरवाजे हैं. योगिनी स्थान में पिण्ड की पूजा होती है. कामख्या में भी पिण्ड की ही पूजा होती है. बताया जाता है कि पहले यहां नर बलि दी जाती थी.

लेकिन अंग्रेजों के शासनकाल में इसे बंद करवा दिया गया. मंदिर के सामने एक बट वृक्ष है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस बट वृक्ष पर बैठकर साधक साधना किया करते थे और सिद्धि प्राप्त करते थे.

रहस्यमय गुफा है आकर्षण का केंद्र
मंदिर का गर्भगृह आकर्षण का विशेष केंद्र है. मां योगिनी मंदिर के ठीक बांयीं ओर से 354 सीढ़ी ऊपर उंचे पहाड़ पर मां का गर्भगृह है. गर्भगृह के अंदर जाने के लिए एक गुफा से होकर गुजरना पड़ता है. इसे बाहर से देखकर अंदर जाने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि इसमें पूरी तरह अंधेरा होता है. लेकिन जैसे ही आप गुफा के अंदर प्रवेश करते हैं, आपको प्रकाश नजर आता है, जबकि यहां बिजली की व्यवस्था नहीं है.

मनोकामना मंदिर में पूरी होती हैं मनोकामनाएं
बाहर से गुफा के संकड़े द्वार और अंदर चारों तरफ नुकीली पत्थरों को देखकर लोग गुफा के अंदर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते, लेकिन मां के आशीर्वाद से मोटे से मोटा व्यक्ति भी इसमें जाकर आसानी से निकल आता है. गर्भगृह के भीतर भी साधु अपनी साधना में लीन रहते हैं. मां योगिनी मंदिर के ठीक दाहिनी ओर पहाड़ी पर मनोकामना मंदिर है. जो लोग मां योगिनी के दर्शन के लिए आते हैं, वे मनोकामना मंदिर जाना नहीं भूलते.

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