Bihar News: बिहार सरकार शिक्षा की गुणवत्ता के चाहे लाख दावे क्यों न कर ले लेकिन जमीनी हकीकत आज भी शिक्षा विभाग के दावों से बिल्कुल अलग है. महात्मा गांधी की कर्मभूमि चम्पारण में स्थित बुनियादी विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है.
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बगहा: Bihar News: बिहार सरकार शिक्षा की गुणवत्ता के चाहे लाख दावे क्यों न कर ले लेकिन जमीनी हकीकत आज भी शिक्षा विभाग के दावों से बिल्कुल अलग है. महात्मा गांधी की कर्मभूमि चम्पारण में स्थित बुनियादी विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. एक ओर संसाधन की कमी तो दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के अभाव और उपस्कर नहीं होने से पठन पाठन बाधित और प्रभावित हो रहा है. आलम यह है कि छात्रों से लेकर शिक्षक तक यहां महफूज नहीं हैं.
दरअसल नेपाल और यूपी सीमा पर स्थित बगहा 2 प्रखण्ड अंतर्गत राजकीय बुनियादी विद्यालय पिपरासी शास्त्रीनगर में संसाधनों का घोर अभाव है. जहां सालों भर विद्यालय प्रांगण में पानी लगा रहता है. इस विद्यालय को 1950 में विस्थापित किया गया था. वैसे तो चम्पारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने यहां बुनियादी विद्यालय की नींव इस उद्देश्य से रखी थी कि चम्पारण में शिक्षा की अलख जगाई जाए. लेकिन, आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी यहां हालात नहीं बदले और बदइंतजामी व बदहाली ऐसी है की मानो यहां की व्यवस्थाएं भगवान भरोसे छोड़ दी गई हो.
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बताया जा रहा है कि राजकीय बुनियादी विद्यालय पिपरासी शास्त्रीनगर में 714 छात्र नामांकित हैं लेकिन शिक्षक महज़ 6 हैं इनमें एक शिक्षक अक्सर गायब रहते हैं जो फिलहाल सीएल पर चले गए हैं. छात्रों के अनुपात में यहां करीब 12 शिक्षक की नियुक्ति होनी चाहिए लेकिन शिक्षक की कमी और संसाधनों के घोर अभाव में छात्रों का कोर्स पूरा नहीं हो पा रहा है. भवन व कमरों की कमी के कारण एक ही क्लास में कई क्लास के छात्र बगैर डेस्क ब्रेंच के फर्श पर नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. आलम यह है कि भेड़ बकरियों की तरह बच्चों को छोड़ दिया गया है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इस विद्यालय में पोखरा टोला नव सृजित विद्यालय टैग कर दिया गया है. जहां एक ही कैंपस व भवन में दो-दो विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं. जहां बाउन्ड्री वॉल नहीं है औऱ खुला कैंपस सुरक्षित नहीं होने के कारण अक्सर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है तो आवारा पशुओं की आवाजाही के साथ-साथ जल जमाव व अतिक्रमण के कारण छात्र व शिक्षक असहज महसूस करते हैं. लिहाजा पठन-पाठन पूरी नहीं हो पा रही है.
बता दें कि राजकीय बुनियादी विद्यालय शास्त्रीनगर में शिक्षा विभाग की ओर से छात्रों को पुस्तकें देरी से उपलब्ध कराई गई हैं और MDM में NGO के जरिए दोपहर के भोजन की व्यवस्था की गई है. लेकिन, शौचालय की कमी व पेयजल की समुचित व्यवस्था नदारद है. एक चापाकल है जो ग्रामीणों के अतिक्रमण का शिकार हो गया है. बात अगर छात्रों के दोहरे लाभ की करें तो क़रीब 2 दर्ज़न ऐसे छात्र यहां चिन्हित किये गए जिनका निजी स्कूलों में भी नामांकन था जो सरकारी स्कूलों में महज़ लाभ के लिए नामांकित थे. लिहाजा उनकी पहचान कर विद्यालय प्रबंधन द्वारा अभिभावकों को नोटिस जारी कर उनके नाम काट दिए गए हैं. जबकि कुछ ऐसे भी छात्र हैं जो लगातार ग़ायब चल रहे थे उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. छात्र बता रहे हैं की कोर्स पूरा नहीं हुआ है हालांकि इस बार आठवीं क्लास को भी बोर्ड में शामिल किया गया है. बावजूद इसके शिक्षकों के अभाव में सभी विषयों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है. जो छात्रों के साथ-साथ अभिभावकों के लिए चिंता का विषय है. वहीं शिक्षक और प्रिंसिपल यहां जो संसाधन व सुविधा उपलब्ध है उसी में जुगाड़ कर किसी तरह पठन पाठन में जुटे हैं. हालांकि इस मामले में विभागीय अधिकारियों को लगातार सूचना दी गई है. पत्राचार भी किया गया है. कभी-कभार अधिकारी भी यहां आते हैं लेकिन व्यवस्थाएं जस की तस बनी हुई हैं. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि शिक्षा विभाग में केके पाठक की एंट्री के बाद व्यवस्थाओं में लगातार सुधार और सख़्ती के बीच महात्मा गांधी के सपनों का बुनियादी विद्यालय का कब तक कायाकल्प होता है.
इमरान अज़ीज़