'महाजुटान' का प्रयास हुआ नाकाम!, विपक्षी एकता की कवायद धड़ाम?
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'महाजुटान' का प्रयास हुआ नाकाम!, विपक्षी एकता की कवायद धड़ाम?

साल 2024 के आम चुनाव से पहले देशभर में विपक्षी एकजुटता की कवायद जोरों से चल रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे एक मिशन के तौर पर चला रखा है. नीतीश कुमार लगातार सभी दलों के नेताओं से मिलकर विपक्ष को लामबंद करने में जुटे हैं.

(फाइल फोटो)

पटना : साल 2024 के आम चुनाव से पहले देशभर में विपक्षी एकजुटता की कवायद जोरों से चल रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे एक मिशन के तौर पर चला रखा है. नीतीश कुमार लगातार सभी दलों के नेताओं से मिलकर विपक्ष को लामबंद करने में जुटे हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार की ये कोशिश कामयाब नहीं हो रही है. तमाम प्रयासों के बाद भी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है कि विपक्षी दल एक साथ एक मंच पर आने को तैयार हैं.

विपक्ष के एक मंच पर दिखने की संभावना इस बार हरियाणा के फतेहाबाद में नज़र आ रही थी. लेकिन ये संभावना भी शीशे के महल की तरह टूटकर बिखरती नज़र आई. जिस मंच पर कायदे से सभी विपक्षी दलों को अपनी मौजूदगी दिखानी थी, वहां चंद दलों के प्रतिनिधि ही पहुंचे. यहां तक कि हरियाणा से सटे प्रदेशों के दलों ने भी फतेहाबाद में सजे मंच से अपनी दूरी बना ली. ऐसा लगा कि विपक्षी दलों की शायद 2024 में BJP के खिलाफ एकजुटता को लेकर कोई दिलचस्पी ही नहीं हैं.

चौटाला के मंच से दिग्गजों की दूरी 
दरअसल देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती के मौके पर हरियाणा के फतेहाबाद में कार्यक्रम का आयोजन था. इस कार्यक्रम का आयोजन हर साल उनके बेटे और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला करते रहे हैं. इस बार भी कार्यक्रम की तैयारियां लंबे समय से की जा रही थी. ज़ोर-शोर से इस कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार हो रहा था. भले ही ये ओमप्रकाश चौटाला के पिता की जयंती का कार्यक्रम हो, लेकिन हर साल इसे एक सियासी जलसे के तौर पर अंजाम दिया जाता रहा है. इस बार तो हालात वैसे भी जुदा थे. देश में सत्तासीन BJP के खिलाफ सभी दल हल्ला बोलने की तैयारी में लगे हैं. ऐसे में इस बार इस कार्यक्रम की तैयारी ज्यादा महत्वपूर्ण थी.

देखते ही देखते 25 सितंबर की तारीख आई और मंच पर नेताओं के आने का सिलसिला शुरू हुआ. उम्मीद थी कि बड़े-बड़े सियासी धुरंधर पहुंचेंगे और इस मंच से देश में विपक्षी एकता की एक विशाल तस्वीर आम जनता के बीच जाएगी. लेकिन जो हुआ वो उम्मीद के बिलकुल उलट था. इक्का-दुक्का नेताओं को छोड़ दें तो किसी भी पार्टी का कोई बड़ा नेता या किसी भी प्रदेश के मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री का यहां आना नहीं हुआ. सिर्फ बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कार्यक्रम में शिरकत की.

विपक्षी एकता होगी पूरी या नीतीश की इच्छा रह जाएगी अधूरी?
फतेहाबाद में सजे मंच पर जिन नेताओं की मौजूदगी की उम्मीद थी, वो नेता किनारा कर गए. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के सीएम के चन्द्रशेखर राव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन जैसे बड़े चेहरे अपनी मौजूदगी से BJP को बड़ा संदेश दे सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ये तमाम नेता यहां नहीं पहुंचे और देश की सबसे बड़ी पार्टी BJP को बैठे-बिठाए हमला बोलने का मौका दे दिया.

सवाल ये है कि विपक्षी एकता की नीतीश कुमार की कवायद क्या धरी की धरी रह जाएगी? क्या नीतीश कुमार इस मिशन में फेल हो जाएंगे? नीतीश कुमार बार-बार मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कह रहे हैं कि वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं. उनका कहना है कि वो सिर्फ विपक्षी एकता के सूत्रधार की भूमिका निभा रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार की इच्छा अधूरी ही रह जाएगी?

'मिलन' अभी आधा-अधूरा है! 
फतेहाबाद के कार्यक्रम को लेकर एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि दिल्ली से नजदीक होने के कारण इस मंच पर नेताओं की मौजूदगी से एक बड़ा मैसेज दिया जा सकता था. विपक्ष के तमाम दिग्गजों को अपने निजी हित को फिलहाल ताक पर रखकर मजबूत विपक्ष की अवधारणा को अमली जामा पहनाने की जरूरत थी. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. अगर भविष्य में भी ऐसा करने में वो नाकाम रहे तो आगामी लोकसभा चुनाव भी महज औपचारिकता बनकर रह जाएगा.

आज इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में तमाम चुनौतियों और समस्याओं के बाद भी नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे नेताओं की मौजूदगी में BJP बेहद ताकतवर है. लगातार दूसरी बार अकेले दम पर बहुमत की सरकार बनाने के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं के हौसले पहले से ही बुलंद हैं. जब कार्यकर्ता उत्साहित होता है तो वो पार्टी के लिए जी-जान लगा देता है और ये भी सच है कि कार्यकर्ताओं की बदौलत ही पार्टी को जीत नसीब होती है. ऐसे में कार्यकर्ताओं की बदौलत BJP अपने विरोधियों से बहुत आगे नज़र आती है.

वैसे तो नीतीश कुमार के पास विपक्ष को एकजुट करने का अभी और वक्त है. लेकिन जरूरत है कि सभी दल अपना स्वार्थ छोड़कर एक मंच पर आएं और साथ मिलकर चुनाव लड़ने का खाका खींचें. क्योंकि अभी तक की सारी कवायद से तो यही पता चलता है कि 'मिलन' अभी आधा-अधूरा है.

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