'जिस गंगा को मां कहा, उसी को लाशें और मैला ढोने वाली गाड़ी बना दिया!'
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'जिस गंगा को मां कहा, उसी को लाशें और मैला ढोने वाली गाड़ी बना दिया!'

Bihar Samachar: जलपुरुष के नाम से मशहूर पर्यावरणविद डॉ. राजेंद्र सिंह गंगा में मिली अनगिनत लाशों से व्यथित हैं. 

डॉ. राजेंद्र सिंह गंगा में मिली अनगिनत लाशों से व्यथित हैं. (फाइल फोटो)

Patna: कोरोना ने गांवों में कोहराम मचा रखा है. ऐसे में चिंता ज्यादा है क्योंकि 130 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश में करीब 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है. इसके बाद भी यहां ना अस्पताल हैं और ना ही डॉक्टर. इतना ही नहीं बल्कि यहां मौत होने के बाद तस्दीक तक नहीं होती कि मृतक को कोरोना था या नही.

वहीं, इसे लेकर डॉ राजेंद्र सिंह का कहना है कि 'पुरानी पैथी खत्म कर दी गई है इसलिए गांव की आज ये हालत है. यहां मौजूद पुराना ढांचा खत्म कर दिया गया है. हकीम-वैद्य भी खत्म हो गए हैं.'

डॉ. राजेंद्र सिंह बताते हैं कि 40 साल पहले उन्होंने अपनी संस्था तरुण भारत संघ के जरिए 'सेहत में स्वाबलंबन' की शुरुआत की थी, जिसमें गांव के लोगों को वैद्य बनाने की ट्रेनिंग दी जाती थी. वे कोई इंजेक्शन नहीं देते थे, क्योंकि इंजेक्शन देने की सख्त मनाही थी. काढ़े से वे इलाज करते थे और रोगी ठीक भी हो जाते थे. बगैर पैसे के वे सेवा करते थे.

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वह कहते हैं, 'कई वैद्य तो बहुत अच्छा काम कर रहे थे, पर राजनेताओं को अच्छे काम से चिढ़ होती है, इसीलिए उन्होंने उसे बंद करवा दिया.' उनका कहना है, 'आज कोरोना होने पर काढ़ा पीने की सलाह दी जा रही है, जबकि हकीम-वैद्य तो इसी काढ़े से बीमारियां दूर भगाया करते थे. आज गांवों को बचाने में आयुष (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी) की बड़ी भूमिका हो सकती है, यदि वे अपनी भूमिका को समझें.'

उनका कहना है कि 'दुनिया के लिए कोरोना नया वायरस हो सकता है, पर चरक संहिता में 'जनपद ध्वंस व्याधि' के रूप में प्राचीन काल से इसका जिक्र है. अमेरिका जैसा देश वायरस से कई बार तबाह हुआ, पर भारत वायरस से कभी नहीं हारा.' वह कहते हैं कि 'कोरोना के बारे में यह समझना जरूरी है कि यह हमारे शरीर की कोमल कोशिकाओं का अतिक्रमण करता है और हमारी ही कोशिकाओं से खुद को जीवित कर लेता है. इससे बड़ा बहुरूपिया आजतक कोई नहीं हुआ. हमारे शरीर के प्रोटीन से ही यह खुद को ढक लेता है.'

इलाज के व्यापारीकरण से आई समस्या
डॉ. राजेंद्र सिंह कहते हैं कि 'कोरोना से आज हजारों लोग बगैर इलाज इसलिए मर रहे हैं कि इलाज का व्यापारीकरण हो चुका है. पहले यह कम्युनिटाइज था, जो अब कॉरपोरेटाइज हो गया. दवा से लेकर वैक्सीन तक सब एक हाथ में है. बाजार और व्यापारी को खुश करने के लिए नीतियां बनाई जाती हैं. इलाज के साथ व्यापार जुड़ जाए तो वह खतरनाक हो जाता है. मॉडर्न मेडिकल साइंस की जरूरत कुल रोगियों में से सिर्फ 0.5 फीसदी को होती है, जबकि कुल आबादी की बात करें तो 5 फीसदी को होती है. पिछले साल कोरोना से लड़ने के लिए जो इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया गया था, वह सारा पैसा बर्बाद हो गया.'

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वह कहते हैं, 'अक्तूबर 2003 में कनाडा में सार्स (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) महामारी आई थी, उसे आप कोरोना-1 भी कह सकते हैं, जिसमें कनाडा के 44 लोगों की मौत हुई थी. उस वक्त महामारी विशेषज्ञ डेविड नॉयलर की अगुवाई में उनकी टीम ने प्रभावी तरीके से महामारी को काबू किया था. जब कोविड-19 महामारी आई तो कनाडा ने अपने 2003 के ही तजुर्बों का लाभ उठाया.' 

'आज कोरोना की वैक्सीन लगाई जा रही है, पर यह पहली बार सुनने में आ रहा है कि वैक्सीन लगने के बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं, मौतें हो रही हैं. वैक्सीन के साथ इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दोनों खुराक लगने के बाद संक्रमण नहीं होगा. हैजा, पोलियो या चेचक के मामले में कभी ऐसा नहीं हुआ कि टीका लगने के बाद यह रोग लग गया हो. फार्मा कंपनियां वैक्सीन बना रही हैं, लोग लगवा रहे हैं पर गारंटी कुछ नहीं है. एक वैक्सीन से तो खून के थक्के जमने की शिकायतें भी आ रही हैं.' 

एंबुलेंस का काम मां गंगा को दे दिया
यूपी से लेकर बिहार तक गंगा में पाई गई लाशों का जिक्र करते हुए डॉ. राजेंद्र सिंह कहते हैं, 'आपने ऐसे बहुत से दिहाड़ीदारों को देखा होगा, जो हर दिन अच्छे से कमाते थे और अच्छे से खाते थे. आज ऐसे लोगों के पास कुछ नहीं बचा. ना खाने के पैसे हैं, ना कफन खरीदने के और ना ही लाश जलाने के पैसे हैं. जिन्हें लाशें ढोने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था करनी थी, वे तमाशाई बन गए. ऐसे में जिस गंगा को मां कहा, उसी को लाशें और मैला ढोने वाली गाड़ी बना दी. एंबुलेंस का काम मां गंगा को दे दिया गया. इन स्थितियों को हमें राजा से जोड़कर देखना चाहिए. जैसा राजा, वैसी प्रजा.'

भारत का धर्म अंधविश्वास नहीं सिखाता
कोरोना काल में बिहार और झारखंड से तंत्र-मंत्र की भी खबरें आई हैं, अंधविश्वास में जकड़े लोगों ने मेडिकल टीम को भी खदेड़ दिया, इसके बारे में डॉ. राजेंद्र सिंह कहते हैं, 'जब भी आस्था को अंध आस्था की तरफ ले जाते हैं, तो यह स्थिति बनती है. तंत्र-मंत्र के लिए धर्म संगठन दोषी हैं. वे धर्म को भूल जाते हैं, उनकी इच्छा पावर के इर्द-गिर्द बने रहने की होती है. भारत का धर्म अंधविश्वास और पोंगापन नहीं सिखाता. जिस धर्म में भूमि, गगन, अग्नि, वायु और नीर की प्रधानता रही हो, उससे बड़ा वैज्ञानिक धर्म कौन-सा होगा. नीर-नारी-नदी को हमने नारायण माना है.'

 

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