Bihar News: बिहार में एक ऐसा गांव है जहां से एक या दो नहीं बल्कि 27 स्वतंत्रता सेनानी निकले. लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जिस गांव से 27 स्वतंत्रता सेनानी हुए वो गांव अभी भी विकास से कोसो दूर हैं.
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सीवान: देश को आजाद हुए 75 साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन आज भी ऐसा लगता है मानों ये कल की ही बात हो. लेकिन ये आजादी हमें ऐसे ही नहीं मिली इसके लिए कई वीर लोगों ने अपनी जान गंवाई है. कई माताओं की गोद सूनी हुई, तो कई बहनों से राखी बांधने वाली कलाई छिन गई. देश को आजादी दिलाने के लिए न जाने कितने वीर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए और न जाने कितने लोगों ने अंग्रेजों की गोलियां खाई. आज भी जब हम उन वीरों की बात करते हैं तो हमारा सीना गर्व से फूल जाता है.
बंगरा गांव से निकले 27 स्वतंत्रता सेनानी
भारत के इतिहास की बात हो और उसमें बिहार का जिक्र न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं है. आजादी के 75 साल पूरे होने पर हम आपको बिहार के ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां से एक या दो नहीं बल्कि 27 सेनानी निकले. ये गांव स्वतंत्रता सेनानियों के गांव के रूप में प्रसिद्ध है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में इस गांव का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है. हम बात कर रहे हैं बिहार के सीवान जिले के महाराजगंज थाना क्षेत्र के बंगरा गांव का. ये गांव जिला मुख्यालय से ठीक सटा हुआ है.
महात्मा गांधी को 1001 रुपए दिए
महाराजगंज में जब अंग्रेजी हुकूमत का विरोध शुरू हुआ तो उमाशंकर प्रसाद ने नौजवानों की टोली का नेतृत्व किया. उन्होंने नमक बनाओ आंदोलन, सत्याग्रह और अपने स्कूल में छात्रों को अंग्रेजों से लड़ने की शिक्षा दी. इसका नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजी हुकूमत ने उनके खिलाफ 1942 में देखते ही गोली मारने का आदेश जारी कर दिया. जिसके बाद उमाशंकर प्रसाद भूमिगत हो गए. हालांकि भूमिगत होने के बाद भी उन्होंने आंदोलन में शामिल लोगों को आर्थिक सहायता देनी शुरू कर दी. 1928 में महात्मा गांधी जब महराजगंज पहुंचे थे तब उमाशंकर प्रसाद उन्हें 1001 रुपए दिए थे ताकि आजादी की लड़ाई में धन की कमी न हो.
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विकास से कोसो दूर
वैसे तो देश को आजादी दिलाने की लड़ाई पूरे देश ने मिलकर लड़ी, लेकिन देश में बहुत कम गांव ही ऐसे हैं जहां से 27 स्वतंत्रता सेनानी निकले हों. गांव में सभी 27 स्वतंत्रता सेनानियों के नामों की सूची शिलापट्ट पर अंकित की गई है. जिसमें शहीद देवशरण सिंह, रामलखन सिंह, टुकड सिंह, गजाधर सिंह, रामधन राम, रामपृत सिंह, सुंदर सिंह, राम परीक्षण सिंह, शालिग्राम सिंह, गोरख सिंह, फेकू सिंह, जूठन सिंह, काली सिंह, सूर्यदेव सिंह, बमबहादुर सिंह, राजनारायण उपाध्याय, रामएकबाल सिंह, तिलकेश्वर सिंह, देवपूजन सिंह, रघुवीर सिंह, नागेश्वर सिंह, शिवकुमार सिंह, झूलन सिंह, और राजाराम सिंह का नाम शिलापट्ट पर अंकित है. इन सभी स्वतंत्रता सेनानियों इकलौते मुंशी सिंह ही अब जीवित हैं. जो अभी समाजसेवा के कार्य में जुटे रहते हैं. लेकिन आजादी के 75 साल पूरे होने के बाद भी ये गांव विकास से कोसों दूर हैं. सड़क की हालत अभी भी जर्जर बनी हुई है. आज भी यहां के लोगों को बेहतर शिक्षा, सड़क और स्वास्थ्य सुविधा मिलने का इंतजार है.
इनपुट- अमित सिंह