Sawan Shiva Mandir Hariharnath: शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि इसे श्रीराम स्थापित किया. असल में जब श्रीराम और लक्ष्मण अपने गुरुदेव विश्वामित्रजी के साथ मिथिला जा रहे थे, तब मार्ग में ही श्रीराम ने रुककर यहां भोलेनाथ की पूजा की जाती थी
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पटनाः Sawan Shiva Mandir Hariharnath: जितनी पवित्र धरती काशी की है, भगवान शिव के भक्तों के लिए उतना ही महत्व बिहार का भी है. बिहार में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां माना जाता है कि महादेव की सत्ता का अहसास आज भी होता है. इन्हीं में एक मंदिर है हरिहरनाथ स्वामी मंदिर. बिहार के सारण जिले में स्थित सोनपुर में हरिहरनाथ बहुत प्राचीन मंदिर है. यहां हरि (विष्णु) और हर (शिव) की प्रतिमा एक साथ स्थापित है. इसीकारण इसे हरिहर नाथ कहते हैं. यह मंदिर गंगा-गंडक नदी के संगम स्थल पर है.
यहां लगता है विश्व प्रसिद्ध मेला
आपने विश्व प्रसिद्ध सोनपुर के पशु मेले के बारे में तो सुना होगा. कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर गंगा-गंडक के संगम स्थल यानी हाजीपुर सोनपुर में स्थित हरिहर क्षेत्र में गंडक नदी के किनारे लाखों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करते हैं, इस मंदिर का महत्व सावन में और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि यह इसके प्रधान देवता भगवान शिव का स्थल बन जाता है. सावन के दिनों में यहां विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है. इस मंदिर की प्राचीनता और पौराणिकता दोनों ही श्रद्धालुओं को यहां आने के लिए मजबूर करती है. मान्यता है कि हाथी और मगरमच्छ की पौराणिक लड़ाई यहीं इसी नदी तट पर हुई थी. यहां भगवान विष्णु ने सुदर्शन ने ग्राह का सिर काटकर गजराज की रक्षा की थी.
श्रीराम ने कराया था निर्माण
इस मंदिर का निर्माण वास्तव में कब हुआ, यह अज्ञात है, लेकिन मंदिर में विराजित शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि इसे श्रीराम स्थापित किया. असल में जब श्रीराम और लक्ष्मण अपने गुरुदेव विश्वामित्रजी के साथ मिथिला जा रहे थे, तब मार्ग में ही श्रीराम ने रुककर यहां भोलेनाथ की पूजा की जाती थी. भोलेनाथ ने ही उन्हें पहले ही सीता स्वयंवर का हाल सुना दिया था और भविष्य की घटनाएं घटित हो सकें, इसके लिए शिव धनुष को उठाना जरूरी है, ऐसा भी बताया था. श्रीराम ने उनके धनुष को उठाने की आज्ञा मांगी थी. इसी के लिए प्रभु ने सीता स्वयंवर में जाते समय इस स्थल का निर्माण किया था. गंगा और गंडक नदी के संगम पर स्थित यह प्राचीन मंदिर सभी सनातन परंपरा की आस्था का केंद्र है. बाद में इस मंदिर का निर्माण राजा मान सिंह ने करवाया. वर्तमान मंदिर की मरम्मत राजा राम नारायण ने करवाई थी.
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