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Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव अब अपने शबाब पर है. 10 मई को मतदान होना है और 13 मई को वोटों की गिनती होगी. उसके बाद साफ हो जाएगा कि कर्नाटक में किस दल की सरकार बनेगी. इस बीच जो सर्वे आ रहे हैं, उनमें बताया जा रहा है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections) में बीजेपी की हालत पतली है और कांग्रेस की हालत मजबूत है. ऐसा दावा वोट शेयर के आधार पर किया जा रहा है. सर्वे के आधार पर बताया जा रहा है कि बीजेपी के वोट शेयर (BJP Vote Shares) गिरे हैं और कांग्रेस के बढ़े हैं. वोट शेयर घटने और बढ़ने का नतीजों पर असर पड़ता है पर कितना पड़ता है, यह देखने वाली बात होती है. जहां तक कर्नाटक की बात है तो यहां वोट शेयर बढ़ने या कम होने और उसके बाद मिलने वाली सीटों का हिसाब किताब बिल्कुल अलग अलग है. इस पैटर्न को समझे बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी.
आम तौर पर कर्नाटक में वोटों के प्रतिशत में कोई बहुत बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को नहीं मिलता फिर भी सीटों में भारी अंतर दिखता है. कांग्रेस को 2004 में 35.27 प्रतिशत, 2008 में 34.76 प्रतिशत, 2013 में 36.6 प्रतिशत और 2018 में 38.14 फीसद वोट मिले थे लेकिन जब सीटों की बात करते हैं तो इन चुनावों में कांग्रेस को क्रमश 65, 80, 122, 80 सीटें मिलीं और सत्ता से कभी बाहर हुई और कभी सरकार बनाने में सफल रही. इस बात में कोई संदेह नहीं रहा है कि कांग्रेस के पास राज्य में एक निश्चित वोट बैंक रहा है. जब वह सत्ता में आई तो उसके वोट प्रतिशत में बहुत उछाल देखने को नहीं मिला और जब वह सत्ता से बाहर गई तब भी उसके वोट प्रतिशत में बड़ी गिरावट नहीं आई. तमाम तरह के जो सर्वे किए जा रहे हैं, उनमें इसी सच्चाई की अनदेखी की जा रही है और कांग्रेस के बढ़े वोट प्रतिशत के आधार पर बीजेपी की भारी पराजय देखी जा रही है.
कर्नाटक चुनाव का यह भी एक तथ्य है कि 2013 में जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उसका वोट शेयर 36.6 प्रतिशत था और जब वह 2018 में सत्ता से बाहर हो गई तो उसका वोट शेयर 38.14 प्रतिशत तक चला गया. मतलब यह कि कम वोट शेयर के साथ वह 2013 में 122 सीटें हासिल कर चुकी है और अधिक वोट लेकर भी 2018 में वह विपक्ष में बैठने को मजबूर हो गई, जब उसे केवल 80 सीटें हासिल हुई थीं.
अगर बीजेपी की बात करते हैं तो उसे 2018 में 36.5 प्रतिशत वोट मिले. लगभग इतना ही 36.6 प्रतिशत वोट कांग्रेस को 2013 में मिले थे. लेकिन 2013 में कांग्रेस को 122 सीटें हासिल हो गईं और 2018 में बीजेपी 104 सीटें जीतकर भी बहुमत से दूर रह गई थी. यह बताता है कि अधिक वोट प्रतिशत होने के बाद भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर नहीं, कमतर हुआ है. 2004 में बीजेपी को 7.64 प्रतिशत वोटों का फायदा हुआ था और उसकी सीटें 44 से बढ़कर 79 हो गई थीं यानी लगभग दोगुना. मतलब यह कि बीजेपी के वोट प्रतिशत में जरा सी बढ़ोतरी होने पर भी वह अपनी सीटें डबल कर लेती है.
उधर, कांग्रेस को 2004 के विधानसभा चुनाव में 5.57 वोटों का नुकसान हुआ था और उसकी सीटें 132 से घटकर करीब आधा यानी 65 हो गई थी. अब 2008 की बात करते हैं. तब कांग्रेस को 34.7 फीसद और बीजेपी को 33.86 फीसद वोट मिले थे. इसी को सीटों में देखें तो बीजेपी को 110 सीटें मिली थीं और कांग्रेस को महज 80 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. 2013 की बात करें 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36.6 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे और 2018 में यह 38.14 प्रतिशत हो गया था. लेकिन 122 विधायकों की ताकत घटकर 80 पर आ गई थी.