सावन में जरूर करें धर्मनाथ मंदिर के दर्शन, जानें कैसा है मंदिर का इतिहास
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सावन में जरूर करें धर्मनाथ मंदिर के दर्शन, जानें कैसा है मंदिर का इतिहास

सारण: सावन का महीना बाबा भोलेनाथ को अतिप्रिय होता है. सावन के महीने में बाबा भोलेनाथ की पूजा का अपना महत्व है. बिहार के ऐसे मंदिर है जिसका इतिहास काफी पुराना है. ऐसा माना जाता है कि 1016 ई. में इस स्थान पर स्वत: शिवलिंग प्रकट हुआ था. इस मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा करने आते हैं. 

 

(फाइल फोटो)

सारण: सावन का महीना बाबा भोलेनाथ को अतिप्रिय होता है. सावन के महीने में बाबा भोलेनाथ की पूजा काअपना महत्व है. इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. शिव भक्त सालभर इस महीने का बेसब्री के साथ इंतजार करते हैं. ऐसे में आज हम आपको बिहार के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका इतिहास काफी पुराना है. ऐसा माना जाता है कि 1016 ई. में इस स्थान पर स्वत: शिवलिंग प्रकट हुआ था. इस मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा करने आते हैं. 

धर्मनाथ मंदिर का इतिहास 1000 साल पुराना
सारण जिले में स्थित प्रसिद्ध धर्मनाथ मंदिर का इतिहास एक हजार साल पुराना है. 1016 ई में जब यहां स्वत: शिवलिंग प्रकट हुआ  उस वक्त संत धर्मनाथ बाबा ने शिव लिंग की पूजा-अर्चना शुरू की. जिसके बाद उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नामकरण कर दिया गया. फिलहाल शैव संप्रदाय की 14वीं पीढ़ी की देखरेख में इस मंदिर में बाबा भोले की पूजा-अर्चना होती है. इस मंदिर में पूजा करने दूर-दूर से लोग से लोग आते हैं. ऐसी मान्यता है कि धर्मनाथ मंदिर में जो भी मन्नतें मांगी जाती है वह पूरी होती है. सावन महीने में प्रतिदिन यहां पचास हजार से अधिक लोग जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. सावन महीने में प्रत्येक सोमवार और महाशिवरात्रि पर इस मंदिर में विशेष पूजा अर्चना होती है.  

मंदिर में ली जिंदा समाधि 
मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि जिस जगह धर्मनाथ मंदिर स्थापित है, वह स्थान एक समय जंगल था. इसके दक्षिण में घाघरा नदी बहती थी.  नदी आज भी मंदिर के दक्षिण दिशा से ही बहती है. जंगल के बीच में 1016 ई में स्वत: शिवलिंग प्रकट हुआ था. संत बाबा धर्मनाथ एक दिन इस जंगल से गुजर रहे थे तभी उनकी नजर शिवलिंग पर पड़ी. जिसके बाद बाबा धर्मनाथ ने शिवलिंग के स्थान की साफ-सफाई की और वहीं  पूजा- अर्चना करने लगे. धीरे-धीरे मंदिर की ख्याति दूरदराज के क्षेत्रों में फैलने लगी. अपनी मन्नतों को लेकर दूर-दूर से लोग यहां पूजा करने आने लगे. धर्मनाथ बाबा ने करीब तीन सौ साल तक यहां तपस्या की. बाद में धर्मनाथ बाबा ने शिवलिंग के बगल में ही जिंदा समाधि ले ली. उनके समाधि लेने के बाद उनके शिष्य सारणनाथ ने मंदिर की देखरेख करने लगे. बाद में उन्होंने भी अपने गुरु के बगल में ही जिंदा समाधि ले ली.  मंदिर परिसर में दो महात्माओं की समाधि है. 

सावन में होती है विशेष पूजा
मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि मंदिर की ख्याति जब बढ़ने लगी तब शैव संप्रदाय के अनुयायी भी यहां आकर भगवान  शंकर की पूजा- अर्चना करने लगे. धर्मनाथ मंदिर में फिलहाल शैव संप्रदाय की 14वीं पीढ़ी मंदिर में पूजा- अर्चना कराती है. मंदिर के महंथ बाबा बिन्देश्वरी पर्वत ने बताया कि उनके गुरु शेर पर्वत ने करीब सौ साल तक मंदिर में पूजा- अर्चना की थी. उन्हें नागा बाबा के रूप में भी जाना जाता था. बाबा बिन्देश्वरी पर्वत ने बताया कि सावन माह को लेकर विशेष तैयारी की गयी है. भक्तों से मिले चढ़ावा और उनके सहयोग से लगातार मंदिर का विकास हो रहा है.  शादी- विवाह को लेकर इस मंदिर में दूर दराज से लोग पहुंचते हैं. मंदिर परिसर में भगवान शंकर के अलावा अन्य सभी देवताओं को भी स्थापित किया गया है. जिसकी नियमित पूजा अर्चना होती है.

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