बिहार का इतिहास क्यों मिटाना चाहते थे मुगल? नालंदा विश्वविद्यालय जलाने की ये थी बड़े वजह
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बिहार का इतिहास क्यों मिटाना चाहते थे मुगल? नालंदा विश्वविद्यालय जलाने की ये थी बड़े वजह

Mughals Come to India: महायान बौद्ध धर्म के इस विश्वविद्यालय में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों की भी शिक्षा दी जाती थी. कई देशों से विद्यार्थी यहां पढ़ने के लिए आते थे. पुरानी दस्तावेजों और सातवीं सदी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा वर्णनों से इस विश्वविद्यालय की विस्तृत जानकारी मिलती है. ह्वेनसांग ने यहां करीब एक साल तक शिक्षा प्राप्त की थी.

 

बिहार का इतिहास क्यों मिटाना चाहते थे मुगल? नालंदा विश्वविद्यालय जलाने की ये थी बड़े वजह

History of Bihar: मुगलों द्वारा बिहार के इतिहास को मिटाने की कोशिशें कई राजनीतिक और सांस्कृतिक कारणों से की गईं. बिहार प्राचीन काल से ही ज्ञान, संस्कृति और धर्म का केंद्र रहा है. यहां नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय थे, जहां दुनियाभर से छात्र और विद्वान शिक्षा ग्रहण करने आते थे. इसके अलावा, यह क्षेत्र बौद्ध धर्म और अन्य भारतीय परंपराओं का भी महत्वपूर्ण केंद्र था. मुगल और तुर्क आक्रमणकारियों के समय, जैसे कि बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया, मुख्य उद्देश्य भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों को मिटाना और अपने धार्मिक और राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाना था.

नालंदा विश्वविद्यालय जलाने की ये थी बड़े वजह
इतिहास के जानकारों के अनुसार बिहार में विशेष रूप से बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के प्रमुख केंद्रों को नष्ट करने का प्रयास किया गया ताकि इस्लामिक शासन के अधीन भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को कमजोर किया जा सके. नालंदा जैसे शिक्षण संस्थानों को नष्ट करना मुगल आक्रमणकारियों के लिए एक राजनीतिक और धार्मिक कृत्य था, जो उन्हें भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने पर अपने नियंत्रण को मजबूती देने का मौका देता था. मुगल शासन के दौरान, भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था और सांस्कृतिक धरोहरों को हाशिए पर डालने और इस्लामी शिक्षा और शासन प्रणाली को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया. इससे भारत के कई हिस्सों में प्राचीन सभ्यताएं और धरोहरें धीरे-धीरे धुंधली पड़ने लगीं.

भारतीय वैद्यों और विद्वानों से खुद को कमजोर महसूस करता था खिलजी
इसके अलावा बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण केंद्र था, जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त ने स्थापित किया था. यह विश्वविद्यालय न केवल भारत के विभिन्न क्षेत्रों से बल्कि चीन, जापान, तिब्बत, फारस, तुर्की जैसे देशों से भी छात्रों को आकर्षित करता था. इसमें 10,000 विद्यार्थी और 2,000 शिक्षक रहते थे. नालंदा की विशेषता यह थी कि यहां सभी छात्रों को मुफ्त शिक्षा और आवास की सुविधा मिलती थी. विश्वविद्यालय में साहित्य, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, गणित, दर्शनशास्त्र सहित कई विषय पढ़ाए जाते थे. नालंदा का पतन 1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण से हुआ. बख्तियार खिलजी एक तुर्की सेनापति था, जिसने नालंदा पर आक्रमण कर इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया. आक्रमण के पीछे कई कारण थे, जिनमें से एक यह भी था कि खिलजी भारतीय वैद्यों और विद्वानों से खुद को कमजोर महसूस करता था. एक बार खिलजी बहुत बीमार हो गया था और उसके हकीम उसे ठीक नहीं कर पाए. तब किसी ने उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेदाचार्य राहुल श्रीभद्र से इलाज करवाने की सलाह दी.

90 लाख पांडुलिपियां हो गई थी नष्ट 
साथ ही खिलजी पहले इसके लिए तैयार नहीं था, क्योंकि वह भारतीय वैद्यों पर विश्वास नहीं करता था. लेकिन आखिरकार उसने अपनी जान बचाने के लिए आचार्य राहुल श्रीभद्र से इलाज करवाया. आचार्य ने बिना दवा खिलाए खिलजी को ठीक किया. इसके बाद खिलजी को यह विश्वास हो गया कि भारतीय वैद्य उसके हकीमों से ज्यादा काबिल हैं. इस बात से उसे जलन हुई और उसने नालंदा को नष्ट करने का फैसला किया. खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय की पुस्तकालय को जलवा दिया, जिसमें 90 लाख पांडुलिपियां थीं. कहा जाता है कि यह पुस्तकालय तीन महीने तक जलती रही. इस आक्रमण ने न केवल विश्वविद्यालय को नष्ट किया, बल्कि हजारों विद्वानों और भिक्षुओं की हत्या भी कर दी गई. इस घटना से बौद्ध धर्म को गहरा आघात लगा, और वह भारत में धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया.

9 मंजिल की एक विशाल पुस्तकालय के लिए भी प्रसिद्ध था विश्वविद्यालय 
जानकारों के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास में यह तीसरा और सबसे विनाशकारी हमला था. इससे पहले दो बार और भी नालंदा पर हमले हुए थे, लेकिन उसे पुनर्निर्मित कर दिया गया था. पहला हमला 5वीं शताब्दी में हुआ था, जब मिहिरकुल के नेतृत्व में ह्यून ने इसे नष्ट किया. दूसरा हमला 7वीं शताब्दी में गौदास ने किया था, लेकिन दोनों बार इसे फिर से बनाया गया. नालंदा विश्वविद्यालय की खासियत थी कि यहां पर लोकतांत्रिक प्रणाली थी, जहां शिक्षक और छात्र मिलकर फैसले लेते थे. यह विश्वविद्यालय 9 मंजिल की एक विशाल पुस्तकालय के लिए भी प्रसिद्ध था, जिसमें ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों की पुस्तकों का संग्रह था. इस विश्वविद्यालय ने हर्षवर्धन, नागार्जुन, धर्मकीर्ति जैसे महान विद्वानों को शिक्षित किया. नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा वृतांतों से मिलता है, जो 7वीं शताब्दी में भारत आए थे. उन्होंने इसे दुनिया का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय बताया. नालंदा के अवशेष आज भी बिहार में 1.5 लाख वर्ग फीट के क्षेत्र में पाए जाते हैं, और यह सिर्फ इसके 10% हिस्से को ही दर्शाते हैं. साथ ही बख्तियार खिलजी के हमले से नालंदा का पूरा ज्ञान और वैभव नष्ट हो गया और भारतीय शिक्षा प्रणाली को बहुत बड़ा नुकसान हुआ. इस आक्रमण ने बौद्ध धर्म और भारतीय ज्ञान परंपरा को गहरा धक्का पहुंचाया, जिससे वे फिर कभी उस ऊंचाई पर नहीं पहुंच पाए.

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