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पटना: Amit Shah Bihar Visit: बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की तरफ से संगठन में जो बदलाव किए गए हैं वह पहले से ही विपक्षियों की परेशानी बढ़ा गया है. एक तरफ बिहार के प्रभारी विनोद तावड़े तो दूसरी तरफ बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्राट चौधरी को सौंपी गई है. अब इस सब के बाद बिहार के सह प्रभारी हरीश दुबे की जगह पीएम नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी और संगठन पर मजबूत पकड़ रखनेवाले नेता सुनील ओझा को संगठन में जिम्मेदारी देकर जो तिगड़ी तैयारी की गई उससे साफ हो गया है भाजपा किसी भी हालत में 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में हालात सो समझौता नहीं करनेवाली है.
वहीं 6 महीने के भीतर भाजपा के चाणक्य कहे जानेवाले गृहमंत्री अमित शाह का चौथा दौरा पहले से सुर्खियों में रहा है. लेकिन इस दौरे के कार्यक्रम में अचानक किए गए बदलाव ने विपक्षियों को इतना मौका भी नहीं दिया कि वह इसके लिए कोई दूसरा प्लान तैयार कर सकें. दरअसल अमित शाह बिहार के अपने प्रस्तावित दौरे की तय तारीख से एक दिन पहले ही बिहार के दौरे पर आएंगे. आपको बता दें कि अमित शाह की इस दौरान सासाराम और नवादा में रैली होनी है और पटना में वह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करेंगे.
आपको बता दें कि भाजपा की तरफ से यह स्पष्ट हो गया है कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जबतक विपक्ष एकजुट हो उनके तमाम ताकतव खेमे में सैंध लगाने की जुगत में है. 2 अप्रैल को अमित शाह का बिहार दौरा प्रस्तावित है. इसी दिन उनकी दोनों जगहों पर रैली होनी है इसके ठीक एक दिन पहले ही अमित शाह बिहार पहुंच रहे हैं. 1 अप्रैल को वह बिहार में पहले पार्टी के बड़े नेताओं और वरीय पदाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे और यहीं रात्रि विश्राम भी करेंगे. इसके बाद 2 अप्रैल को सम्राट अशोक की जयंती पर उनकी दोनों रैलियां होंगी.
नीतीश कुमार इससे पहले जब बिहार के दौरे पर थे तो वालिम्कीनगर में उन्होंने साफ कह दिया था कि NDA में नीतीश की अब नो एंट्री है. अब जब बिहार में नीतीश कुमार के हाव-भाव बदले हुए हैं तो ऐसे में यह देखना होगा कि इस रैली में अमित शाह के निशाने पर नीतीश होंगे की नहीं. अमित शाह के बिहार दौरे के पीछे सम्राट अशोक की जयंती की तारीख चुनना इस बात की तरफ साफ इशारा कर रही है कि भाजपा इस बार बिहार में लव-कुश समीकरण पर ध्यान केंद्रित है. बताया जाता है कि सम्राट अशोक कुशवाहा समाज से आते थे ऐसे में इससे अच्छा मौका भाजपा को कुशवाहा समाज को साधने का कोई मिल नहीं सकता था.