चिराग पासवान से मुलाकात के बाद और महबूब अली कौसर के बारे में कयास लगाए जा रहे हैं कि वे लोकसभा चुनाव चिराग पासवान की पार्टी से लड़ सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो चिराग पासवान का अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से बदला पूरा हो जाएगा.
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पटना: लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को लेकर बड़ी खबर सामने आ रही है. माना जा रहा है कि चिराग पासवान बदले के मूड में आ गए हैं और जल्द ही वे अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को बड़ा झटका दे सकते हैं. सोमवार को पटना में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के महबूब अली कौसर ने चिराग पासवान से मुलाकात की. महबूब अली 2019 के लोकसभा चुनाव में खगड़िया से लोजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे, लेकिन लोजपा में टूट होने पर वे पशुपति कुमार पारस के साथ चले गए थे. पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के पास अभी 5 सांसद हैं.
चिराग पासवान से मुलाकात के बाद और महबूब अली कौसर के बारे में कयास लगाए जा रहे हैं कि वे लोकसभा चुनाव चिराग पासवान की पार्टी से लड़ सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो चिराग पासवान का अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से बदला पूरा हो जाएगा. हालांकि पशुपति कुमार पारस द्वारा पार्टी तोड़ने से रामविलास पासवान की विरासत को तगड़ी चोट पहुंची थी, जब चाचा और भतीजे आमने-सामने हो गए थे. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी चाचा और भतीजे को एक करने की कोशिश में है, लेकिन चिराग शायद ही समझौते को लेकर राजी हो पाएं
अभी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास की ओर से चिराग पासवान अकेले सांसद हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में लोजपा के 6 सांसद जीते थे लेकिन लोजपा में टूट के बाद पार्टी के 5 सांसद पशुपति कुमार पारस के साथ हो लिए, जिससे चिराग अकेले पड़ गए थे. पशुपति कुमार पारस की पार्टी के अन्य सांसदों में प्रिंस राज, चंदन सिंह, वीना देवी, महबूब अली कैसर हैं. पशुपति कुमार पारस अपनी पार्टी के कोटे से मोदी सरकार में मंत्री भी हैं.
2020 में चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा ने एनडीए से अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़़ा था. चिराग पासवान ने सभी जेडीयू प्रत्याशियों के खिलाफ प्रत्याशी उतारे थे, जबकि बीजेपी के खिलाफ उन्होंने अपने उम्मीदवार नहीं दिए थे. उस समय जेडीयू भी एनडीए में थी. इस बीच पिछले उपचुनावों को देखें तो चिराग पासवान ने बीजेपी के पक्ष में प्रचार किया था. माना जा रहा है कि चिराग पासवान की पार्टी जल्द ही एनडीए में वापसी कर सकती है. बीजेपी की मंशा चाचा-भतीजे को मिलाने की है पर दोनों को राजी करना आसान नहीं लगता.
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