इमरजेंसी के वो काले दिन: जब ब्राह्मण बन गए थे रामविलास पासवान, नेपाल से जेपी आंदोलन में फूंक रहे थे जान
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इमरजेंसी के वो काले दिन: जब ब्राह्मण बन गए थे रामविलास पासवान, नेपाल से जेपी आंदोलन में फूंक रहे थे जान

आपातकाल में पुलिस सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल रही थी. इस गिरफ्तारी से बचने के लिए रामविलास पासवान नेपाल में छिप गए थे. सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह ने अपनी किताब 'कितना राज कितना काज' में इस कहानी का जिक्र किया है. 

राम विलास पासवान (File Photo)

Emergency Special: इसी महीने 25 तारीख को आपातकाल के 48 साल पूरे हो जाएंगे. 25 जून 1975 की आधी रात में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला लिया था. कुर्सी के मोह में इंदिरा ने आधी रात को ऐसा फैसला लिया जिसने भारतीय लोकतंत्र के माथे पर हमेशा के लिए कालिख लगा दी. 26 जून 1975 की सुबह जब देश नींद से जागा तो आपातकाल लागू हो चुकी थी. अगले 21 महीने नागरिक अधिकार छीन लिए गए, सत्ता के खिलाफ बोलना अपराध हो गया, सरकार की आलोचना करने वाले जेलों में ठूंस दिए गए.

 

प्रेस की आजादी पर पाबंदी लग गई. एकाएक विपक्षी दलों के नेताओं को जेलों में ठूसा जाने लगा. सरकार के खिलाफ बोलने वालों से देश की जेलें भरने लगीं. विपक्षी नेताओं को जेल में बंद किया जा रहा था. कुल मिलाकर इमरजेंसी के दौरान ऐसा अत्याचार किया गया, जिसने देशवासियों को एक बार फिर से अंग्रेजों का शासन याद दिला दी थी. आपातकाल के दौर को देखने वाले लोग उस समय को याद करके आज भी सिहर जाते हैं. 

इंदिरा की इस तानाशाही ने पूरे विपक्ष को एकजुट कर दिया था. पूरे देश में आंदोलन होने लगे और इस आंदोलन का केंद्र बिंदु बना बिहार. बिहार में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र संगठनों ने इंदिरा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इस आंदोलन में देश को राजनेताओं की एक नई पौध दी थी. आंदोलन की शुरुआत में ये सभी छात्र नेता हुआ करते थे लेकिन आंदोलन के बाद मंझे हुए राजनेता के रूप में सामने आए. इनमें लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, सुशील मोदी और रविशंकर प्रसाद सिन्हा जैसे नेताओं का नाम आता है. 

आपातकाल में पुलिस सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल रही थी. इस गिरफ्तारी से बचने के लिए रामविलास पासवान नेपाल में छिप गए थे. सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह ने अपनी किताब 'कितना राज कितना काज' में इस कहानी का जिक्र किया है. जर्नलिस्ट संतोष सिंह की किताब के मुताबिक, रामविलास पासवान ने कर्पूरी ठाकुर के साथ जेपी आंदोलन में हिस्सा लिया था. पुलिस से बचने के लिए वो नेपाल की पहाड़ियों में छिपकर रहते थे और वहीं से जेपी आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे. किताब के मुताबिक दोनों शाम को भारत-नेपाल बॉर्डर पर नदी पार करके भारत आते थे और अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करते. उसके बाद फिर नेपाल लौट जाते. 

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ये सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा लेकिन फिर पुलिस को इसकी सूचना मिल गई थी. जिसके बाद उन्होंने इस ठिकाने को छोड़ दिया था. आपातकाल के दौरान रामविलास पासवान कुछ वक्त के लिए कोलकाता में भी छुपे हुए थे. उनके साथ आरजेडी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी रहते थे. कोलकाता में जब पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया तो उन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए ब्राह्मण बन गए थे और अब्दुल बारी को इसाई बना दिया था. हालांकि, एक पुलिसवाला उन्हें पहचान गया था और उनका भेद खुल गया था. मीसा के तहत गिरफ्तार रामविलास पासवान को एक साल की जेल की सजा हुई थी.

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