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Opposition Unity: विपक्षी एकता को लेकर जितने सक्रिय नीतीश कुमार नजर आ रहे हैं क्या उतने सक्रिय देश के दूसरे विपक्षी दल भी हैं. अगर आप यह सवाल अपने आप से करेंगे तो आपको जवाब मिलेगा नहीं, इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह बिहार से ही निकलकर सामने आती है. बिहार में महागठबंधन में 7 दल शामिल हैं और बिहार में कुल लोकसभा सीटों की संख्या 40 है ऐसे में बिहार के सभी भाजपा विरोधी दलों के बीच लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सीटों का बंटवारा कैसे होगा यह सबसे बड़ा प्रश्न है. इसका एक कारण यह है कि बिहार में महागठबंधन के एक सहयोगी हम के जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार के सामने पहले ही 5 लोकसभा सीटें उनका पार्टी के लिए मांग ली हैं.
वहीं विपक्षी एकता को लेकर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की तरफ से दावा किया जा रहा है कि इस बैठक में 18 दलों के नेता पहुंचेंगे. इसमें से हालिया दावे की मानें तो फारुक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने भी इस बैठक में आने को लेकर हामी भर दी है. फिर भी विपक्ष के कई दल ऐसे हैं जो इस बैठक के एजेंडे से बिल्कुल अलग अपना सियासी राग अलाप रहे हैं. उनके सुर किसी भी पार्टी से मेल नहीं खा रहे हैं.अब दूसरी तरफ देखिए की बिहार में जिन 18 सियासी दलों के महाजुटान की तैयारी है उसमें से 7 दल तो सिर्फ बिहार में ही हैं. ऐसे में पहले नीतीश को घर में ही विपक्षी एकता की मिसाल कायम करनी होगी और अपने गठबंधन सहयोगियों की बातों का मान रखना होगा.
यूपी में विपक्षी एकता के लिए दो बड़े चेहरे थे एक अखिलेश यादव और दूसरी मायावती, विपक्षी एकता को लेकर जिस प्रदेश से यह मुहिम छेड़ी गई मायावती ने उसी को लेकर घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी वहां के 40 में से 40 सीटों पर अपने उम्मदीवार उतारेगी. रही बात अखिलेश यादव की तो वह साफ कर रहे हैं कि उनकी पार्टी यूपी की 80 में से 80 सीटें जीतेगी. मतलब सपा यूपी की 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
अब एनसीपी की उलझन ही देख लीजिए शरद पवार तो विपक्षी एकता के साथ खड़े हैं लेकिन अजित पवार का कोई ठिकाना नजर नहीं आ रहा. दक्षिण में केसीआर अपना मुड़ पहले ही महागबंधन को इशारों-इशारों में बता चुके हैं. ममता बनर्जी को कांग्रेस पसंद नहीं है और वह कांग्रेस को अपने राज्य में जगह देने के मुड में नजर नहीं आ रही है.
ललन सिंह और तेजस्वी यादव ने बैठक में कांग्रेस की तरफ से मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के आने की घोषणा तो कर दी लेकिन ना तो नीतीश को ना ही लालू को खड़गे की तरफ से इसको लेकर सीधा जवाब दिया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी केंद्र सरकार का दिल्ली सरकार के खिलाफ अध्यादेश को लेकर समर्थन-समर्थन का खेल खेलते-खेलते एक दूसरे के पीछे से हमला करने लगे हैं. वहीं गोवा में आप के महासचिव संदीप पांडेय साफ कर चुके हैं कि पार्टी लोकसभा चुनाव में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी. दरअसल अरविंद केजरीवाल को लगता है कि उनकी स्वीकार्यता जनता के बीच राहुल गांधी से ज्यादा है और वही भाजपा के खिलाफ जनता का समर्थन पा सकते हैं.
अब बात बंगाल में दीदी की तो बता दें कि वाम दल और कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठाकर ममता यहां ताकतवर बनी ऐसे में ममता को कबी यह पसंद नहीं होगा कि कांग्रेस राज्य में एक बार फिर ताकतवर हो. बता दें कि कांग्रेस के जीते एकमात्र विधायक को हाल ही में ममता ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया, इसके साथ ही TMC समर्थकों पर एक कांग्रेसी कार्यकर्ता की हत्या की भी खूब चर्चा रही. इसके साथ ही ममता का फॉर्मूला जहां जो मजबूत वहां वही करेगा राज मतलब वह कांग्रेस से साहनुभूति तो नहीं रखती है साफ हो गया है.
वहीं कांग्रेस की दुविधा भी बड़ी है. राष्ट्रीय पार्टी और कर्नाटक में इतनी बड़ी जीत के बाद भी उसे ही सब त्याग करने के लिए मजबूर कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए सोचना जरूरी है वजह शायद यही है कि पहले 23 जून की बैठक में शामिल होने की बात करने के बाद अखिलेश के बयान ने कांग्रेस नेताओं का मन जरूर बदल दिया होगा. कांग्रेस अब नीतीश और लालू के फोन पर वह जवाब नहीं दे रही है जो वह चाह रहे हैं.