लालू का साथ छोड़ने वाले कई नेता ही पार्टी के लिए बन गए भष्मासुर! अभी भी 3 नेताओं के हाथ है तीन दलों की कमान
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लालू का साथ छोड़ने वाले कई नेता ही पार्टी के लिए बन गए भष्मासुर! अभी भी 3 नेताओं के हाथ है तीन दलों की कमान

बिहार की राजनीति में लालू यादव का जो दबदबा रहा वह अभी तक किसी नेता का नहीं रहा है. लालू यादव जेपी आंदोलन के दौरान छात्र नेता के तौर पर उभरे और उन्होंने लंबे समय तक बिहार की सत्ता पर अपने आप को काबिज रखा. लालू ने फिर अपनी सत्ता का उत्तराधिकार अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दिया.

(फाइल फोटो)

पटना : बिहार की राजनीति में लालू यादव का जो दबदबा रहा वह अभी तक किसी नेता का नहीं रहा है. लालू यादव जेपी आंदोलन के दौरान छात्र नेता के तौर पर उभरे और उन्होंने लंबे समय तक बिहार की सत्ता पर अपने आप को काबिज रखा. लालू ने फिर अपनी सत्ता का उत्तराधिकार अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दिया. लालू यादव कई विवादों में भी घिरे रहे और कई घोटालों में भी उनका नाम रहा. उन्हें सजा भी मिली और आज भी वह जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं. आपको बता दें कि इतना कुछ होने के बाद राजद सुप्रीमो का कद पार्टी में कभी कम नहीं हुआ और पार्टी सूत्र बताते हैं कि आज भी लालू यादव से बिना सलाह के पार्टी से जुड़े फैसले नहीं लिए जाते.

लालू यादव की राजनीतिक पाठशाला से बिहार में कई बड़े नेता निकले और उन्होंने राजनीति में अपना खासा प्रभाव छोड़ा. अभी भी राजद के अलावा बिहार में तीन दल ऐसे हैं जिनकी कमान लालू की राजनीतिक पाठशाला से निकले नेता के हाथ में हीं है. इनमें भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डा. अखिलेश प्रसाद सिंह और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा शामिल हैं. 

आपको जानकर हैरानी होगी की भाजपा के लगातार दो प्रदेश अध्यक्ष राजद से होते हुए हीं पार्टी तक पहुंचे और उन्हें भाजपा ने बिहार में अपनी पार्टी की कमान सौंपी. डॉ संजय जायसवाल इससे पहले बिहार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे और उन्होंने भी लालू की राजनीतिक पाठशाला से ही अपनी राजनीति की शुरुआत की थी. वहीं सम्राट चौधरी पर तो लालू की बड़ी कृपा रही है. वह राजद सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री होने का रिकॉर्ड बना चुके हैं. 

आपको बता दें कि जदयू के उमेश कुशवाहा और कांग्रेस के डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह ने भी अपना पहला चुनाव राजद के झंडे के नीचे ही लड़ा और यहीं से इनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई. आज इनके हाथ में जदयू और कांग्रेस की कमान है. उमेश कुशवाहा 2005 में राजद के टिकट पर चुनाव लड़े तो हार गए. यह पहला मौका था. फिर वह 2010 में निर्दलीय चुनाव मैदान में आए और हार का सामना करना पड़ा. 2015 में  
राजद और जदयू साथ मिलकर चुनाव लड़ रही थी और कुशवाहा जदयू के टिकट से मैदान में थे उन्हें राजद का समर्थन मिला और वह जीत गए. इसके बाद 2020 में जदयू एनडीए के साथ चुनाव लड़ी और इस बार अमेश कुशवाहा को फिर हार का सामना करना पड़ा. 

वहीं कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह को 5 बार के चुनाव में दो बार जीत हासिल हुई और वह दोनों बार वह राजद के टिकट पर ही चुनाव में जीत हासिल कर पाए. वह अभी कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं यह भी राजद के समर्थन की वजह से संभव हो पाया है. 

अब भाजपा के दो नेताओं के बारे में जान लें. डॉ संजय जायसवाल ने अपना पहला चुनाव राजद के टिकट पर हीं लड़ा था. आपको बता दें कि वहीं भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को राजनीति में प्रवेश भी राजद का दामन थाम कर ही मिला था. अब लालू की राजनीतिक पाठशाला के कई नेता ऐसे हैं जो लालू की पार्टी के लिए भाष्मासुर बन गए हैं. वह अब लालू की पार्टी के खिलाफ ही मैदान में हैं और उनकी पार्टी को सामने से चुनौती दे रहे हैं. हालांकि अभी कुछ नेता ऐसे भी हैं जो भले उनकी पार्टी में नहीं हों लेकिन उनकी पार्टी के गठबंधन में जरूर शामिल हैं और पार्टी को उनका समर्थन मिल रहा है.   

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