SC Verdict on Reservation: आरक्षण और क्रीमीलेयर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उससे मोदी सरकार के मंत्रियों में रार छिड़ गई है. चिराग पासवान ने जहां फैसले का विरोध करते हुए अपील करने की बात कही है तो जीतनराम मांझी ने इसे उचित फैसला करार दिया है.
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पटना: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों के आरक्षण के भीतर क्रीमी लेयर बनाए जाने की अनुमति दी है. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया है जबकि दूसरे केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया है. माझी ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. कोर्ट का यह फैसला 10 साल पहले आना चाहिए था. यह कहां का न्याय है कि जो आगे बढ़ रहा है और आगे बढ़ता जाए और जो पीछे हो रहा है वो पीछे होता जाए. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के अनुसार साक्षरता एक मापदंड है समाज में सबसे निचले स्तर पर खड़े होने का.
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जीतनराम मांझी ने कहा, आज अनुसूचित जातियों की साक्षरता दर सिर्फ 30 प्रतिशत है. उनमें भी कुछ जातियों की साक्षरता दर तो महज 15 प्रतिशत से भी नीचे है तो जिसकी 30 प्रतिशत या उससे ज्यादा साक्षरता दर है उसे सुविधा मिलनी चाहिए. इस पर हमें इससे ऐतराज नहीं है लेकिन जिसकी साक्षरता दर महज 7 से 8 प्रतिशत है उसको तो प्रोत्साहन जरूर मिलना चाहिए.
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसी के मद्देनजर है कि जो समाज में सबसे निचले तबके पर है, उसे आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए. बताइए अनुसूचित श्रेणी की अन्य जातियों के कितने लोग आईएएस, आईपीएस और चीफ इंजीनियर हैं? अनुसूचित श्रेणी की कुछ जातियां पिछले 76 साल से लाभ लेती रही हैं, इसका क्या मतलब है कि सिर्फ उन्हें ही लाभ मिलते रहना चाहिए?
बता दें कि चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हमारी पार्टी सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध करेगी कि वह अपने हाल के फैसले की समीक्षा करे, जिसमें अनुसूचित जाति कोटे के तहत 15 प्रतिशत उप-समूहों को अनुमति दी गई है. एससी कोटे में क्रीमी लेयर को अनुमति नहीं दी जा सकती. एससी कोटे में उप-समूहों को अनुमति देने से सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े वर्ग के उत्थान का उद्देश्य पूरा नहीं होगा, जो छुआछूत की प्रथा का शिकार रहा है.
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चिराग पासवान का यह भी कहना है कि अनुसूचित जाति के अधिकांश लोग, यहां तक कि संपन्न परिवारों से आने वाले और शिक्षा तक पहुंच रखने वाले लोग भी अस्पृश्यता का सामना करते हैं. इसलिए, अनुसूचित जाति के भीतर उप-समूहों की अनुमति देना न्यायोचित नहीं है.