Kishanganj Flood News: किशनगंज में महानंदा नदी किनारे बसा बगलबाड़ी गांव के ग्रामीण जो अपने पूर्वजों के गांव का अस्तित्व बचाने के लिए 15 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं. 15 साल पहले जो गांव के जमींदार हुआ करते थे, आज मजदूरी कर गुजारा करने को विवश हैं. नदी कभी यहां से डेढ़ किलोमीटर दूर बहा करती थी लेकिन बीते 15 सालों में इस नदी ने कइयों के आंगन को अपने बहाव का केंद्र बना लिया.
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Kishanganj Flood News: सोचिए, आपका हंसता-खेलता परिवार हो, अच्छा घर-द्वार हो, खेती-बाड़ी भी ठीक-ठाक हो, जिंदगी की गाड़ी पटरी पर दौड़ रही हो लेकिन अचानक से एक सैलाब कहर बनकर आए और आपकी हंसती खेलती जिंदगी तबाह हो जाए. मन में इस बात का ख्याल आते ही एकबारगी रूह कांप तो जरूर जाएगी लेकिन किशनगंज में महानंदा नदी किनारे बसा गांव बगलबाड़ी गांव के लिए यह कड़वी हकीकत है. ऐसी हकीकत, जिससे पिछले 15 सालों से न केवल जिला प्रशासन, बल्कि राज्य सरकार भी लगातार नजरंदाज करते रहे हैं.
इन चंद पंक्तियों से यहां के पीड़ितों के दर्द को समझा जा सकता है-
जलमग्न हो बह रहे घर-घरौंदे हमारे
संगम बन चुके हैं खेत खलिहान भी सारे
हर ओर पानी, हर तरफ बहाव
हर तरफ उमड़ता लहरों का सैलाब
दूर-दूर तक नजर कुछ न आता
बाढ़ के पानी ने तो आंखों को भी समंदर बना डाला
किशनगंज में महानंदा नदी किनारे बसा बगलबाड़ी गांव के ग्रामीण जो अपने पूर्वजों के गांव का अस्तित्व बचाने के लिए 15 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं. 15 साल पहले जो गांव के जमींदार हुआ करते थे, आज मजदूरी कर गुजारा करने को विवश हैं. नदी कभी यहां से डेढ़ किलोमीटर दूर बहा करती थी लेकिन बीते 15 सालों में इस नदी ने कइयों के आंगन को अपने बहाव का केंद्र बना लिया. जहां हंसते-खेलते परिवार हुआ करते थे, आज वहां लहरों का राज है. नदी की वजह से सिंचाई की समुचित व्यवस्था होने से फसलों की पैदावार अच्छी होती थी और गांव में खुशहाली थी.
15 साल पहले गांव को किसी की बुरी नजर लग गई और महानंदा नदी ने ऐसा कहर बरपाया कि कई ग्रामीणों के आशियाने नदी में समा गए. गांव को बचाने के लिए ग्रामीण सरकार और प्रशासन से गुहार लगाते रहे. महानंदा नदी के उग्र रूप साथ ही बिहार सरकार और जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण सैकड़ों एकड़ खेती योग्य भूमि नदी में समा गई. 500 से अधिक घर भी नदी के भूगोल में शामिल हो गए और इसके साथ ही इन लोगों के सिर से घर का साया हमेशा के लिए उठ गया. इन लोेगों को गांव छोड़कर जाना पड़ा.
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ग्रामीणों का कहना है कि 15 साल महानंदा का कटाव जारी है. महानंदा नदी इस गांव पर हर साल कहर बनकर टूटती है. ग्रामीणों का कहना है कि इस वर्ष प्रशासन की ओर से कोई ठोस काम नहीं किए जाने से सारा गांव नदी में समा जाएगा. हर साल बरसात आने के बाद जिला प्रशासन की नींद खुलती है और जिओ बैग में बालू भरकर नदी की कटाव से गांव को बचाने का खेल चलता है. सीमांचल के लोगों को नदी की कटाव से बचाने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष भी आमने-सामने आ गए हैं. भाजपा एमएलसी डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल ने सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए फ्लड फाइटिंग कार्य को दुधारू गाय बताया. उन्होंने कहा कि बाढ़ से पूर्व तैयारियों को लेकर सदन में सरकार को घेरने का काम किया जाएगा. वही राजद विधायक ने कटाव निरोधी कार्य का तारीफ कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं. उनके विधानसभा क्षेत्र के लोगों द्वारा चचरी पुल का इस्तेमाल करने के सवाल पर उन्होंने कहा, सरकार से पक्की पुल निर्माण की मांग की गई है. पुल की स्वीकृति के साथ ही काम आरंभ हो जाएगा.
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दूसरी ओर, जिला पदाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने कहा कि संभावित बाढ़ को लेकर पूर्व की तैयारी पूरी कर ली गई है. जिला पदाधिकारी ने कहा कि कटाव स्थलों को चिंहित कर कटाव रोधी काम किया गया है. दूसरी ओर, बगलबाड़ी गांव की समस्या को लेकर उन्होंने कहा महानंदा बेसिन प्रोजेक्ट के तहत जल्द काम शुरू हो जाएंगे. बाढ़ पीड़ितों के जख्मों पर ना तो प्रशासन और ना ही राज्य सरकार ने कोई पहल की है. किशनगंज का यह कोई पहला गांव नही है, जहां महानंदा नदी कहर बनकर टूटती है. ऐसे दर्जनों गांवों की फेहरिस्त है. अगर समय रहते सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती तो महानंदा नदी में कई और समा सकते हैं.
रिपोर्ट- अमित