CM हेमंत सोरेन ने बैंकों से कर्ज के बंटवारे में युवाओं की अनदेखी पर जताई चिंता, कही ये बड़ी बात
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CM हेमंत सोरेन ने बैंकों से कर्ज के बंटवारे में युवाओं की अनदेखी पर जताई चिंता, कही ये बड़ी बात

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने मंगलवार को झारखंड जनजातीय महोत्सव के उद्घाटन के अवसर पर कहा, 'मैं अपने समाज को जानता हूं, अपने राज्य के लोगों को समझता हूं.

 (फाइल फोटो)

Ranchi: CM हेमन्त सोरेन ने मंगलवार झारखंड जनजातीय महोत्सव के उद्घाटन किया.  इस दौरान झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंगलवार को बैंकों से कर्ज के बंटवारे में युवाओं की अनदेखी पर चिंता जताते हुए कहा कि सुस्त बैंकिंग कार्यप्रणाली के कारण आज युवा कर्ज के अभाव में हुनमंद होने के बावजूद मजदूरी करने को विवश हैं. 

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने मंगलवार को झारखंड जनजातीय महोत्सव के उद्घाटन के अवसर पर कहा, 'मैं अपने समाज को जानता हूं, अपने राज्य के लोगों को समझता हूं. मुझे पता है की बैंक से लोन लेना मेरे युवा साथियों के लिए कितना कठिनाई पूर्ण रहता है. देश में बैंकों की स्थिति तो यह है कि हेमन्त सोरेन भी अगर लोन लेने जाए तो उसे पहली दफा में नकार देंगे. हमारे युवा हुनरमंद होते हुए भी मजदूरी करने को विवश हैं.' 

उन्होंने आगे कहा, 'हमने स्थिति को बदलने की ठानी है. अब गाड़ी चलाने जानने वाला गाड़ी का मालिक बन रहा है. हम अपने आदिवासी लोगों को साहूकारों महाजनों के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं. मिशन मोड में कार्यक्रम चलाकर हम किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवा रहे हैं.' उन्होंने कहा, 'छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए राशि उपलब्ध करवाने को लेकर गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना लेकर आ रहे हैं.

"पर्यावरण की रक्षा करनी है, तो आदिवासियों को बचाना होगा"

इस दौरान CM हेमंत सोरेन ने मंगलवार को कहा कि जनजातीय समुदाय एक स्वाभिमानी समुदाय है, जिसे कोई झुका नहीं सकता, कोई डरा नहीं सकता और न ही कोई हरा सकता है. उन्होंने कहा, 'पर्यावरण की रक्षा करनी है, तो आदिवासियों को बचाना होगा, जल, जंगल, जीव-जंतु सभी अपने आप बच जाएंगे.' 

सोरेन ने रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित झारखंड जनजातीय महोत्सव-2022 को संबोधित करते हुए कहा, 'जानवर बचाओ, जंगल बचाओ सब बोलते हैं पर आदिवासी बचाओ कोई नहीं बोलता. अगर आदिवासी को बचाएंगे तो जंगल जीव-जंतु सब बच जाएगा.' उन्होंने कहा, 'आज आदिवासी समाज के समक्ष अपनी पहचान को लेकर संकट खड़ा हो गया है. क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं?' 

(इनपुट: भाषा)

 

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