अस्पताल बनकर तैयार, उद्घाटन का इंतजार, कब मिलेगा आदिवासियों को इलाज?
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अस्पताल बनकर तैयार, उद्घाटन का इंतजार, कब मिलेगा आदिवासियों को इलाज?

Jharkhand Samachar:एक तरफ जहां लोगों को अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे थे, वहीं दूसरी तरफ एक स्वास्थ्य केन्द्र बनकर तैयार हो चुका है, लेकिन उद्घाटन के अभाव में उसमें इलाज तक नहीं हो पा रहा है. 

 

अस्पताल बनकर तैयार, उद्घाटन का इंतजार (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Hazaribagh: हजारीबाग के केरेडारी क्षेत्र बुंडू पंचायत में करोड़ों की लागत से बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का अब तक उद्घाटन नहीं हो पाया है. ये स्वास्थ्य केंद्र 2017 में बनकर तैयार हो चुका था. ऐसे में उद्घाटन में देरी से राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और केरेडारी के प्रशासनिक अधिकारियों पर कई सवाल उठ रहे हैं. सवाल उठना लाजमी भी है क्योंकि कोरोना (Corona) की दूसरी लहर में अस्पताल से लेकर बेड और ऑक्सीजन की किल्लत सामने आई है, जिससे लोगों की जान भी जा रही है.

एक तरफ जहां लोगों को अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे थे, वहीं दूसरी तरफ एक स्वास्थ्य केन्द्र बनकर तैयार हो चुका है, लेकिन उद्घाटन के अभाव में उसमें इलाज तक नहीं हो पा रहा है. अस्पताल में घास उग आई है यहां साफ-सफाई भी नहीं की जाती है. इधर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बुंडू के पास बसे बिरहोर में आदिवासी समाज के लोग रहते हैं. स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने से इनको इलाज में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यहां के लोगों को इलाज के लिए 50 किलोमीटर दूर केरेडारी और करीब 150 किलोमीटर दूर बड़कागांव जाना पड़ता है, लेकिन आदिवासी समाज के लोगों के पास इतनी दूर अस्पताल जाने के लिए ना तो साइकिल है और ना ही कोई गाड़ी. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के आसपास रहने वाले बाशिंदों को इलाज के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. 

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ऐसे में गांववाले जनप्रतिनिधियों और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं. उनका कहना है कि 'इतना खर्च करके आखिर क्यों अस्पताल का निर्माण किया गया है? ये अस्पताल हमारे किसी काम का नहीं है.' गांववालों ने अधिकारियों पर सरकारी पैसे के दुरुपयोग का आरोप लगाया. आदिवासी सबनम का कहना है कि इलाज के अभाव में गर्भवती महिलाएं, बच्चे और बुजुर्गों की मौत हो चुकी है. आदिवासी लोगों की दिक्कतों को दूर करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण हुआ है लेकिन उद्घाटन नहीं होने से इसका फायदा आदिवासी समाज को नहीं हो पा रहा है.

 

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