शहीद सूबेदार नागेश्वर महतो ने करगिल युद्ध के दौरान 13 जून 1999 को द्रास में हंसते-हंसते देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था. आज भी उनका पूरा परिवार एकजुट होकर उस क्षण को गर्व के साथ याद करता है.
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Ranchi: देश के लिए जान गवाने वाले वीर शहीद के परिवार के लिए 15 अगस्त का दिन किसी त्योहार से कम नहीं होता है. इस दिन उनके पूरे परिवार का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. रांची के वीर शहीद नायाब सूबेदार नागेश्वर महतो का परिवार भी कुछ ऐसा ही है.
शहीद सूबेदार नागेश्वर महतो ने करगिल युद्ध के दौरान 13 जून 1999 को द्रास में हंसते-हंसते देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था. आज भी उनका पूरा परिवार एकजुट होकर उस क्षण को गर्व के साथ याद करता है.
शहीद नायब सूबेदार नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी उन दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि उनका सबसे बड़ा बेटा मुकेश तब 11 साल का था, मंझला यानी बीच वाला बेटा अभिषेक तब 7 साल का था और सबसे छोटा बेटा आकाश महज ढाई साल का था.
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तब इनके पति की पोस्टिंग झांसी में थी और उसी समय उनकी पोस्टिंग द्रास में हो गई थी, जिसके बाद नायब सूबेदार नागेश्वर महतो तीन महीने बाद लौटने का वादा कर सीमा पर अपनी ड्यूटी पर गए थे और संध्याअपने बच्चों सहित रांची आ गईं.
संध्या देवी बताती हैं, 'रांची आए लगभग एक सप्ताह ही बीता था कि उनके यूनिट के कुछ लोगों ने आकर सूचना दी कि नायब सूबेदार नागेश्वर महतो वीरगति को प्राप्त हो गए हैं. तब लगा मानो सब कुछ खत्म हो गया है लेकिन देश के लिए कुर्बान होने पर गर्व भी था.
उन्होंने कहा कि आज भी पति की कमी पूरे परिवार को खलती है. बड़ा बेटा मुकेश तो उन दिनों को याद कर आज भी बेहद भावुक हो जाता है, आंखें डबडबा जाती हैं और जबान सहम जाती है.' बहरहाल इनके परिवार को शहीद सूबेदार नागेश्वर महतो की कमी तो खलती है लेकिन साथ ही आज तक वे उस घड़ी को याद कर गर्व महसूस करते हैं.