Jharkhand News: खूंटी के सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय क्षेत्र के दिव्यांग अनाथ और बेसहारा बच्चों को शिक्षित करने के लिए बहुत बड़ा माध्यम बना हुआ है. विद्यार्थी यहां पढ़ते ही नहीं बल्कि वहां रहकर विद्यार्थी खेल, कलाकारी, कंप्यूटर साइंस आदि की भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
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खूंटी: Jharkhand News: झारखंड के खूंटी के सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय क्षेत्र के दिव्यांग अनाथ और बेसहारा बच्चों को शिक्षित करने के लिए बहुत बड़ा माध्यम बना हुआ है. विद्यार्थी यहां पढ़ते ही नहीं बल्कि वहां रहकर विद्यार्थी खेल, कलाकारी, कंप्यूटर साइंस आदि की भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. विद्यालय में ऐसा भोजन मिलता है जो अधिकतर बच्चों को अपने घरों में ऐसा भोजन मिल पाना संभव नहीं हो पाता है.
अनाथ और बेसहारा बच्चे जिनके आगे बढ़ने के लिए मार्ग बंद हो जाते है. वहीं वैसे विद्यार्थियों को नेशनल आर्चर रहे आशीष कुमार और उनके सहयोगी निशुल्क आर्चरी का ट्रेनिंग देते हैं. हालांकि विद्यालय में अच्छा मैदान तो नहीं है यहां बड़े-बड़े पत्थर कंकड़ निकल रहे हैं, लेकिन इस में जूझते हुए बच्चे अपने भाग्योदय करने के लिए तपस्या में लगे हुए हैं.
जरिया गढ़ थाना क्षेत्र जलंगा गांव निवासी सावना हीरो की मां का देहांत बचपन में ही हो गया था. सावना हीरो ने बताया कि उसके बाद घर का कामकाज करना पड़ता था. पिताजी ने आवासीय विद्यालय में नामांकन करा दिया, पहले अच्छा नहीं लगता था फिर धीरे-धीरे मन लगा तो अब पढ़ाई में मन लग रहा है.
सुभाष चंद्र बोस की आवासीय विद्यालय के वार्ड प्रभारी शिक्षिका प्रतिमा कुमारी ने बताया कि सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय ट्रैफिकिंग के शिकार, अनाथ, दिव्यांग और भटकते रहने वाले बच्चों के लिए खोला गया है. घर में उनकी देखरेख करने वाले नहीं होते हैं. वैसे बच्चे विद्यालय में पढ़ाई करते हैं. विद्यालय में पढ़ाई के साथ-साथ स्मार्ट क्लास, खेल ड्राइंग आर्चर कबड्डी अनेक खेल का भी प्रशिक्षण दिया जाता है. बच्चों को पहले विद्यालय में मन नहीं लगता था, लेकिन धीरे-धीरे यहां का वातावरण से वह लोग घुल मिल गए और अब वहीं बच्चे अच्छा करने लगे हैं.
दिव्यांग बच्चा झोंगो पहने ने बताया कि घर में गरीबी है. पिताजी छोटे-मोटे किसान हैं. गांव में विद्यालय नहीं जाते थे. पांचवी तक पढ़ाई करने के बाद विद्यालय छोड़ दिए थे. कभी-कभी पिताजी के काम में हाथ बताते थे और केवल घूमते रहते थे. पढ़ाई में मन नहीं लगता था, लेकिन आवासीय विद्यालय में नामांकन के बाद अब पढ़ाई में भी मन लग रहा है. वहीं अंशु कुमार ने बताया कि उसकी मां पिताजी का देहांत उसके बाल निकलने में ही हो गया था तो उसके फूफा ने उसका लालन पालन किया. आवासीय विद्यालय में आने के बाद उसके जीवन में काफी बदलाव आया है.
इनपुट- ब्रजेश कुमार
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