बोकारो जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र का एक ऐसा गांव जहां ढिबरी युग में रहने को लोग मजबूर हैं. आज तक विकास योजनाएं यहां नहीं पहुंची हैं. नाले के पानी पीकर लोग जीवन बसर कर रहे हैं.
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बोकारो : झारखंड के गठन को 22 साल होनेवाले हैं. फिर भी राज्य में एक गांव ऐसा है जहां विकास की रौशनी अभी तक नहीं पहुंची है. बोकारो के गोमिया का असनापानी गांव में आज भी बिजली नहीं पहुंची है. ढिबरी ही उनके जीवन में रोशनी का सहारा है. ना सड़क है ना पीने के स्वच्छ पानी की सुविधा, एक डाड़ी से पूरे गांव की प्यास बुझती है. वह भी गर्मियों में पूरी तरह सुख जाती है.
गांव में सुविधाओं के नाम पर सड़क तक नहीं
यहां के ग्रामीणों को लगभग 12 किमी की दूर दुर्गम पहाड़ियों तथा पथरीले रास्ते से गुजरते हुए पैदल रास्ता तय करना होता है. न स्कूल, न चिकित्सा सुविधा, रोशनी के लिए कुछ सोलर लाइट लगी लेकिन अब बेकार होकर सिर्फ शोभा बढ़ा रही है. गांव में एक भी व्यक्ति इतना पढ़ा लिखा नहीं मिला जो गांव पहुंचे बीडीओ के सामने अपनी समस्या सुना सके, हक अधिकार की मांग कर सके.
यहां पैदल पहुंचना भी होता है कठिन
इस गांव में साइकिल, मोटरसाइकिल से पहुंचना सपने जैसा है. गांव में अगर कोई बीमार पड़ गया, किसी गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई तो समझिए उस परिवार के लिए शामत हो गई, अस्पताल तक पहुंचना असंभव सा हो जाता है. ग्रामीण खाट में उठाकर 12 किमी पैदल यात्रा करते हुए गांव के बाहर इंतजार में खड़ी एंबुलेंस तक मरीज को पहुंचाते हैं. तब जाकर इलाज संभव हो पाता है. ऐसी विपरीत परिस्थितियां हैं गांव में. एंबुलेंस पहुंचने की कल्पना करना यहां मिथ्या होगी.
वहीं गोमिया के प्रखंड विकास पदाधिकारी कपिल प्रसाद ने भी माना कि यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि सड़क नहीं बनने के चलते यहां से मरीजों को भी ले जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर बसा यह गांव विकास की योजनाओं की राह तकता रहता है. यहां विकास की योजनाओं का नहीं पहुंचना काफी चिंता का विषय है. ऐसे में सरकार और जिला प्रशासन को चाहिए की विकास योजनाएं यहां धरातल तक कैसे पहुंचे इस पर विचार करे.
(रिपोर्ट- मृत्युंजय मिश्रा)
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