Chhath Puja 2023: छठ पूजा की क्या है मान्यताएं और परंपराएं जानतें हैं आप?
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1955173

Chhath Puja 2023: छठ पूजा की क्या है मान्यताएं और परंपराएं जानतें हैं आप?

छठ का पर्व भगवान सूर्य के द्वारा प्रदान की जा रही समस्त ऊर्जाओं के लिए आभार प्रकट करने के तौर पर किया जाता है. इस पर्व को करने के पीछे की मान्यता है कि इससे सुख-समृद्धि, धन, वैभव की प्राप्ति होती है. जीवन में आ रही सभी परेशानियों और रोगों से मुक्ति मिलती है.

फाइल फोटो

Chhath Puja 2023: छठ का पर्व भगवान सूर्य के द्वारा प्रदान की जा रही समस्त ऊर्जाओं के लिए आभार प्रकट करने के तौर पर किया जाता है. इस पर्व को करने के पीछे की मान्यता है कि इससे सुख-समृद्धि, धन, वैभव की प्राप्ति होती है. जीवन में आ रही सभी परेशानियों और रोगों से मुक्ति मिलती है. वहीं सूर्य के समान चमकदार और ऊर्जावान व्यक्तित्व भी इसकी वजह से मिलता है. यह पर्व नियम निष्ठा से किया जाए तो यह मान-सम्मान और तरक्की के मार्ग खोलने वाला होता है. 

इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ उनकी बहन छठी मईया की विशेष तौर पर पूजा की जाती है. यह संतान की प्राप्ति के लिए भी किया जानेवाला विशेष पर्व है. इसके साथ ही मान्यता यह भी है कि सूर्य को जिस बर्तन से जल दिया जाए वह स्टेनलेस स्टील या चांदी का बना हुआ नहीं होना चाहिए. छठ पूजा के दौरान व्रतियों को सारे ऐशो आराम त्यागकर स्वच्छ और पवित्र मन से जमीन पर चादर डालकर सोना चाहिए. 

ये भी पढ़ें- Chhath Puja: नहाय-खाय के साथ कैसे शुरू होता है छठ महापर्व, जानें इस दिन का नियम

कथा के अनुसार भगवान राम जब रावण का वध कर लंका से लौटे तो ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए वह राजसूर्य यज्ञ करने वाले थे. ऐसे में इससे पहले माता सीता को गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया गया और उन्हें ऋषियों से आदेश मिला कि वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना पूरे विधि-विधान से करें. ऐसे में मां सीता ने इस व्रत को किया था. 

हालांकि इसके पीछे की एक कथा सूर्य पुत्र कर्ण से यानी महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है. कर्ण अंग प्रदेश के राजा था. जो अभी फिलहाल बिहार का भागलपुर जिला है. यहां कर्ण हर दिन गंगा में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देते थे. वह सूर्य के पुत्र होने के साथ उनके परम भक्त भी थे. ऐसे में सूर्य के आशीर्वाद से वह महान योद्धा भी बने इसलिए कहा जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण ने ही इस व्रत की शुरुआत की.   

वहीं द्रौपदी ने भी पांडवों के सारा राजपाठ हार जाने के बाद भगवान सूर्य के लिए छठ का व्रत रखा था और उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हुई थी. वहीं एक कथा राजा प्रियव्रत से भी जुड़ी हुई है जिसके अनुसार उनकी कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए राजा ने कई अनुष्ठान किए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. ऐसे में महर्षि कश्यप के आदेश पर उन्होंने पुत्रयेष्टि यज्ञ किया., लेकिन, इसके बाद राजा की रानी की कोख से मरा हुआ पुत्र पैदा हुआ. ऐसे में जब उस मरे बच्चे को जमीन में दफनाने की तैयारी हो रही थी तो माता षष्ठी प्रकट हुईं और उन्होंने कहा कि वह विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हैं. इसके बाद उनके स्पर्श से वह बच्चा जीवित हो उठा. इसके बाद से राजा ने इस त्यौहार को मनाने की घोषणा कर दी.    
 

Trending news