1919 में ब्रिटिश सरकार के रॉलेट एक्ट के खिलाफ असहयोग आंदोलन चल रहा था. उन्हीं दिनों महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का एक भाषण उन्होंने सुना.
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नई दिल्ली: आज भारत के महान सामाजिक कार्यकर्ता और समाज सुधारक जयप्रकाश नारायण (Loknayak Jayaprakash Narayan) की जयंती है. 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण में उनका जन्म हुआ था. स्वतंत्रता आंदोलन के बाद देश को आजादी मिली. लेकिन दूसरी बार आजादी दिलाने का श्रेय जेपी को जाता है. ये वो वक्त था जब संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ आंदोलन किया और देश में लोकतंत्र की दोबारा बहाली की. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें-
पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए कई छोटे-मोटे काम किए
बचपन से ही जयप्रकाश नारायण मेधावी छात्र थे. महज 18 साल की उम्र में जेपी का विवाह प्रभावती देवी से हुआ. 1922 में उच्च शिक्षा के लिए जयप्रकाश नारायण अमेरिका चले गए. 1922-1929 के बीच जेपी ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में समाज-शास्त्र की पढ़ाई की. 1919 में ब्रिटिश सरकार के रॉलेट एक्ट के खिलाफ असहयोग आंदोलन चल रहा था. उन्हीं दिनों महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का एक भाषण उन्होंने सुना. मौलाना अबुल कलाम के भाषण को सुनने के बाद ही वह स्वाधीनता की लड़ाई में कूद पड़े. तब पटना कॉलेज मे पढ़ रहे जेपी को 20 दिन में परीक्षा देनी थी लेकिन वो कॉलेज छोड़कर आजादी के आंदोलन से जुड़ गए.
1922 में बर्कले यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए उन्होंने कई छोटे-मोटे काम किए. खेतों में काम करने से लेकर होटलों में जूठे बर्तन तक धोए.
जब हजारीबाग की सेंट्रल जेल से फरार हो गए जेपी
1929 में जेपी अमेरिका से लौटे. वह पंडित जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के संपर्क में आए और 1932 में देश के अलग-अलग हिस्सों में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब कांग्रेस के सभी बड़े नेता जेल में थे, उस वक्त जयप्रकाश नारायण हजारीबाग की सेंट्रल जेल से फरार हो गए और आंदोलन का नेतृत्व किया.
आजादी मिलने के बाद जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना की, लेकिन 1957 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया.
इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ मूवमेंट
जब युवाओं और छात्रों का गुस्सा तत्कालीन इंदिरा सरकार के खिलाफ सिर चढ़कर बोल रहा था. ऐसे वक्त में जयप्रकाश नारायण फिर से सक्रिय हो गए और 1974 में किसानों के बिहार आंदोलन में उन्होंने तत्कालीन राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग की. वह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ थे.
जयप्रकाश नारायण ने 5 जून को संपूर्ण क्रांति की घोषणा की. संपूर्ण क्रांति को लेकर जो आंदोलन चला उसमें बिहार से बड़ी संख्या में नौजवानों ने हिस्सा लिया.
इसके बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी. इमरजेंसी हटाने के बाद इंदिरा गांधी ने खुफिया रिपोर्ट्स के आधार पर चुनाव करवाने का फैसला किया, उनको उम्मीद थी कि वो जीतकर फिर सत्ता में आ जाएंगी, इसलिए सभी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया. लेकिन ये दांव उलटा पड़ गया क्योंकि, जेपी की लहर में इंदिरा और संजय सरकार बनाना तो दूर खुद की सीट भी नहीं बचा पाए थे.
मार्च 1977 के चुनाव में उत्तर भारत से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार बन गई. हालांकि जीत के बाद भी जयप्रकाश नारायण विजयी भाषण देने नहीं गए और इंदिरा गांधी से मिलने चले गए थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि ये लोकनायक के व्यक्तित्व का सर्वोत्तम गुण था. 8 अक्टूबर 1979 को लंबी बीमारी के बाद पटना में उनका निधन हुआ.
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