पाकिस्तानी टैंकों पर कहर बनकर टूटे थे अरुण, दुश्मन भी करता है सलाम
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पाकिस्तानी टैंकों पर कहर बनकर टूटे थे अरुण, दुश्मन भी करता है सलाम

भारतीय सेना के सैकैंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया (फाइल फोटोः ट्विटर)

नई दिल्लीः भारत वीरों की भूमि है और आज (14 अक्टूबर) भारत माता के उस सपूत का जन्मदिन है जिसने देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. हम बात कर रहे हैं 21 साल की उम्र में दुश्मन के घर में घुसकर उसके टैंकों के परखच्चे उड़ाने वाले भारत माता के लाल अरुण खेत्रपाल की. अरुण ने 1971 के युद्ध में ऐसा कारनामा किया, जिसका मुरीद खुद पाकिस्तान भी है. हम आपको बताते हैं अरुण के शौर्य और पराक्रम की वो गाथा जिसे शायद आपने कभी ना सुना हो.

  1. 1971 युद्ध के नायक अरुण खेत्रपाल की शहादत को सलाम
  2. 21 साल की उम्र में मातृभूमि के नाम दिया सर्वोच्च बलिदान
  3. अरुण ने युद्ध भूमि में पाकिस्तान के 4 टैंकों के उड़ाए परखच्चे

दुश्मन के टैंकों के उड़ाए परखच्चे
भारतीय सेना के सैकैंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल साल 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुए युद्ध में आखिरी सांस तक दुश्मन के टैंकों से घिरने के बावजूद लड़ते रहे. अरुण ने अपने टैंक से पाक के 4 टैंक तबाह कर दिए थे. रेडियो सेट पर उनके वरिष्ठ अधिकारी 'अरुण वापस लौटो' का आदेश दे रहे थे. लेकिन अरुण अभी युद्ध में डटे रहना चाहते थे, अरुण के निशाने पर पांचवां पाकिस्तानी टैंक था. लेकिन पाक के 4 टैंकों को तबाह करने के बाद अरुण के टैंक में भी आग लग चुकी थी, परंतु टैंक की गन अभी काम कर रही थी.

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इसीलिए अरुण ने रेडियो सेट यह कहकर बंद कर दिया कि 'अभी मेरी गन काम कर रही है...' इसी बीच एक गोला आकर टैंक के ऊपरी हिस्से को भेदता हुआ अरुण से जा टकराया. जब तक अरुण कुछ समझ पाते तब तक बहुत देर हो चुकी थी. घायल अरुण ने अपने गनर से कहा 'मैं बाहर नहीं आ सकूंगा.' तमाम कोशिशों के बावजूद गनर उनको टैंक से बाहर नहीं कर पाया और 16 दिसंबर, 1971 के दिन 10 बजकर 15 मिनट पर अरुण ने आखिरी सांस ली.

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सेना ज्वाइन करते ही युद्ध में लिया हिस्सा
14 अक्टूबर 1950 के दिन अरुण खेत्रपाल का पुणे में जन्म हुआ था. 17 साल की उम्र में उनका NDA में दाखिला हो गया था. 3 साल की ट्रेनिंग के बाद खेत्रपाल की पहली ज्वाइनिंग 13 जून 1971 को 17 पूना हॉर्स में मिली. ज्वाइनिंग के 6 महीन के अंदर ही भारत-पाक के बीच युद्ध शुरू हो गया और उन्हें उसमें हिस्सा लेने का मौका मिला. जम्मू-कश्मीर के सांभा में बंसतर नदी को पार करने के बाद ही वो दुश्मन के निशाने पर आ चुके थे. जब लड़ते हुए वो शहीद हुए तो उनकी उम्र महज़ 21 साल थी. पराक्रम और अदम्य साहस के लिए उन्हें परमवीर चक्र से नवाज़ा गया.

सेना से ही जुड़ी हैं पारिवारिक पृष्ठभूमि
अरुण खेत्रपाल सेना ज्वाइन करने वाले परिवार के अकेले शख्स नहीं थे. उनके परदादा सिख आर्मी में 1848 में हुए चलियांवाला के युद्ध में लड़े थे. उनके दादा पहले विश्व युद्ध में अंग्रेज़ों की सेना से लड़े थे. अरुण के पिता सेना की इंजीनियरिंग कॉर्प से जुड़े थे, जोकि ब्रिगेडियर के पद से रिटायर हुए थे. अपने परिवार में अरुण चौथी पीढ़ी के थे, जो सेना से जुड़े हुए थे.

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