राम मंदिर निर्माण की शुरुआत बीजेपी के अपने विरोधियों पर वैचारिक जीत के रूप में सामने आई है.
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नई दिल्ली: भाजपा को एक जमाने में अपने सहयोगियों को लुभाने के लिए एक बार अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण के विवादास्पद मुद्दे को पीछे छोड़ना पड़ा था, आज इसके निर्माण की शुरुआत अपने विरोधियों पर उसकी वैचारिक जीत के रूप में सामने आई है. यहां तक कि कई विपक्षी नेता भी इसका स्वागत कर रहे हैं.
इत्तेफाक से जिस दिन मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की उपस्थिति में शिलान्यास करेंगे उसी दिन जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 को निरस्त करने की पहली वर्षगांठ भी है. पांच अगस्त के दिन ही एक साल पहले धारा 370 को समाप्त कर भाजपा ने विचारधारा से जुड़े अपने एक अन्य प्रमुख वादे को पूरा किया था.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बुधवार को होने वाले शिलान्यास में प्रमुख राजनीतिक उपस्थिति प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रहने वाली है. दोनों ही इसके लिए उपयुक्त हैं क्योंकि दोनों हिन्दुत्व के प्रति अपनी अटल निष्ठा के लिए जाने जाते हैं.
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रथ यात्रा
याद दिलाते चलें कि भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारी के नाते मोदी ने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की 1990 में हुई ‘‘राम रथ यात्रा’’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जबकि आदित्यनाथ के गुरू स्वर्गीय महंत अवैद्यनाथ ने 1984 में बने साधुओं और हिन्दू संगठनों के समूह की अगुवाई कर मंदिर आंदोलन में अहम योगदान दिया था.
मान्यता के अनुसार जहां भगवान राम का जन्म स्थान है वहां मंदिर निर्माण के पक्ष में साल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला देकर हिन्दू और मुस्लिम समूहों के बीच ऐतिहासिक विवाद का कानूनी पटाक्षेप किया वहीं मंदिर निर्माण की शुरुआत हिन्दुत्ववादी भावनाओं को आगे मजबूती देने का काम कर सकती है.
आस्था का मुद्दा
भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘‘हमारे लिए अयोध्या का मुद्दा बहुत पहले ही राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया था. यह हमारे लिए हमेशा से आस्था का मुद्दा रहा है. सभी आम चुनावों में हमारे घोषणा पत्रों में राम मंदिर का निर्माण और धारा 370 को समाप्त करने का वादा हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. अब जबकि दोनों वादे पूरे हो गए है, जाहिर तौर पर हम इसकी चर्चा करेंगे.’’
वैसे तो राम मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन की संकल्पना 1984 में दिवगंत अशोक सिंघल के नेतृत्व में विश्व हिन्दू परिषद ने की थी और इसके लिए देश भर में साधुओं और हिन्दू संगठनों को एकजुट करने की शुरुआत हुई थी. तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष आडवाणी के नेतृत्व में 1990 में शुरू हुई ‘‘राम रथ यात्रा’’ के बाद से यह मुद्दा राजनीतिक हलकों में छाया रहा.
भाजपा का पालमपुर अधिवेशन
इसके बाद भाजपा खुलकर राम मंदिर के समर्थन में आ गई. साल 1989 में पालमपुर में हुए भाजपा के अधिवेशन में पहली बार राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया गया.
आडवाणी ने अपनी प्रसिद्ध रथ यात्रा की शुरुआत गुजरात के सोमनाथ मंदिर से की थी. उनकी इस यात्रा को 1990 में प्रधानमंत्री वी पी सिंह के अन्य पिछड़ा वर्गो के आरक्षण के मकसद से शुरू की गई मंडल की राजनीति की काट के रूप में भी देखा जाता है.
आडवाणी की यह यात्रा देश के प्रमुख शहरों से होकर गुजरी जिसने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया. इन सबके बीच राम मंदिर का आंदोलन जोर पकड़ता गया.
भाजपा को बहुमत
साल 2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा के सत्ता में आने के बाद पार्टी ने अपने मूल मुद्दों को लेकर प्रतिबद्धता में दृढ़ता दिखाई. यह पहला मौका था जब 543 सदस्यीय लोकसभा में भाजपा को बहुमत मिला था. इस बार उसके ऊपर सहयोगियों का वैसा दबाव नहीं था जैसा कि वाजपेयी काल में गठबंधन के कारण हुआ करता था.
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साल 2019 के चुनाव में भाजपा को पहले से भी बड़ा जनादेश मिला. इसके बाद पार्टी नई ऊर्जा से अपने मूल मुद्दों पर आगे बढ़ती दिखी. पहले जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 को निरस्त करना और राम मंदिर के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना यही दर्शाता है.
(इनपुट: एजेंसी भाषा के साथ)