UP Politics: उपचुनाव और 2027 के लिए UP फतह का ब्लूप्रिंट, क्या है बीजेपी-बसपा-सपा-कांग्रेस का प्लान?
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UP Politics: उपचुनाव और 2027 के लिए UP फतह का ब्लूप्रिंट, क्या है बीजेपी-बसपा-सपा-कांग्रेस का प्लान?

Blueprint of UP victory: लोकसभा चुनाव 2024 के बाद उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर उपचुनाव और आगामी विधानसभा चुनाव 2027 को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपना ब्लू प्रिंट लगभग तैयार कर लिया है. केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा और एनडीए के सहयोगी दलों ने भी नतीजे की समीक्षा कर ली है. वहीं, सपा-कांग्रेस भी साथ होकर मैदान मे उतरने का इशारा कर चुकी है. बसपा ने अकेले मैदान में उतरने का ऐलान किया हुआ है.

UP Politics: उपचुनाव और 2027 के लिए UP फतह का ब्लूप्रिंट, क्या है बीजेपी-बसपा-सपा-कांग्रेस का प्लान?

UP Election Strategies: उत्तर प्रदेश में भाजपा, बसपा, सपा और कांग्रेस समेत लगभग सभी सियासी दलों ने लोकसभा चुनाव 2024 में हार-जीत की समीक्षा के टास्क को निपटाने के साथ ही 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव और विधानसभा चुनाव 2027 फतह के लिए कसरत तेज कर दिया है. सभी पॉलिटिकल पार्टियों ने उत्तर प्रदेश फतह के लिए अपना-अपना ब्लूप्रिंट कमोबेश तैयार कर लिया है.

भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, रालोद सबकी रणनीतियों पर नजर

हालिया नतीजे में सबसे अधिक झटका खाने वाली भाजपा दलितों के दिल में दोबारा उतरने की जतन कर रही है. वहीं, कांग्रेस भी वंचित समुदायों का सियासी सपोर्ट पाने का प्लान बना चुकी है. रालोद अपने संस्थापक चौधरी चरण सिंह के अजगर समीकरण को दोहराकर कामयाब होना चाह रही है. बसपा दलित और मुस्लिम के बाद सभी जातियों के युवाओं का साथ पाने की जुगत भिड़ा रही है. वहीं, सपा पीडीए की कामयाबी से जोश में भरकर इसी समीकरण को और ज्यादा मजबूत करने में जुट गई है.

इंडिया गठबंधन (सपा-कांग्रेस) में जोश, भाजपा के सहयोगियों को आया होश

यूपी उपचुनाव से पहले देश के सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बढ़त मिलने के बाद विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन (सपा-कांग्रेस) का जोश हाई है. वहीं, यूपी भाजपा अंदरूनी खींचतान के बावजूद सियासी तैयारियों में कोई कसर बाकी छोड़ती नहीं दिख रही. वहीं, एनडीए के दूसरे सहयोगी दलों में रालोद और अपना दल को छोड़ दें तो बाकी दलों का सियासी इतिहास और अस्थिर रवैया संदेह पैदा करता है. कहा जाता है कि सुभासपा और निषाद पार्टी 2027 नजदीक आने पर ही अपना पत्ता खोलेंगे.

दलितों के दिल में दोबारा जगह बनाने की कोशिश में जुटी भाजपा

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे में दलितों का रुझान बसपा से हटकर इंडिया गठबंधन की ओर होने के बाद भाजपा सावधान है. भाजपा 2014, 2017, 2019 और 2022 की तरह दलितों के दिल में फिर से उतरने की तैयारी में है. 2024 में यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले में भाजपा 2014 और 2019 जैसा बड़ा जलवा नहीं दिखा पाई. भाजपा को सिर्फ 33 और एनडीए को 36 सीटें मिलीं. वहीं, इंडिया गठबंधन को 43 सीटें मिलीं. भाजपा का वोट शेयर भी 8 फीसद से ज्यादा घट गया.

डॉ. भीमराव आंबेडकर के सम्मान और दलितों के फायदे की नीति पर जोर

इसके बाद भाजपा के रणनीतिकारों ने उपचुनाव और 2027 के चुनाव में कांग्रेस और सपा गठबंधन की चुनौती को देखते हुए दलित वोट को साधने का प्लान बनाया है. भाजपा के सीनियर नेताओं इसके लिए दलित नेताओं और मंत्रियों की टीम बनाकर दलित बस्तियों में भेजने का प्लान बनाया है. दलित समुदाय और डॉ भीमराव आंबेडकर को लेकर मोदी सरकार के अच्छे-बड़े काम के साथ ही सपा सरकार की गलतियों और भेदभाव को लोगों के बीच ले जाना भी भाजपा के प्लान में शामिल है. इसके अलावा भाजपा हिंदुत्व के अपने कोर मुद्दे, पुराने कार्यकर्ताओं की खोजखबर, संघ से समन्वय वगैरह जैसे कई बिंदुओं पर सक्रियता भी बढ़ाएगी.

चौधरी चरण सिंह के ‘अजगर’ पर ही आगे बढ़ रहा रालोद

एनडीए की सहयोगी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश यानी जाटलैंड में अपना प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी सियासी तौर पर अपने दादा भारत रत्न चौधरी चरण सिंह के समीकरण को आग बढ़ाने में जुटे हैं. हालांकि, इसमें हल्की-फुल्की तब्दीली भी नजर आ रही है. पहले अजगर का मतलब अ से अहीर यानी यादव, ज से जाट, ग से गुज्जर और र से राजपूत जाति के प्रतिनिधित्व को देखा जाता था. अजीत सिंह के समय मुलायम सिंह के अलग होने और नई पार्टी बनाने के बाद अजगर का अ यानी अहीर भी उनके साथ चला गया. बाद में रालोद ने अ की जगह म यानी मुस्लिम को जोड़कर मजगर बनाया, लेकिन अब जयंत चौधरी संगठन विस्तार के लिए अजगर में अ से अगड़ा और अल्पसंख्यक को जोड़ रहे हैं.

वंचित समुदाय को साधने में जुटी कांग्रेस, और क्या है प्लान?

यूपी में पिछले लोकसभा चुनाव में एक सीट से बढ़कर इस बार 6 सीट जीतने के अच्छे प्रदर्शन से गदगद कांग्रेस अगले छह महीने तक नए लोगों को जोड़ने का काम करने वाली है. यूपी में सियासी जमीन मजबूत करने के लिए कांग्रेस इस प्लान को चरणबद्ध तरीके से 2027 तक चलाएगी. कांग्रेस का कहना है कि नीट पेपर लीक विवाद, अग्निवीर मामला, हाथरस सत्संग कांड, बाढ़ प्रभावितों से मुलाकात, पौधरोपण कार्यक्रम वगैरह में जनता से जुड़ाव कामयाब कहा जा सकता है.

कांग्रेस थिंक टैंक का मानना है कि वंचित समाज और अति पिछड़ा वर्ग में पैठ बढ़ाने से यूपी में उनके साथ कदमताल किया जा सकता है. कांग्रेस अपने प्लान के मुताबिक इस समाज के पुराने कांग्रेसी नेताओं की जयंती और पुण्यतिथि पर कार्यक्रम कर अपनापन बढ़ाएगी. प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कांग्रेस के सभी विभागों और प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों के साथ मीटिंग कर उन्हें पार्टी की रणनीति समझा चुके हैं. 

जगजीवन राम की पुण्यतिथि से आयोजनों का दौर शुरू

कांग्रेस ने इस रणनीति के तहत छह जुलाई को स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की पुण्यतिथि पर तीन दिवसीय 'दलित संवाद' कार्यक्रम कर वंचित बस्तियों में सहभोज के साथ इसकी शुरुआत की. अब 21 जुलाई को स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व सांसद मसूरिया दीन पासी की पुण्यतिथि पर आयोजन करने वाली है. इसके अलावा कई और कार्यक्रमों की रूपरेखा भी तैयार की जा रही है.

बसपा का युवाओं को जोड़ने पर फोकस, आकाश आनंद को सौंपी जिम्मेदारी

उत्तर प्रदेश में 2019 के मुकाबले 2024 में न सिर्फ सीटों की संख्या बल्कि वोट शेयर में भी बसपा को बड़ा धक्का लगा. बसपा की सीटें शून्य हो गईं और 10 फीसदी वोट घट गए. पिछले विधानसभा चुनावों में भी बसपा का कमोबेश ऐसा ही हाल हुआ था. इस तरह यूपी में लगातार कमजोर होती बसपा अब युवाओं को जोड़कर जनाधार आगे बढ़ाना चाहती है. बसपा प्रमुख मायावती ने इसी लिए अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी और राष्ट्रीय संयोजक बनाया है. इसके अलावा संगठन में 50 फीसदी पद युवाओं को दिए जाने की घोषणा की है. पश्चिमी यूपी में दलितों के दूसरे नेता चंद्रशेखर के सांसद बनने को भी बसपा ने चुनौती की तरह लिया है. 

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पीडीए में बदला सपा का माय समीकरण, अयोध्या में जीत को भुनाने की तैयारी

समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अपने माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण को बढ़ाकर पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) किया था. नतीजे में सपा को अब तक का सबसे बड़ा फायदा मिला. इसलिए यूपी उपचुनाव और 2027 के चुनाव में सपा ने इसी पीडीए समीकरण को और ज्यादा मजबूती से लागू करने का फैसला किया है. इसके अलावा कांग्रेस के साथ गठबंधन को मजबूती देने, अयोध्या में जीत को भुनाने और भाजपा पर ज्यादा तीखे सियासी हमले को भी सपा ने रणनीति में शामिल किया है. सपा ने अपनी नई और सफल सोशल इंजीनियरिंग के अलावा पुराने नेताओं के बाल-बच्चों को टिकट देने और संगठन में पद देने के नए प्लान पर भी काम तेज कर दिया है.

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