Bihar Caste Code Full List: 128 से ब्राह्मण, राजपूत का इतना; अब कोड से जानी जाएंगी जातियां, चेक करिए अपनी बिरादरी का नंबर
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Bihar Caste Code Full List: 128 से ब्राह्मण, राजपूत का इतना; अब कोड से जानी जाएंगी जातियां, चेक करिए अपनी बिरादरी का नंबर

Bihar Caste Codes: बिहार में जातीय जनगणना का काम जोर-शोर से चल रहा है. 15 अप्रैल से दूसरे चरण की गणना के दौरान 17 कॉलम और 215 जातियों के नामों की सूची बनाई गई है. हर जाति के लिए अलग-अलग कोड तय किए गए हैं. 

 

Bihar Caste Code Full List: 128 से ब्राह्मण, राजपूत का इतना; अब कोड से जानी जाएंगी जातियां, चेक करिए अपनी बिरादरी का नंबर

Full list Caste Codes in Bihar: बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराने का फैसला पिछले साल जून में में हुआ था. इसके बाद इस साल 7 जनवरी को बिहार सरकार ने राज्य में सर्वे की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी और अब एक तरह से बिहार में अब जातियों का अपना कोड डिसाइड हो गया है. बिहार में 15 अप्रैल से दूसरे चरण की गणना के दौरान 17 कॉलम और 215 जातियों के नामों की सूची है. हर जाति के लिए अलग-अलग कोड तय किए गए हैं. यानी अब जातियों की पहचान उनके कोड संख्या के जरिए होगी. जाति आधारित गणना में हर जाति के लिए एक अलग कोड तैयार किया गया है जो अंकों में है. यह जाति आधारित गणना से सम्बंधित प्रपत्र के अलावा पोर्टल और ऐप पर भी प्रकाशित होगा.

नीतीश के मन में क्या चल रहा है?

बिहार सरकार लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रही थी. सीएम नीतीश कुमार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास कराया था. केंद्र की मोदी सरकार ने इस मांग पर ध्यान नहीं दिया तो बिहार सरकार ने बिहार में जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया. दो चरणों में की जा रही इस प्रक्रिया का पहला चरण 31 मई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था. अब जातिगण जनगणना के दूसरे चरण में बिहार में रहने वाले लोगों की जाति, उप-जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुड़ी जानकारियां जुटाई जाएंगी.

बिहार में जातियों का अपना कोड

जाति आधारित गणना का दूसरा बिहार में 15 अप्रैल से शुरू होगा. सवर्णों की बात करें तो ब्राह्मणों के लिए 128, बनिया जाति के लिए 124, राजपूत के लिए 171, कायस्थ का कोड 22 तो भूमिहारों का कोड 144 है. इसी तरह से कुर्मी जाति का अंक 25 और कुशवाहा कोइरी का 27 है. यादव जाति में ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी, मेहर, सदगोप, लक्ष्मीनारायण गोला के लिए कोड संख्या 167 है. पहले नंबर पर अगरिया जाति है वहीं 'अन्य' का कोड 216 है. केवानी जाति के लिए 215 कोड तय किया गया है.

हर जाति के लिए अलग कोड

गणना के दौरान जातियों के नाम के साथ उस जाति के लिए निर्धारित कोड को लिखा जाएगा. एक व्यक्ति की गणना एक ही स्थान से होगी. इस कोड या अंक का उपयोग भविष्य की योजनाएं तैयार करने, आवेदन और अन्य रिपोर्ट में भी किया जा सकेगा. 

दूसरा चरण 15 अप्रैल से

बिहार में 15 अप्रैल से जाति गणना के दूसरे चरण की शुरुआत होने वाली है. इसके पहले चरण में मकानों को नंबर देने का काम किया गया था. दूसरे चरण में 215 जातियों और एक अन्य के साथ कुल 216 जातियों की गणना होगी. जातियों की सूची और उसकी श्रेणी तैयार हो चुकी है. बिहार में जारी जाति आधारित जनगणना के दूसरे चरण में प्रपत्र के अलावा पोर्टल और मोबाइल ऐप के जरिए जाति के अंकों के आाधार पर बनाए गए कोड भरे जाएंगे, जिससे जातियों की पहचान हो जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट का दखल से इनकार

बिहार सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी लेकिन सर्वोच्च अदालत ने इस जातिगत सर्वे को चुनौती देने वाली किसी भी याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को पटना हाई कोर्ट का रुख करने को कहा था.

क्या होती है जातीय जनगणना?

जातिगत जनगणना से आशय यह है कि जब देश में जनगणना की जाए तो इस दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाए. ऐसा होने से इस बात की जानकारी मिलेगी कि बिहार में कौन सी जाति के कितने लोग रहते है. 

जातिगत जनगणना का इतिहास

भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना करने की शुरुआत साल 1872 में की गई थी. अंग्रेजों ने साल 1931 तक जितनी बार भी भारत की जनगणना कराई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज किया गया. आजादी के बाद भारत ने जब साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया. तब से लेकर भारत सरकार ने एक नीतिगत फ़ैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज़ किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले से जुड़े मामलों में दोहराया कि क़ानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती, क्योंकि संविधान जनसंख्या को मानता है, जाति या धर्म को नहीं.

मंडल कमीशन का गठन

भारत सरकार ने 1979 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मसले पर मंडल कमीशन का गठन किया था. मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफारिश की. इस सिफ़ारिश को 1990 में लागू किया जा सका. 2010 में एक बड़ी संख्या में सांसदों ने जातिगत जनगणना की मांग की. 2011 में सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना करवाई तो गई, लेकिन इस प्रक्रिया में हासिल किए गए जाति से जुड़े आंकड़े कभी सार्वजानिक नहीं किए गए. इसी तरह साल 2015 में कर्नाटक में जातिगत जनगणना करवाई गई. लेकिन इसमें हासिल किए गए आंकड़े भी कभी सार्वजानिक नहीं किए गए. ऐसे में बिहार में हो रही जातिगत जनगणना,  क्या नेताओं की सियासत का टूल बनकर रह जाएगा या वाकई ये आज के वक्त की जरूरत है, इस पर लंबी बहस हो सकती है.

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