उपचुनाव नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर असर? जानें सियासी नफा-नुकसान का सही 'गणित'
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trendingNow11020212

उपचुनाव नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर असर? जानें सियासी नफा-नुकसान का सही 'गणित'

उपचुनाव नतीजों को देखकर भले ही विपक्ष को लग रहा होगा कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है लेकिन सोमवार को स्कॉटलैंड के ग्लासगो में इजरायल के प्रधानमंत्री द्वारा पीएम मोदी से कही गई बात असलियत जाहिर करती है.

उपचुनाव नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर असर? जानें सियासी नफा-नुकसान का सही 'गणित'

नई दिल्ली: आज देश भर में 30 विधान सभा और तीन लोक सभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजे भी आ गए और सोमवार को इनकी चर्चा भी होती रही. सभी पार्टियां इन नतीजों को अपने अपने-अपने नजरिए से देख रही हैं और अपने लिए शुभ मान रही हैं. इन नतीजों को विपक्ष अपनी जीत मान रहा है और बीजेपी को चिंता में डालने वाले परिणाम भी बताए जा रहे हैं. बड़ा सवाल ये है कि ये नतीजे किस तरफ इशारा करते हैं? क्या ये नतीजे मोदी सरकार पर जनता की राय है? क्या ये नतीजे पेट्रोल-डीजल के दाम और महंगाई पर जनता का जवाब है? या ये नतीजे ये बताते हैं कि बीजेपी के राज में सब ठीक-ठाक है?

  1. उपचुनाव में किसका फायदा किसे नुकसान?
  2. उपचुनाव नतीजे तय करेंगे आगे की राह?
  3. उपचुनाव में हावी रहे कौन से मुद्दे?

हिमाचल के नतीजे बीजेपी के लिए जिंताजनक?

उपचुनाव में कुछ नतीजे चौंकाने वाले रहे, जिनसे बीजेपी को चिंता होनी चाहिए. हिमाचल प्रदेश में कुल चार सीटों पर उप चुनाव हुए थे, जिनमें एक सीट लोक सभा की थी और तीन सीटें विधान सभा की थीं. राज्य में बीजेपी की सरकार होते हुए वो इन सभी सीटों पर कांग्रेस से हार गई. मंडी लोक सभा सीट, जो 2014 से बीजेपी के पास थी और जहां से मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर खुद विधायक हैं, वहां भी कांग्रेस ने बीजेपी को हरा दिया. कांग्रेस की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने लगभग साढ़े 7 हजार वोटों से जीत दर्ज की. इसके अलावा तीन विधान सभा सीटों में से एक सीट पहले बीजेपी के पास थी, लेकिन उपचुनाव में वो ये सीट भी हार गई. हिमाचल में अगले साल ही विधान सभा चुनाव होने हैं, ऐसे में उपचुनाव के ये नतीजे बीजेपी के लिए बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं. 

उपचुनाव नतीजों के क्या मायने?

यहां एक और बात समझनी चाहिए, जो विपक्षी पार्टियां इन नतीजों को महंगाई और कृषि कानून के मुद्दे पर जनता की राय बता रही हैं, उन्हें ये ध्यान रखना चाहिए कि उपचुनाव में स्थानीय मुद्दे काफी हावी होते हैं और असली लड़ाई पार्टियों के बीच नहीं बल्कि उम्मीदवारों के बीच होती है. यानी राष्ट्रीय राजनीति का इन पर ज्यादा असर नहीं होता. इसलिए ये कहना सही नहीं होगा कि लोगों ने पेट्रोल की बढ़ी कीमतों से परेशान होकर बीजेपी को हिमाचल में हराया है. क्योंकि अगर ऐसा है तो फिर इन नतीजों की तुलना मध्य प्रदेश के उपचुनावों से भी करनी चाहिए. हिमाचल की तुलना में मध्य प्रदेश में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 20 रुपये ज्यादा है. वहां पेट्रोल प्रति लीटर 118 रुपये का है लेकिन इसके बावजूद मध्य प्रदेश में बीजेपी ने तीन विधान सभा सीटों में से दो सीटें आसानी से जीत लीं. जबकि पहले ये दोनों सीटें कांग्रेस के पास थीं. इसके अलावा खंडवा लोक सभा सीट पर भी बीजेपी ने कांग्रेस को लगभग 82 हजार वोटों से हरा दिया, तो क्या हम ये मान लें कि हिमाचल के नतीजे महंगाई पर जनता की राय है, और मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं है?

क्षेत्रीय पार्टियों ने भी किया उलटफेर

हालांकि कर्नाटक के नतीजे थोड़े चौंकाने वाले रहे. वहां दो विधान सभा सीटों पर उप चुनाव हुए थे, जिनमें से एक सीट पर बीजेपी को जीत मिली जबकि एक सीट कांग्रेस जीत गई. जिस हंगल विधान सीट पर कांग्रेस को जीत मिली है, वो कर्नाटक के हवेरी जिले में आती है, जो मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का गृह जिला है, इसलिए कर्नाटक के नतीजों ने भी बीजेपी को चिंता बढ़ाई है. इसके अलावा अन्य सीटों पर क्षेत्रीय पार्टियों ने भी बड़ा उलटफेर किया है. जैसे हरियाणा की ऐलनाबाद सीट पर इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी के अभय चौटाला जीत गए. बीजेपी ने उन्हें कड़ी टक्कर तो दी लेकिन पार्टी लगभग 7 हजार वोटों से हार गई. इसमें जो बात आपको समझनी है, वो ये कि इंडियन नेशनल लोकदल के खिलाफ चुनाव में भ्रष्टाचार कोई बड़ा मुद्दा नहीं था. जबकि शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी ओम प्रकाश चौटाला 10 साल जेल की सजा पूरी करके कुछ समय पहले ही बाहर आए हैं. क्षेत्रीय पार्टियों में JDU भी है, जिसने बिहार की दोनों विधान सभा सीटें जीत ली हैं. बिहार में JDU का बीजेपी का साथ गठबन्धन है.

महंगाई और कृषि कानून मुद्दा है?

उत्तर पूर्वी राज्य मेघालय की 3 और मिजोरम और नागालैंड की एक-एक विधान सभा सीट पर भी क्षेत्रीय पार्टियों को जीत मिली है, जिनका बीजेपी के साथ गठबन्धन है. असम में भी बीजेपी के गठबन्धन ने सभी पांचों सीटें जीत ली हैं और तेलंगाना में भी उसने एक सीट पर हुए उपचुनाव जीत लिए हैं. हालांकि पश्चिम बंगाल में उसे दो सीटों का नुकसान हुआ है, यहां ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने क्लीन स्वीप करते हुए चारों विधान सभा सीटें जीत ली हैं. इनमें वो दो सीटें भी हैं, जो पहले बीजेपी के पास थीं. उपचुनाव के नतीजों ने कांग्रेस को राहत की सांस जरूर दी है. कांग्रेस राजस्थान की दो और महाराष्ट्र की एक विधान सभा सीट जीतने में कामयाब रही. हालांकि इन सीटों पर उसकी जीत का सबसे बड़ा कारण रहा, उसके उम्मीदवारों की वोटरों पर पकड़ और वहां के स्थानीय मुद्दे. यानी महंगाई या कृषि कानून के मुद्दे पर ये चुनाव नहीं लड़े गए थे.

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उपचुनाव नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर असर?

महंगाई या कृषि कानून उपचुनाव में मुद्दा नहीं रहा, इसे आप केन्द्र शासित प्रदेश दादरा और नागर हवेली के नतीजों से समझ सकते हैं. ऐसा पहली बार हुआ है, जब शिवसेना को महाराष्ट्र के बाहर किसी राज्य की लोक सभा सीट पर जीत मिली है. इस सीट से 7 बार सांसद रहे मोहन डेलकर की पिछले दिनों मुम्बई में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी, जिसके बाद शिवसेना ने उनकी पत्नी को टिकट दिया और उनके प्रति लोगों की सहानुभूति जीत में बदल गई. यानी यहां महंगाई और कोई दूसरा मुद्दा था ही नहीं. अब आप खुद सोचिए क्या उपचुनाव को राष्ट्रीय राजनीति से जोड़कर देखा जा सकता है. कुल मिला कर कहें तो 3 लोक सभा और 30 विधान सभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को एक लोक सभा और 16 विधान सभा सीटों पर जीत मिली है. कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों को एक लोक सभा और 8 विधान सभा सीटों पर जीत हासिल हुई. जबकि पश्चिम बंगाल में चारों विधान सभा सीटें ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने जीत लीं. 

इस बात से समझिए PM मोदी की लोकप्रियता 

इन नतीजों को देखकर भले ही विपक्ष को लग रहा होगा कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है लेकिन पूरी दुनिया में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता कितनी ज्यादा है इसे एक उदाहरण से समझिए. सोमवार को स्कॉटलैंड के ग्लासगो में प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात इजरायल के प्रधानमंत्री नफटाली बेनेट से हुई, इसी दौरान इजरायल के प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि वो इजरायल में सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं और वो उनकी पार्टी को ज्वाइन क्यों नहीं कर लेते? अब भले ही हमारे देश की विपक्षी पार्टियों को ये बातचीत पसंद ना आए लेकिन ये बात सच है कि प्रधानमंत्री मोदी इजरायल में बहुत लोकप्रिय हैं और यही वजह है कि जब इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू चुनाव लड़ रहे थे तो उनकी पार्टी ने इजरायल में उनकी और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात के पोस्टर्स लगाए थे यानी इजरायल के चुनाव में भी कई बार मोदी फैक्टर काम कर जाता है.

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