CAA लागू होते ही बंगाल के 30 लाख लोग क्यों हो गए खुश? 'दूसरी आजादी' मिलने का मना रहे जश्न
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CAA लागू होते ही बंगाल के 30 लाख लोग क्यों हो गए खुश? 'दूसरी आजादी' मिलने का मना रहे जश्न

CAA Hindi News: देश में CAA लागू होने पर पश्चिम बंगाल के 30 लाख लोग खुशी में झूम उठे. सोमवार को नोटिफिकेशन जारी होते ही समुदाय के हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर जश्न मनाया.  

 

CAA लागू होते ही बंगाल के 30 लाख लोग क्यों हो गए खुश? 'दूसरी आजादी' मिलने का मना रहे जश्न

Who is Matua Community: मोदी सरकार ने करीब 4 साल तक चुप्पी साधे रखने के बाद सोमवार देर शाम जैसे ही नागरिका संशोधन अधिनियम का नोटिफिकेशन जारी किया, वैसे ही पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय के लोग खुशी से झूम उठे. वे इस घोषणा का लंबे वक्त से इंतजार कर रहे थे. उन्होंने केंद्र की घोषणा के बाद उत्तर 24 परगना के ठाकुरनगर में संप्रदाय के मुख्यालय में जश्न मनाया. जश्न मना रहे लोगों ने दावा किया कि यह उनका 'दूसरा स्वतंत्रता दिवस' है. 

ढोल बजाकर मनाया जश्न

मतुआ समुदाय के सदस्यों ने ढोल बजाकर और एक-दूसरे का अभिवादन कर जश्न मनाया. साथ ही सीएए लागू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एवं स्थानीय सांसद व केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर के प्रति आभार व्यक्त किया. मतुआ समुदाय के सदस्यों ने इस क्षण को अपने लिए निर्णायक पल करार दिया. उन्होंने भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता सुगम होने पर खुशी जाहिर की. उन्होंने इसे अपना 'दूसरा स्वतंत्रता दिवस' करार दिया. 

हिंदुओं का कमजोर तबका

मतुआ समुदाय को हिंदुओं का एक कमजोर तबका माना जाता है. पश्चिम बंगाल में इस समुदाय के लोगों की तादाद करीब 30 लाख है. यह समुदाय अविभाजित भारत में पूर्वी बंगाल में निवास करता था, जिसे देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान को सौंप दिया गया. इसके बाद मतुआ समुदाय के उत्पीड़न का दौर शुरू हुआ और परेशान होकर लोग वहां से भागकर भारत आने लगे. 

करीब 30 लाख की आबादी

मतुआ समुदाय नादिया और बांग्लादेश की सीमा से सटे उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिलों की 30 से अधिक विधानसभा सीटों पर किसी भी राजनीतिक दल की किस्मत का फैसला कर सकता है. कभी टीएमसी के समर्थक रहे मतुआ समुदाय के सदस्यों ने 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था. 

कौन है मतुआ समुदाय? 

मतुआ समुदाय हिंदुओं का एक समुदाय है, जो 19वीं शताब्दी में बंगाल में उभरा. इसकी स्थापना हरिचंद्र ठाकुर (1812-1878) ने की थी, जिन्हें मतुआ समुदाय के लोग 'भगवान' मानते हैं. हरिचंद्र ठाकुर ने जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और 'स्वयं-दिक्षिति' का सिद्धांत स्थापित किया, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति बिना किसी पुजारी या ब्राह्मण की सहायता के भगवान का पूजन कर सकता है.

मतुआ समुदाय की धार्मिक मान्यताएं

मतुआ समुदाय 'स्वयं-दर्शन' या 'आत्म-दर्शन' में विश्वास करता है, जिसके तहत भगवान को आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से जाना जाता है. वे 'हरिनाम संकीर्तन' का भी अभ्यास करते हैं, जिसमें भगवान के नाम का जाप किया जाता है. मतुआ समुदाय 'हरिचंद्र ठाकुर' को भगवान विष्णु और कृष्ण का अवतार मानता है.

मतुआ समुदाय की सामाजिक संरचना

मतुआ समुदाय मुख्य रूप से बंगाल और बांग्लादेश में निवास करता है. यह समुदाय विभिन्न जातियों और सामाजिक समूहों से बना है, जो 'हरिचंद्र ठाकुर' की शिक्षाओं से प्रेरित हैं. मतुआ समुदाय में महिलाओं को समान अधिकार और सम्मान दिया जाता है.

मतुआ समुदाय का राजनीतिक महत्व

मतुआ समुदाय पश्चिम बंगाल में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति है. वे 'नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)' का समर्थन करते हैं, क्योंकि यह बांग्लादेशी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है. यह समुदाय आज भी सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. शिक्षा और रोजगार के अवसरों में कमी, गरीबी और भेदभाव कुछ प्रमुख समस्याएं हैं.

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