मोदी सरकार 3.0 ने किसानों के आंदोलन से क्यों बनाई दूरी? बदले रुख के पीछे हो सकते हैं ये 3 कारण
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मोदी सरकार 3.0 ने किसानों के आंदोलन से क्यों बनाई दूरी? बदले रुख के पीछे हो सकते हैं ये 3 कारण

Farmers Protest: साल 2020-21 में सरकार ने आंदोलनकारी किसान यूनियनों के साथ सक्रिय रूप से बातचीत की थी और तीन कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया था, लेकिन इस बार केंद्र ने एमएसपी कानून के लिए दबाव डाल रहे किसानों के प्रति अपना रुख बदल दिया है.

मोदी सरकार 3.0 ने किसानों के आंदोलन से क्यों बनाई दूरी? बदले रुख के पीछे हो सकते हैं ये 3 कारण

Modi Govt 3.0 maintaining distance from Farmers Protest: हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर शनिवार को किसानों की महापंचायत हुई. इस दौरान 40 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को स्ट्रेचर से मंच पर लाया गया और उन्होंने ‌किसानों को संबोधित किया. एमएसपी कानून समेत 12 मांगों को लेकर किसानों का प्रदर्शन लंबे समय से जारी है. मोदी सरकार 3.0 ने किसान आंदोलन को लेकर अपना रूख बदल लिया है, जबकि साल 2020-21 में साल 2020-21 में सरकार ने आंदोलनकारी किसान यूनियनों के साथ सक्रिय रूप से बातचीत की थी.

मोदी 2.0 के दौरान किसानों से चली थी लंबी बातचीत

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार 2.0 के दौरान, जब किसान तीन केंद्रीय कृषि कानूनों (अब निरस्त) के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे और दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक धरना दिया था, तब 3 केंद्रीय मंत्रियों की एक टीम ने 14 अक्टूबर 2020 से 22 जनवरी 2021 तक अपने यूनियनों के साथ 11 दौर की बातचीत की. इसमें तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश शामिल थे. एक अवसर पर 8 दिसंबर 2020 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी किसान नेताओं के साथ देर रात बैठक करने के लिए खुद दिल्ली के पूसा कॉम्प्लेक्स पहुंचे थे.

पिछले साल फरवरी में भी हुई किसानों से हुई थी बातचीत

पिछले साल फरवरी की शुरुआत में भी जब किसानों ने फिर से दिल्ली मार्च का आह्वान किया था तो तीन केंद्रीय मंत्री (पीयूष गोयल के साथ तत्कालीन कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय) आंदोलनकारी किसान यूनियनों के साथ दो दौर की वार्ता करने के लिए चंडीगढ़ गए थे. हालांकि, तब बातचीत सफल नहीं रही थी. इसके बाद से ही गतिरोध जारी है, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी दर्जा देने और कृषि ऋण माफी सहित अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत करने से कतरा रही है. अपने पिछले कार्यकाल में आंदोलनकारी किसान यूनियनों के साथ अपनी सक्रिय भागीदारी के विपरीत, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार 3.0 इस मुद्दे से दूरी बनाए हुए है.

सरकार का मानना ​​है कि तत्कालीन कृषि सचिव संजय अग्रवाल द्वारा 14 अक्टूबर 2020 को कृषि भवन में 29 प्रदर्शनकारी किसान यूनियनों के साथ पहले दौर की बैठक करने के लिए उन्हें दिल्ली आमंत्रित करने के कदम से विवाद सुलझने के बजाय और भड़क गया. बैठक तब हंगामे में बदल गई थी, जब किसान नेता कृषि मंत्री तोमर की मौजूदगी की मांग करते हुए बैठक से बाहर आ गए थे. उन्होंने कृषि भवन के बाहर तीनों विधेयकों की प्रतियां भी फाड़ दीं और नारेबाजी की. यह एक लंबी लड़ाई की शुरुआत थी, क्योंकि किसानों ने 26 नवंबर 2020 को दिल्ली के लिए अपना मार्च शुरू किया. इसके बाद 22 जनवरी 2021 तक सरकार और किसान यूनियनों के बीच 10 दौर की और वार्ता हुई, लेकिन ये बैठकें निरर्थक साबित हुईं, क्योंकि प्रदर्शनकारी किसान टस से मस नहीं हुए और दिल्ली की सीमाओं पर अपनी नाकेबंदी जारी रखी.

पीएम मोदी ने कर दी कृषि कानून रद्द करने की घोषणा

12 जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी और तीनों कृषि कानूनों पर विचार-विमर्श के लिए चार सदस्यीय समिति गठित करने का आदेश पारित किया. समिति के एक सदस्य, भारतीय किसान यूनियन और अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इसकी बैठकों से अलग कर लिया, जबकि अन्य तीन सदस्यों - अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के दक्षिण एशिया के निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट ने तीनों कृषि कानूनों पर विचार-विमर्श किया और शीर्ष अदालत को एक रिपोर्ट सौंपी. आखिरकार 19 नवंबर 2021 को गुरु नानक देव जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा कर दी.

मोदी सरकार 3.0 क्यों प्रदर्शनकारी किसानों से बनाई हुई है दूरी?

एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और केएमएम 13 फरवरी 2024 से शंभू और खनौरी सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं, जब हरियाणा पुलिस ने उनके 'दिल्ली चलो' मार्च को रोक दिया था, जिससे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रास्ते राज्य में उनका प्रवेश अवरुद्ध हो गया था. इस बार कृषि आंदोलन से निपटने में केंद्र के बदले हुए रुख के पीछे कई कारण हो सकते हैं. पहला, अभी तक चल रहा आंदोलन पंजाब-हरियाणा सीमा तक ही सीमित है और इसका भौगोलिक विस्तार 2020-21 के कृषि आंदोलन जितना व्यापक नहीं है. दूसरा, पंजाब और अन्य राज्यों के कई कृषि संघों के एक छत्र संगठन एसकेएम सहित कई प्रमुख किसान संगठन इसकी मांगों का समर्थन करने के बावजूद मौजूदा आंदोलन में शामिल नहीं हुए हैं. तीसरा, जबकि 2020-21 का आंदोलन केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ था, मौजूदा विरोध में कई मांगें हैं जिनमें कुछ पहले से उठाई गई मांगें भी शामिल हैं.

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