याद हैं टीएन शेषन! 'अनाथों' की तरह रह रहे हैं 'Old Age Home' में...
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याद हैं टीएन शेषन! 'अनाथों' की तरह रह रहे हैं 'Old Age Home' में...

चुनाव आयोग को पहचान दिलाने का श्रेय जाता है पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को. शेषन ने ही राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग की ताकत का एहसास कराया था. 

85 वर्षीय टीएन शेषन अपने घर से दूर चेन्नई के एक वृद्धाश्रम में दिन गुजार रहे हैं (फाइल फोटो)

नई दिल्ली : लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव या फिर नगर निकाय चुनाव ही क्यों ना हों, चुनाव आयोग अपनी सख्त भूमिका के साथ खड़ा नजर आता है. 90 के दशक से पहले की बात करें तो राजनीतिक दलों के अलावा शायद ही चुनाव आयोग के बारे में कोई जनता होगा. चुनाव आयोग को पहचान दिलाने का श्रेय जाता है तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को. शेषन ने ही राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग की ताकत का एहसास कराया था. लेकिन चुनाव आयोग को पहचान दिलाने वाले टीएन शेषन आज खुद गुमनामी का जीवन गुजार रहे हैं. 85 वर्षीय शेषन 'ओल्ड एज होम' में दिन गुजार रहे हैं. 

  1. 1990 में बने भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त
  2. 1996 में रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित
  3. 1997 में उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था

नवभारत टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक, टीएन शेषन चेन्नई के एक ओल्ड एज होम 'एसएसम रेजिडेंसी' में दिन गुजार रहे हैं. उन्हें भूलने की भी बीमारी है. खबर बताती है कि शेषन सत्य साईं बाबा के भक्त थे. उनकी मृत्यु के बाद वह सदमे में आ गए थे. उन्हें 'ओल्ड एज होम' में भर्ती कराया था. वहां तीन साल रहने के बाद वह फिर से अपने घर चले गए, लेकिन वहां कुछ समय रहने के बाद वे फिर से 'ओल्ड एज होम' लौट आए. इन दिनों वे यहीं गुमनामी की जिंदगी गुजार रहे हैं.

चुनाव आयोग को दिलाई पहचान
तमिलनाडु कॉडर के आईएएस अधिकारी टीएन शेषन भारत के 10वें चुनाव आयुक्त बने थे. उनका कार्यकाल 12 दिसंबर, 1990 से 11 दिसंबर, 1996 तक रहा था. शेषन ने अपने कार्यकाल में स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए नियमों का कड़ाई से पालन किया गया. सख्ताई के कारण उनका सरकार और कई नेताओं से विवाद हुआ था. 

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उत्तर प्रदेश और गुजरात चुनाव में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने सवाल उठाए थे

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चुनाव आयोग से था आम आदमी अंजान
वर्ष 1990 में टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के पहले तक निर्वाचन आयोग की भूमिका से आम आदमी प्राय: अपरिचित था लेकिन शेषन ने इसे जनता के दरवाजे पर ला खड़ा किया. इससे जनता की उम्मीदें और बढ़ीं. इसे और गतिशील और पारदर्शी बनाने के लिए इसका स्वरूप बदलने की जरूरत महसूस की गई और इसे बदला भी गया. 

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बिहार में चार बार रद्द किए चुनाव
टीएन शेषन ने चुनाव सुधार की शुरूआत 1995 में बिहार चुनावों से की थी. चुनावों में धांधली के लिए बिहार बुरी तरह बदनाम था. उन्होंने बिहार में कई चरणों में चुनाव कराए, यहां तक कि चुनाव तैयारियों को लेकर वहां कई बार चुनाव की तारीखों में बदलाव भी किया. उन्होंने बिहार में बूथ कैप्चरिंग रोकने के लिए सेंट्रल पुलिस फोर्स का इस्तेमाल किया. शेषन के इस कदम पर लालू यादव ने उन्हें खुलेआत चुनौतियां दी थीं. उन्होंने चार बार बिहार चुनाव की तारीखों में बदलाव किया था. जरा सी भी गड़बड़ी मिलने पर वह फौरन तारीख बदल देते थे. उस दौरान बिहार में चुनावों में बड़ी संख्या में बूथ कैप्चरिंग, हिंसा और गड़बड़ी होती थी। शेषन ने इसे चुनौती के रूप में लिया। निष्पक्ष चुनाव के लिए पहली बार उन्होंने चरणों में वोटिंग कराने की परंपरा शुरू की। पांच चरणों में बिहार का विधानसभा चुनाव कराया। वह चुनाव मील का पत्थर बना था। 

राष्ट्रपति पद के लिए लड़ा चुनाव
वर्ष 1997 में उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था. लेकिन केआर नारायणन से हार गए. उसके दो वर्ष बाद कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन उसमें भी पराजित हुए. शेषन को 1996 में रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. 1992 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी छोटे-बड़े अधिकारियों को साफ-साफ शब्दों में कह दिया था कि चुनाव की अवधि तक किसी भी ग़लती के लिए वो उनके प्रति जवाबदेह होंगे.

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