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नई दिल्ली: अक्सर जब हम स्कूल-कॉलेज की बात करते हैं तो 'पढ़ाई-लिखाई' शब्द का इस्तेमाल करते हैं. इन शब्दों को हमेशा से साथ बोला या लिखा जाता है. हालांकि कोरोना काल में लंबे समय तक ऑनलाइन पढ़ाई करने की वजह से बच्चों की Handwriting कमजोर हो गई है. यानी बच्चों में लिखने की क्षमता पहले के मुकाबले कम हो गई है.
National Council of Educational Research and Training यानी NCERT की ओर से किए गए एक सर्वे के मुताबिक, कोरोना काल में भारत के 75 प्रतिशत बच्चों की Handwriting पहले से कमजोर हो चुकी है. ये बच्चे किसी सवाल का जवाब बोल कर तो बता सकते हैं. लेकिन अगर ये उत्तर उन्हें लिखना पड़े तो अब पहले की तुलना में समय भी ज्यादा लग रहा है और वो स्पष्ट रूप से अपनी पूरी बात भी नहीं लिख पा रहे.
#DNA: Online Classes ने बच्चों को लिखना भुला दिया
@sudhirchaudhary pic.twitter.com/UP0hvo4GZF— Zee News (@ZeeNews) April 8, 2022
ये सर्वे मार्च 2020 से फरवरी 2021 के बीच किया गया, जिसमें चौथी कक्षा से 10वीं कक्षा के 10 हजार बच्चे शामिल थे. ये सर्वे सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूलों पर किया गया है. इसमें बताया गया है कि देश के लगभग 65 प्रतिशत छात्रों की लिखने की आदत अब पूरी तरह छूट चुकी है. इसका सबसे बड़ा कारण है, Online Classes. कोरोना काल में Online Classes के दौरान बच्चों को PDF Files पर काम करना होता था. वे अपने मोबाइल फोन, Laptop और Computer पर ही Notes लिख लेते थे. जिसका उनकी Handwriting पर सीधा असर पड़ा.
जरा सोचिए, अगर ये छात्र लिखना ही भूल गए तो भारत का भविष्य किस तरह लिखा जाएगा. इसलिए अब से आपको बच्चों की पढ़ाई पर ही नहीं, लिखाई पर भी ध्यान देना है.
कंधे पर स्कूल बैग, गले मे बॉटल, स्कूल बस पकड़ने की भागदौड़. इन दिनों माहौल ऐसा लग रहा है जैसे कोरोना वायरस महामारी से पहले का सामान्य जीवन वापस शुरू हो चुका है. दो साल के लॉकडाउन ने बच्चों की पढ़ने लिखने की आदतें बदल दी हैं. इसका अहसास तब हुआ, जब इस हफ्ते स्कूल खुले और बच्चे कॉपी किताब, पेन पेंसिल लेकर स्कूल पहुंचे. कुछ तो क्लास रुम में टिककर बैठ नहीं पा रहे तो ज्यादातर बच्चों की लिखने की आदत ही छूट गई. मोतियों जैसे अक्षरों की जगह आड़ी तिरछी हैंडराइटिंग लिख रहे बच्चे और उनके माता पिता अब इस नई चुनौती से दो चार हो रहे हैं.
पिछले 2 सालों में ONLINE CLASS में पढ़ रहे बच्चे keyboard चलाना तो सीख गए लेकिन पेंसिल चलाना भूल गए. की बोर्ड के शॉर्टकट तो याद हो गए लेकिन अब साफ सुथरी लिखावट और तेज लिखने का तरीका याद नहीं. नोटबुक की जगह लैपटॉप और पेंसिल की जगह keyboard वाली पढ़ाई ने हैंडराइटिंग का हाल खराब कर दिया.
कोविड की वजह से हैंड राइटिंग खराब होने से सबसे ज्यादा परेशान इस साल बोर्ड की परीक्षा देने वाले बच्चे हैं. 2 वर्षों में लिखने की आदत छूट गई है. स्कूल खुलने के बाद लिखना शुरु तो किया है लेकिन हैंडराइटिंग खराब भी है और लिखावट की रफ्तार भी धीमी है. यानी तय समय में अच्छी हैंडराइटिंग के साथ पेपर SOLVE करना चुनौती बन गई है.
स्टूडेंट्स में स्पेलिंग्स की गलतियां भी पहले के मुकाबले बढ गई हैं. घर में माता पिता और स्कूल में टीचर परेशान हैं कि बच्चों की ज्यादा मेहनत उनकी हैंडराइटिंग ठीक करने पर की जाए या उनकी राइटिंग स्पीड बढ़ाने पर.
दिल्ली के एक प्राइवेट स्कूल में हाल ही में प्री बोर्ड की परीक्षा से स्कूल प्रशासन को जो अनुभव हुआ, वो बोर्ड की फाइनल परीक्षा देने वाले बच्चों को जरूर जानने चाहिए. स्कूल प्रशासन के मुताबिक परीक्षा में ज्यादातर बच्चे question paper के सभी सवालों का जवाब इसके लिए तय समय पर नहीं लिख पाए थे क्योंकि उनकी राइटिंग स्पीड धीमी हो गई है. कई बच्चों के नंबर गलत जवाब के बजाय गलत स्पेलिंग होने की वजह से कटे हैं.
हैंडराइटिंग एक न्यूरो मस्कुलर एक्ट है यानी जितना लिखा जाएगा उतनी ही राइटिंग अच्छी होगी और स्पीड तेज होगी. विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चे अपने स्कूल के शुरुआती दिनों में जो ब्लैक बोर्ड पर देखते हैं, वही हूबहू कॉपी करने की कोशिश करते हैं. लंबे वक्त से ना लिखने की वजह से बच्चों की मांसपेशियां अब आराम के मोड में आ चुकी हैं.
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अगर आप भी परेशान है कि आपके बच्चे की हैंड राइटिंग खराब हो गई है तो इन टिप्स को आप लिख कर अपने बच्चे पर लागू कर सकते हैं. जिससे उसकी हैंडराइटिंग भी बेहतर होगी और राइटिंग स्पीड में भी सुधार होगा.
छोटे बच्चों के लिए टीचर्स और पेरेंट्स को संयम बरतने की जरूरत है. नन्हें बच्चों पर समय का दबाव डालने के बजाय संयम बरतें. पेन पर बच्चों की सही तरीके से ग्रिप बनावाएं. बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चे लिखने की ज्यादा से ज्यादा प्रैक्टिस करें. रटने के बजाय लिख कर पढ़ें. घर पर वक्त की पाबंदी के अंदर राइटिंग प्रैक्टिस करें. ताकि वो बेहतर प्रदर्शन कर सकें.