केजरीवाल के वकील बने चिदंबरम, कहा - अदालत के फैसले के बावजूद पूरी तरह ठप है दिल्ली में काम
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केजरीवाल के वकील बने चिदंबरम, कहा - अदालत के फैसले के बावजूद पूरी तरह ठप है दिल्ली में काम

कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम आज दिल्ली सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. उन्होंने कोर्ट को बताया कि संविधान पीठ के फैसले के बावजूद दिल्ली सरकार का कामकाज बिल्कुल ठप पड़ा हुआ है. 

फाइल फोटो

नई दिल्ली. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच छत्तीस का आंकड़ा अब बीते दिनों की बात है. एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत बुधवार को कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम आज दिल्ली सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. उन्होंने कोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में कामकाज के संबंध में संविधान पीठ के फैसले के बावजूद दिल्ली सरकार का कामकाज बिल्कुल ठप पड़ा हुआ है. सरकार अधिकारियों के तबादले या नियुक्ति के आदेश भी नहीं दे सकती है.

  1. वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अधिकारी हलफनामा दायर करने के इच्छुक नहीं थे. 
  2. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में कामकाज को लेकर विस्तृत दिशानिर्देश तय किये थे.
  3. अदालत इस मामले की सुनावई 26 जुलाई को करेगी. 

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ कर रही थी. पीठ ने कहा कि न्यायालय को स्थिति का ज्ञान है और चूंकि वह नियमित पीठ नहीं है, इसलिए वह 26 जुलाई को मामले की सुनवाई करेगी. दिल्ली सरकार के वकील पी चिदंबरम ने कहा कि सरकार का कामकाज पूरी तरह ठप्प है और इन मुद्दों को जल्दी सुलझाने की जरूरत है.

दिल्ली सरकार की ओर से ही पेश हुई वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अधिकारी इस संबंध में हलफनामा दायर करने के इच्छुक नहीं थे, इसलिए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने हलफनामा दायर किया है. जयसिंह ने कहा, 'मैं सिर्फ मामला स्पष्ट करना चाहती हूं.' चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी में कामकाज को लेकर विस्तृत दिशानिर्देश तय किये थे. 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है. दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है. और यहां ज़मीन, पुलिस और कानून व्यवस्था से जुड़े अधिकार उप राज्यपाल के पास ही रहेंगे. 
ये भी कहा गया है कि मंत्री परिषद के किसी फैसले को उपराज्यपाल की तरफ से अटकाया जाता है, तो ये सरकार की सामूहिक ज़िम्मेदारी को नकारना होगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि सभी मामलों में उपराज्यपाल की मंज़ूरी लेना ज़रूरी नहीं होगा. उनकी भूमिका अड़ंगा लगाने की नहीं है, बल्कि उन्हें मंत्रिपरिषद के साथ मिलकर काम करना चाहिए और उसके फैसलों का सम्मान करना चाहिए. इस फैसले को आम आदमी पार्टी ने अपनी जीत बताया, लेकिन बाद में उपराज्यपाल ने कहा कि ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार उनके पास ही है. इस पर विवाद होने के बाद आम आदमी पार्टी एक बार फिर अदालत की शरण में है. 

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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