कोरोना से बचाव में कारगर है ये तकनीक, राष्ट्रपति भवन से मंदिरों तक में हो रहा इस्तेमाल
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कोरोना से बचाव में कारगर है ये तकनीक, राष्ट्रपति भवन से मंदिरों तक में हो रहा इस्तेमाल

कोरोना संक्रमण रोकने के लिए अब एक और तकनीक सामने आई है.

कोरोना से बचाव में कारगर है ये तकनीक, राष्ट्रपति भवन से मंदिरों तक में हो रहा इस्तेमाल

नई दिल्ली: कोरोना संक्रमण रोकने के लिए अब एक और तकनीक सामने आई है जिसका नाम है कोविकोट. इसकी एक परत किसी भी सतह पर लगाए जाने से उस जगह पर 100 दिनों तक कोरोना वायरस से बचाव हो सकता है. इसे लैब से मान्यता मिल गई और इसकी एंटी वायरस नैनो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल राष्ट्रपति भवन में भी किया गया है.

  1. कोविकोट तकनीक तैयार
  2. कोविकोट की एक परत संक्रमण से बचाती है
  3. वायरस और बैक्टीरिया से सुरक्षा मिलती है

NABL से प्रमाणित
दफ्तर हो, लिफ्ट हो, गाड़ी हो, लैपटॉप हो या मोबाइल फोन, कोविकोट की एक परत इन्हें सुरक्षित बना सकती है. इसे पहले स्प्रे किया जाता है और फिर 2 मिनट तक छोड़ने के बाद एक कपड़े से पोछ दिया जाता है. इतने भर से 0.001 माइक्रोन की एक लेयर तैयार हो जाती है. एक ऐसी परत जिससे एक दो दिन या हफ्ते के लिए नहीं, बल्कि 90 दिनों के लिए वायरस और बैक्टीरिया से सुरक्षा मिलती है. कोविकोट बनाने वाली कंपनी का दावा है कि उनका ये प्रोडक्ट किसी भी सतह यानी सर्फेस पर छिड़कने से उसका पूरे 90 दिनों तक वायरस से बचाव करता है. वहीं कंपनी का कहना है उसका ये दावा NABL से प्रमाणित है.

कोटिंग की गई सतह पर जिंदा नहीं रह सकता वायरस
राष्ट्रपति भवन, विदेश मंत्रालय का दफ्तर, दिल्ली और तमिलनाडु पुलिस मुख्यालय हो या फिर महाराष्ट्र के मंत्रालय इन सभी जगह कोविकोट तकनीक का प्रयोग किया है. कोविकोट का इस्तेमाल जिन जगहों पर किया गया है वहां कंपनी बकायदा करार का सर्टिफिकेट भी देती है कि कोरोना जैसा वायरस भी 90 दिनों तक कोटिंग की गई सतह पर जिंदा नहीं रह सकता. 

दिल्ली के सुप्रसिद्ध और प्राचीन हनुमान मंदिर सैनिटाइजेशन के लिए अल्कोहल की मनाही है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं में अल्कोहल को अशुद्ध माना जाता है, इसलिए अब मंदिर के अंदर कोरोना से बचने के लिए कोविकोट का प्रयोग किया जा रहा है, ताकि संकट मोचन के भक्त जब मंदिर पहुंचे, तो वह भी कोरोना संक्रमण के संकट से बचे रहें.

कोविकोट तकनीक को भारत सरकार के सीएसआईआर से मान्यता मिल चुकी है. इसमें अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं होता और अल्ट्रावॉयलेट रेज से उलट इंसानी त्वचा पर भी इसका दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.

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जानिए तकनीक आखिर कैसे करती है काम 

-सबसे पहले कोविकोट के सॉल्यूशन को बिजली से पॉजिटिवली चार्ज किया जाता है.

-पॉजिटिव चार्ज पार्टिकल्स 360 डिग्री सुरक्षा देते हैं, पूरी सतह पर बराबर फैलते हैं.

-पॉजिटिव चार्ज पार्टिकल्स में नैनो स्पाइक होते हैं, जिससे कोरोना वायरस के प्रोटीन की बाहरी परत में यह सूई की तरह चुभकर उसे तोड़ देता है और आरएनए वायरस मर जाता है.

-एक बार कोटिंग के बाद हर 15 दिनों में उस सतह की दोबारा जांच की जाती है, रिपोर्ट गलत आने पर दोबारा कोटिंग की जाती है.

-फिर टेस्ट किया जाता है और जब किसी भी सतह पर जब माइक्रोपार्टिकल एंजाइम का स्तर 50 से नीचे होता है तो उस सतह को सुरक्षित माना जाता है.

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नॉर्मल डिसइंफेक्टेंट  से अलग
थ्री आर मैनेजमेंट कंपनी के इनोवेटर और कोविकोट के संचालक मनीष पाठक के मुताबिक, “जब से कोरोना वायरस आया है. मार्केट में कई तरह के डिसइंफेक्टेंट और सैनिटाइजर उपलब्ध हैं. यह डिसइंफेक्टेंट हैं और यह नॉर्मल डिसइंफेक्टेंट नहीं है. नॉर्मल डिसइंफेक्टेंट जो हम यूज करते हैं, उसमें हमने साफ कर दिया और ऊपर से सर्फेस साफ हो गई, लेकिन उसके बाद अगर कोई भी संक्रमित व्यक्ति या कोई भी आम आदमी उसे जाने अनजाने छूता है तो वायरल लोड उस सर्फेस पर बढ़ता चला जाता है."  

मनीष ने कहा, हम चाहते हैं इस माहौल में हमारी सर्फेस पर कम से कम बैक्टीरियल वायरल लोड हो. उस पर हम सिर्फ डिसइंफेक्टिंग प्रॉपर्टी डिवेलप कर दें ताकि वह खुद ही वायरस, बैक्टीरिया और माइक्रोब्स से लड़ती रहे. उसके लिए कोविकोट प्रोडक्ट है. यह रेडी टू यूज प्रोडक्ट है और यह एनएबीएल सर्टिफाइड है. 100 दिनों तक इसकी एफिशिएंसी रहती है.”

कंपनी की कई पब्लिक और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट कंपनियों से बात चल रही है. जिसमें मेट्रो और बस सर्विस भी है. बढ़ती मांग और सैनिटाइज करने की जरूरत को देखते हुए कंपनी ने हाल में कॉल सेंटर शुरू किया है. वहीं जल्द इस प्रोडक्ट को रिटेल चैन के जरिए बाजार में लाने की तैयारी है. वहीं ऑफिस और फैक्ट्रियों को भी ध्यान में रख कर काम हो रहा है. कोरोना से बचने के लिए किए जाने वाले उपायों में यह भी एक कड़ी है.  

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