फ्रांस से खरीदे गए 5 लड़ाकू विमान संयुक्त अरब अमीरात के रास्ते आज भारत पहुंच गए. रफाल विमानों के अंबाला एयरबेस पहुंचते ही भारत को चीन और पाकिस्तान के खिलाफ आसमान में एक बड़ी रणनीतिक बढ़त हासिल हो गई है.
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नई दिल्ली: फ्रांस से खरीदे गए 5 लड़ाकू विमान संयुक्त अरब अमीरात के रास्ते आज भारत पहुंच गए. उनके भारतीय वायु सीमा में पहुंचते ही दो सुखोई-30 MKI विमानों ने उन्हें एस्कॉर्ट किया. रफाल विमानों के अंबाला पहुंचने पर वायु सेना प्रमुख आर. के. एस. भदौरिया ने उनकी आगवानी की. वहीं पीएम मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी ट्वीट करके रफाल विमानों का भारत में स्वागत किया.
रफाल विमानों के पायलटों और INS कोलकाता के बीच हुआ दिलचस्प संवाद
रफाल विमानों के अंबाला एयर बेस पर पहुंचने पर उन्हें वॉटर सैल्यूट दिया गया. भारत की सैन्य परंपराओं के तहत किसी भी नए मिलिट्री एयरक्राफ्ट के पहली बार लैंड करने पर उसे सम्मान देने के लिए पानी की बौछार की जाती है. इसी को वॉटर सैल्यूट कहा जाता है. इन विमानों के अंबाला पहुंचने से एक दिलचस्प वाकया भी हुआ. जब पांचों विमान भारतीय वायु सीमा में पहुंचे और अरब सागर में तैनात भारतीय नौसेना के युद्धपोत INS कोलकाता से संपर्क साधा. INS कोलकाता ने भी गर्मजोशी के साथ जवाब देते हुए कहा कि ऐरो लीडर, भारतीय समुद्री क्षेत्र में आपका स्वागत है. इस पर रफाल के पायलट ने कहा कि आपका बहुत धन्यवाद. हमें विश्वास है आपके होते हुए भारत की समुद्री सीमाएं सुरक्षित हैं. INS कोलकाता ने कहा कि आप गर्व के साथ आसमान की ऊंचाइयों को छुएं, हैप्पी लैंडिंग. रफाल के पायलट ने भी कहा कि समंदर में हवाएं भी आपका साथ दें. हैप्पी हंटिंग. ये रफाल विमानों के पायलटों के बीच महज एक बातचीत ही नहीं थी बल्कि भारत की बढ़ती सैन्य ताकत के आत्मविश्वास का संदेश भी था.
पीएम मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ ने भी किया रफाल विमानों का स्वागत
रफाल विमानों के आगमन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संस्कृत में ट्वीट किया. जिसका सार था कि राष्ट्र की रक्षा से बड़ा, ना कोई पुण्य है, ना कोई व्रत है और ना कोई यज्ञ है. वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रफाल के स्वागत में कहा कि बर्ड्स अंबाला में सुरक्षित उतर गए हैं. वायुसेना में लड़ाकू विमानों को बर्ड यानी चिड़िया कहा जाता है.
रफाल की 'अंबाला' में तैनाती रणनीतिक फैसला
पहले पांच रफाल विमानों को हरियाणा के 'अंबाला एयरबेस' में तैनात किया गया है. इसका सामरिक महत्व ये है कि अंबाला एयरबेस के जरिए चीन और पाकिस्तान दोनों तरफ की चुनौतियों से निपटा जा सकता है. पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक करने के लिए पिछले वर्ष भारतीय वायुसेना के मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने इसी अंबाला एयरबेस से उड़ान भरी थी. वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में भी अंबाला एयरबेस ने अहम भूमिका निभाई थी. जब भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों
ने हमले के लिए यहीं से करीब 234 उड़ानें भरी थीं.
दोनों दुश्मनों से निपटने के लिए 'अंबाला एयरबेस' की मजबूती जरूरी
अंबाला एयरबेस पर रफाल की तैनाती इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसी एयरबेस पर दुश्मन की सबसे ज़्यादा नज़र होती है. यही वजह है कि वर्ष 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की वायुसेना ने सबसे पहले अंबाला एयरबेस को निशाना बनाने की कोशिश की थी. अगर कभी भारत और चीन के बीच युद्ध होता है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तान भी दूसरी ओर से भारत पर हमला कर सकता है. इसलिए इन दो मोर्चों पर लड़ने के लिए दो अलग अलग मोर्चे बनाने से बेहतर है कि एक ही जगह पर मज़बूत होकर चीन और पाकिस्तान दोनों को जवाब दिया जाए.
इमरजेंसी में युद्ध के लिए एक हफ्ते में तैयार हो जाएगा रफाल
अभी रफाल के ना होने से भारत इस मामले में कुछ कमज़ोर था. लेकिन रफाल के आने से ये कमज़ोरी भी दूर हो गई है. वैसे तो सामान्य स्थितियों में किसी नए लड़ाकू विमानों को सैन्य मिशन के लिए तैयार होने में कम से कम छह महीने लगते हैं. लेकिन अभी सामान्य स्थितियां नहीं हैं और सीमा पर तनाव है. इसलिए जानकारों के मुताबिक ज़रूरत पड़ने पर इन रफाल लड़ाकू विमानों को एक हफ्ते के अंदर ही ऑपरेशन्स के लिए तैयार किया जा सकता है.
आसमान से समंदर तक टारगेट साध सकता है
रफाल 4.5 generation के लड़ाकू विमान है. जबकि भारत के पास अब तक मिराज-2000 और सुखोई-30 MKI के तौर पर तीसरी या चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान ही थे. रफाल हर तरह के रोल और हर तरह के मिशन को अंजाम दे सकता है. इस लड़ाकू विमान में अचूक हवाई हमले, ज़मीन में सेना की मदद और एंटी शिप अटैक की क्षमता है. इसकी तकनीक का कोई मुकाबला नहीं है. ये विमान, पाकिस्तान या चीन की सीमा पार किए बिना, वहां पर मौजूद अपने टारगेट को आसानी से नष्ट कर सकता है.
पाकिस्तान के F-16 पर भारी पड़ेंगे रफाल विमान
निश्चित तौर पर ये विमान भारतीय वायुसेना के पुराने लड़ाकू विमानों के मुकाबले कहीं ज़्यादा ताकतवर साबित होंगे. उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान के एक F-16 विमान का सामना करने के लिए सामान्य तौर पर दो सुखोई-30 MKI की ज़रूरत पड़ती है. जबकि एक रफाल का सामना करने के लिए पाकिस्तान को अपने दो से ज्यादा F-16 लड़ाकू विमानों को हवा में उतारना होगा.
चीन- पाकिस्तान से निपटने के लिए बढ़ानी होगी क्षमता
चीन- पाकिस्तान से निपटने के लिए भारतीय वायुसेना को अपने squadrons की संख्या बढ़ानी होगी.वायुसेना के एक squadron में 16 से 18 लड़ाकू विमान होते हैं. भारतीय वायुसेना के पास अभी सिर्फ़ 31 squadrons ही हैं.जबकि चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चे की लड़ाई के लिए भारतीय वायुसेना को अपनी पूरी क्षमता यानी 42 squadrons की ज़रूरत होगी.
1953 में फ्रांस से खरीदे थे 71 'तूफानी' विमान
भारत ने फ्रांस से पहली बार 1953 में 71 लड़ाकू विमान खरीदे थे. जिन्हें तूफानी कहा जाता था. ये लड़ाकू विमान भी फ्रांस की Dassault Aviation ने बनाए थे. इन विमानों से ही 12 वर्ष बाद 1965 के युद्ध में कराची पर वायुसेना ने बम गिराए गए थे. वर्ष 1957 में भारत ने फ्रांस से 104 Mystère लड़ाकू विमान खरीदे थे. और इसके बाद वर्ष 1982 में भारत ने 40 मिराज-2000 लड़ाकू विमान फ्रांस से ही खरीदे थे.
रफाल के आगमन पर देश को याद आए मनोहर पार्रिकर
रफ़ाल को भारतीय वायुसेना में शामिल करने का सपना पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने देखा था. 23 सितंबर 2016 को भारत और फ्रांस के बीच 36 रफाल विमानों को खरीदने का समझौता हुआ था. तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भारत की तरफ से इस डील पर हस्ताक्षर किए थे. कहा जाता है कि उन्होंने ही रफ़ाल के साथ घातक मिसाइलों की ख़रीद के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्हीं के समझौते की वजह से आज 5 रफाल फाइटर जेट भारत पहुंचे हैं.
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